कोयल गायन ब्राह्मीवेला में
"पक्षी एक मानी में धनी होते हैं, सम्पन्न होते हैं - गायन के मामले में - कुछ पक्षी बड़े अच्छे गायक होते हैं - उन पक्षियों में बुलबुल, कोयल , स्काईलार्क (लवा )पक्षी को विशेष प्रसिद्धि प्राप्त है। साहित्य में तो सबसे बड़ी प्रसिद्धि मिली है कोयल को - क्या हिन्दी, क्या उर्दू , क्या अंगरेजी , क्या संस्कृत - सर्वत्र कोयलों का राज्य है, बहार है। कोयल वसन्त की अग्रदूत होती हैं - वसन्तागम के साथ ही कोकिलकाकली प्रारंभ हो जाती है - कोयल की कूक - कूउ...कूउ.... पता नहीं ये किस वेदना या उल्लास से ग्रस्त या उद्वेलित होती हैं कि ब्राह्मीवेला में ही जब कि सारा जग शान्त निद्रानिमग्न रहता है उनकी हूकभरी कूक संयोगियों या वियोगियों के हिय में सोयी हूक जगा देती है।"
AJAY KUMAR OJHAajaykuamrojha.blogspot.com
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