Saturday, May 16, 2020

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : Dawn Nature's Painting on 17 May 2020 during Lockdown

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :

 Dawn Nature's  Painting on 17 May 2020 during Lockdown


(All the images are subject to IPR)



"अनन्त के उच्छ्वास हैं ये मेघ, असीम के परिमल-सुवास हैं ये मेघ,  अनन्त की आकांक्षा-उद्भावना हैं ये मेघ, अनन्त की सृजनशीलता हैं ये मेघ, अनन्त के वैभव-वसंत के वाहक-गायक हैं ये मेघ, अनन्त के वेद-उपनिषद्, ऋषि-महर्षि, वाल्मीकि, कालिदास हैं ये मेघ। "



निबंध  : "यदि मेघ न होते " से उद्धृत 
पुस्तक : नैवेद्यं 
लेखक  : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )



Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha

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साहित्यसंगीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
भागधेयं  परमं  पशूनां।।



"साहित्य, संगीत व कला-कौशल से हीन व्यक्ति वास्तव में पूँछ तथा सींग से रहित पशु है जो घास न खाता हुआ भी (पशु की भाँति ) जीवित है। वह तो पशुओं का परम सौभाग्य है। 
भावार्थ ये है कि  साहित्य में अभिरुचि, संगीत आदि कलाओं में कौशल से ही मनुष्य मनुष्य बनता है, अन्यथा वह पशु का-सा जीवन ही जीवन जीता रहता है।" 




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