Monday, August 3, 2020

"रक्षा बंधन पर भ्रातृप्रेम में विशेष कविता-उद्गार" - डॉ सुशीला ओझा

"रक्षा बंधन पर  भ्रातृप्रेम में  विशेष कविता-उद्गार" - 
डॉ  सुशीला ओझा 


डॉ सुशीला ओझा
शिक्षाविद् साहित्यकार संस्कृतिकर्मी 



 मेरे उरालय में प्रतिष्ठापित ... मेरी गति... मेरा स्वर लय... माधुर्य सब    तुम्हीं लोगों से जीवंत है ...   !  हमारी भारतीय संस्कृति शिव -शक्ति की अमूल्य धरोहर है ...      जिसमें शक्ति स्वरूपा का विशिष्ट स्थान है  ...!


                                         *** रक्षा सूत्र ***
(१) 



है तो एक कच्चा 
धागा भईया ... !
प्रेम .. विश्वास .. आस्था 
से अभिसिंचित भईया ... !

यह रक्षा सूत्र है .. !
तुम्हारे नब्ज की ... 
परिक्रमा करके 
तुम्हारी कलाई को 
बाँधता है भईया ... !

पवन प्रेम के बीज मंत्र 
का एक लक्ष्मण सूत्र भईया ... !
बात धागे तक सीमित 
नहीं है ... !
इसका तो मूल तत्व 
ढाई अक्षरों में सिमटा है ... !
यह मंत्र शक्ति है ...!
एक बहन के आशीर्वाद का ... 
अभेद्य कवच भईया... !
योग क्षेम वहन करना..!

तुम्हारे आँगन की तुलसी हूँ 
तुम प्रेम जल से .. ! 
मेरी जड़ों को अभिसिंचित... !
करते रहना निरंतर.. !
मैं झूम झूम कर.. !
मंगल गीत गाती रहूँगी .. !

मैं वचनबद्ध हूँ .. 
तुम्हें संक्रमित नहीं होने दूँगी .. !
जीवन के पल पल में ... 
रोम समर्पित है... !

मैं तेरे आँगन की चिड़िया हूँ भईया ... 
प्रेम का दाना छींट देना आँगन में..
मैं फुदक फुदककर अपने 
हाथों को फैलाकर शुभत्व गंध से.. !
कल्याणमयी ... वरदानमयी .. 
सुर , लय,  माधुर्य से .. !
अन्तस् की क्यारियों में .. 
आनंद की चहचआहट भर दूँगी ... !

मन का मंदिर साफ  करो भईया ... 
दहलीज पर एक कर्पूर जला देना .. 
पावन गंध से ... 
दाना चुनने के लिए .. 
सादर आमंत्रित करना.. !
स्नेह .. प्रेम .. का दाना 
छींटते रहना भईया ...!
अविराम गति से ...!

मैं तुलसी चिड़िया बनकर ... 
आँगन में महमहाऊंगी ... !
चुन चुन ..  चीन चीन .. करके !
गुलजार करुँगी तेरा आँगन .. 


(२)

अरे वीरन भैया.. !
ये सावन है न 
चतुर्दिक ,
चतुर्दिक काली 
घटाओं से घिरी 
बादलों को 
अपने कोष में समेटे 
हाँ समेटने की , नियंत्रण की 
पूरी कोशिश है 
फिर भी अगर बाँध टूट जाय... !

तो परिणाम  क्या होगा ... ?
उमड़ते घुमड़ते 
बादल उपद्रवी हो गए हैं 
बस प्रेम की पुरवैया 
शोर मचाती , झकझोरती 
उद्दंड होती चली जा रही है 
सीमाओं का अतिक्रमण 
हरी हरी खनखनाती चूड़ियाँ 
पायल की छमछमाहट 
बिछुए की रुनझुन 
मेंहदी की अनुरागमयी हाथों 
के गिरफ्त में आने को बेकल है 
नथुनी नगीने में प्रिय की छवि 
कंगन , नेकलेस , अँगूठी में ... 

तुम्हीं तुम हो प्रिय ... !
मेरा सावन बस तुम्हीं हो ... !
मुझे भावे न सावन की बदरिया 
प्रिय तुम्हारे बिना ... ?
आँखों को क्या दोष दूँ ... ?
प्रतीक्षारत आँखें ... !
भईया के लिए उमड़ गई हैं ... ! छलछला गई हैं ... !

मेरे वीरन भईया ... !
सावन में मेरे आँखों के कैमरे में 
तुम कैद हो गए हो ... !
ये सावन तुमको समर्पित ... !
बाबा के अध्ययन कक्ष में 
एक दीवट है ... !
जिसमें मिट्टी का दीप है ... ! वह तुम्हारे लिए है ... ?
तुम्हारा गुरु दायित्व है ... !
उस दीप को 
स्नेहपूरित करना ... !

मैं श्रद्धा प्रेम में लिपटी 
स्नेहपूरित दीप में वर्तिका 
बनकर नीरव ...  निःशब्द जलूँगी ... !
तुम्हारे यश कीर्ति को 
प्रकाशित करुँगी ... !
भईया मेंहदी तेरे नाम की ... !
केवल दीप को स्नेहपूरित रखना ... !
सावन में तुम्हारी कलाई पर ... !
रक्षासूत्र बाँधूँगी ... !

प्रेम विश्वास में डूबी वर्तिका ... !
मंगलमय ज्योति विकीर्ण करेगी ... !
अरुण,  अनुरागमयी,  रोरी, दधि के ... !
पावन सम्मिश्रण ... प्रेम के अक्षत के समन्वय से 
बना शुभत्व से फलित ... !
उज्ज्वल भाल को श्रृंगारित करे ... !
भाभी का सीमांत प्रदीप्त हो ... !
भईया बाबुल तो स्मृतिशेष हैं ... !

तुम दीप को स्नेहपूरित करके रखना ... !
मेरी प्रार्थना है ... सावन में जरूर बुलाना ... !
तुम्हारी कलाई को अक्षय शक्ति मिलेगी ... !
तुम्हारा भाल जगमगाता रहेगा ... !


डॉ सुशीला ओझा 
शिक्षाविद् ,साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी    
                                                   बेतिया ,प.चम्पारण , बिहार           











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