From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature Painting on 20 August 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वमेव संपदः।।
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वमेव संपदः।।
सहसा यानी अचानक ( आवेश में आकर बिना सोचे-समझे ) कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि अविवेक या विवेकशून्यता महती आपदा या विपत्ति का घर होती है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सोच -समझकर कार्य करता है, गुणों से आकृष्ट होने वाली सम्पदा ( माँ लक्ष्मी ) स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।
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Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha |
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