Friday, May 15, 2020

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : Dawn Nature's Painting on 16 May 2020 during Lockdown

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :

 Dawn Nature's  Painting on 16 May 2020 during Lockdown


(All the images are subject to IPR)





"जीवन जब से मिला है हमें तब से वेदना-विछोह, वियोग-विरह, शून्यता-रिक्तता विरासत में मिली है।  हम भटक रहे हैं किसी को पाने के लिए, हम तिल तिल जल रहे हैं किसी को अपनाने के लिए, हम बेसब्र हैं, अधीर हैं किसी की तलाश में। " 



निबंध  : "बसगीत महतो की बेवा " से उद्धृत 
पुस्तक : निर्माल्यं 
लेखक  : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )



Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

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गुण गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोया: प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेया:
 

" गुण गुणवान व्यक्तियों में गुण होते हैं किन्तु गुणहीन व्यक्ति को पाकर वे (गुण) दोष बन जाते हैं। नदियाँ स्वादिष्ट जल से युक्त ही (पर्वत से) निकलती हैं।  किन्तु  समुद्र तक पहुँचकर वे पीने योग्य नहीं रहती। तो इसका भावार्थ यह है कि संगति में गुण विकसित होते हैं किन्तु कुसंगति में वही गुण दोष स्वरूप बन जाते हैं। "


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