From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Nature Dawn Painting on 07 October 2020
(The whole article along with all the images are subject to IPR))
सुभाषितानि
संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषा है एवं विश्व की सभी भाषाओं में वैज्ञानिक भी। भारतीय संस्कृति में संस्कृत भाषा का अत्यन्त महत्त्व है। संस्कृत भाषा को देव भाषा भी कहते हैं। हमारे ऋषि-मनीषियों ने अपनी व्यक्तिगत साधना, अनुभव तथा ज्ञान के आधार पर अनेकानेक श्लोकों की रचना की हैं जो समस्त मानव के लिए ज्ञानदायी हैं प्रेरणादायी हैं प्रोत्साहनदायी हैं कल्याणकारी हैं।
अपि मेरुसमं प्राज्ञमपि शूरमपि स्थिरम्।
तृणीकरोति तृष्णैका निमेषेण नरोत्तमम्।।
भले ही कोई नरोत्तम मेरु पर्वत सदृश प्रज्ञ (बुद्धिमान) हो, शूर (वीर) हो, स्थिर हो - तृष्णा अर्थात् लालच उसे क्षण भर में तृण (तिनका) में परिवर्तित कर सकता है ( गणमान्य से नगण्य बना सकता है )।
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