From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Nature Dawn Painting on 14 September 2020
(The whole article along with all the images are subject to IPR))
सुभाषितानि
यस्तु संचरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान्।
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि।।
सुभाषितानि
यस्तु संचरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान्।
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि।।
वह व्यक्ति जो अलग अलग देशों में संचरण करता है यात्रा करता है , पण्डितों यानी विद्वानों की सेवा करता है उसकी बुद्धि उसी तरह विस्तारित होती है फैलती है जैसे तेल की बूंद (पानी में गिरने पर ) पूरे पानी पर फैल जाती है।
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha |
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