From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature Painting on 25 August 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
श्रोतं श्रुतनैव न तू कुण्डलेन दानेन पार्णिन तु कंकणेन।
विभाति कायः करुणापराणाम् परोपकारैर्न तु चंदनेन।।
श्रोतं श्रुतनैव न तू कुण्डलेन दानेन पार्णिन तु कंकणेन।
विभाति कायः करुणापराणाम् परोपकारैर्न तु चंदनेन।।
कान की शोभा कुण्डल से नहीं परन्तु ज्ञानवर्द्धक वचन सुनने से है, हाथ की शोभा कंकण से नहीं परन्तु दान देने से है। काया यानी शरीर चंदन के लेप से दिव्य नहीं होता परन्तु परोपकार करने से दिव्य होता है।
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