From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 24 May 2020 during Lockdown
(All the images are subject to IPR)
"मैं अनन्त आकाश में उन्मुक्त विचरण करना चाहता हूँ, मैं अनन्त की परिक्रमा करना चाहता हूँ, मैं विभु विराट की गोद में खेलना चाहता हूँ, मैं दुर्गन्ध को सुगन्ध, विष को अमृत, गंदगी को सुवास में बदलने की कला और दक्षता हासिल करना चाहता हूँ। मैं जटायु की करुणा, जटायु की भगवद्भक्ति, जटायु की तरह अन्याय से लड़ने का साहस और हिम्मत बटोरना चाहता हूँ। ...... मैं गीध होना चाहता हूँ। गीधों की शक्ति, ऊर्जा, गीधों का व्यक्तित्व-कृतित्व अपनाना चाहता हूँ। "
निबंध : ' मैं गीध होना चाहता हूँ ' से उद्धृत
पुस्तक : "सत्यं शिवम् "
लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )
"महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता ? अर्थात महापुरुषों के संसर्ग में आने से सबको लाभ प्राप्त होता है। कमल के पत्ते पर स्थित जल की बूँद मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है।
पुस्तक : "सत्यं शिवम् "
लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा (Rabindra Nath Ojha )
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha |
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महाजनस्य संसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः।
पद्मपत्रस्थितं तोयं धत्ते मुक्ताफलश्रियं।।
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