From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature Painting on 23 August 2020
सुभाषितानि
नाक्षरं मंत्रहीतं नमूलंनौधिम्।
अयोग्य पुरुषं नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभः।।
नाक्षरं मंत्रहीतं नमूलंनौधिम्।
अयोग्य पुरुषं नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभः।।
ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसका मंत्र के लिए प्रयोग न किया जा सके, ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है जिसका प्रयोग या उपयोग औषधि के रूप न किया सके, ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो (सम्पूर्णतः) अयोग्य हो, और इसलिए उसका सदुपयोग न किया जा सके - किन्तु ऐसे व्यक्ति अत्यन्त दुर्लभ हैं जो उनका सदुपयोग करना जानते हों।
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha |
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