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"जब पर्वत को ऊँचाई से प्यार करते देखता हूँ , वन को सघनता से , सरिता को प्रवाह से , निर्झर को वेग से , मेघ को सजलता से , धरती को आकाश से , तब लगता है प्यार एक सनातन क्रिया है , शाश्वत प्रक्रिया है , सृष्टि की प्रकृति है , साधना की सिद्धि है प्राणों की ऋद्धि है जीवन की समृद्धि है। "
निबंध : "कुत्ते ही प्यार करना जानते हैं " से उद्धृत
पुस्तक : निर्माल्यं
लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )
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" Be free ; hope for nothing from anyone . I am sure if you look back upon your lives you will find that you were always vainly trying to get help from others which never came."
Swami Vivekanand
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