From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 22 May 2020 during Lockdown
(All the images are subject to IPR)
ज्योति-कमल खिलते रहते हों जिस संगीत सरोवर ,
सपनों के आलोक-लोक को लायेंगे हम भू पर।
शांति-स्रोत जहाँ बहता हो , बहती रहती उन्नतिधार,
पतझड़ का नहीं नामनिशां हो, वासंती हो सदा बयार।
जीवन का सुखभोग करें सब, जीवन रस में लीन ,
जन - जन हो अन्तर रस प्रेमी , आतम ज्ञान प्रवीन।
कविता : ' जन-जन हो अन्तररस प्रेमी' से उद्धृत
रचना : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )
पुस्तक : "विप्राः बहुधा वदन्ति"
रचना : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )
पुस्तक : "विप्राः बहुधा वदन्ति"
Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha |
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"सा विद्या या विमुक्तये।"
विद्या या ज्ञान वो है जो मनुष्य को मुक्त कर दे या मुक्ति प्रदान करे।
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