From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Nature Dawn Painting on 15 September 2020
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सुभाषितानि
सुभाषितानि
संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषा है एवं विश्व की सभी भाषाओं में वैज्ञानिक भी। भारतीय संस्कृति में संस्कृत भाषा का अत्यन्त महत्त्व है। संस्कृत भाषा को देव भाषा भी कहते हैं। हमारे ऋषि-मनीषियों ने अपनी व्यक्तिगत साधना, अनुभव तथा ज्ञान के आधार पर अनेकानेक श्लोकों की रचना की हैं जो समस्त मानव के लिए ज्ञानदायी हैं प्रेरणादायी हैं प्रोत्साहनदायी हैं।
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन।
विभाति कायः करुणापराणां ,परोपकारैर्न तु चन्दनेन।।
कुंडल से कानों की शोभा में वृद्धि नहीं होती अपितु सुवचनों अर्थात् ज्ञान की बातों का श्रवण करने से होती है, पाणि यानी हाथ की सुन्दरता कंकण अर्थात् कंगन से नहीं होती अपितु दान देने से होती है। काया या शरीर चन्दन से विभासित नहीं होता अपितु करुणा-परायणता एवं परोपकार से होता है।
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha |
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