Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha
लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः। विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य।।
"लालची व्यक्ति का यश, चुगलखोर की दोस्ती , कर्महीन का कुल, अर्थ /धर्म को अधिक महत्व देने वाला का धर्म अर्थात धर्मपरायणता, बुरी आदतों वाले का विद्या का फल अर्थात विद्या से प्राप्त होने वाला लाभ, कंजूस का सुख, एवं प्रमाद करने वाले मंत्रीयुक्त राजा का राज्य /सत्ता नष्ट हो जाता है /जाती है।
भावार्थ ये है कि यदि यश चाहिए तो व्यक्ति लालच न करे, मित्रता चाहिए तो चुगलखोर न हो, धर्माचरण करना हो तो धन लाभ को अधिक महत्व न दे, विद्या का फल प्राप्त करना हो तो बुरी आदतों से मुक्त जीवन होना चाहिए, जीवन में सुख चाहिए तो कंजूस न हो व सत्ता को बनाए रखना हो तो मंत्री कर्तव्य के प्रति लापरवाह न हो।"
|
No comments:
Post a Comment