Wednesday, May 20, 2020

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : Dawn Nature's Painting on 21 May 2020 during Lockdown

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :

 Dawn Nature's  Painting on 21 May 2020 during Lockdown


(All the images are subject to IPR)


"जलाशय का असल असालतन रूप शांति का है, विक्षोभ का नहीं ; सेवा का है, संहार का नहीं। विक्षोभ विजातीय, विदेशीय हस्तक्षेप है, आंतरिक उन्मेष नहीं। "




निबंध  : "जलाशय की अन्तरात्मा से  " से उद्धृत 
पुस्तक : नैवेद्यं 
लेखक  : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )





Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha

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स्त्रियां रोचमानायां सर्वं त रोचते कुलं।
तस्यां त्व
रोचमानायां सर्वमेव न  रोचते।। 

"स्त्री के प्रसन्न रहने पर वह सारा परिवार  प्रसन्न रहता है।  उसके अप्रसन्न रहने अथवा अच्छा न लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता। 
भावार्थ यह है कि सम्पूर्ण परिवार की खुशहाली के लिए परिवार की स्त्री का यथायोग्य सम्मान होना, उसका प्रसन्नचित्त रहना आवश्यक है।"



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