Sunday, May 10, 2020

'आलोक उज्ज्वल जगत कर दे' - रवीन्द्र नाथ ओझा (Prof Dr Rabindra Nath Ojha)





आलोक उज्ज्वल जगत कर दे , तिमिरनाशन, तम को भगा।
उठ, मंगलं के गीत लिख औ मंगलं के गीत गा ,
उठ , जागरण के गीत लिख औ जागरण के गीत गा।
नैराश्य में , निष्कर्म रहना यह महा दुष्कर्म है ,
प्रतिकूल से संघर्ष करना ही महा सद्धर्म है ,
प्रतिकूलता से जूझना ही नियति है , सद्धर्म है ,
दिग्दिगंत है तमस-आवृत , परिवेश तमसाच्छन्न है
विनाश औ विध्वंस लगते सुनिकट औ आसन्न है ,
अंधकार को कर विदीर्ण , प्रकाश के तुम गीत गा।
उठ, मंगलं के गीत लिख औ मंगलं के गीत गा ,
उठ , जागरण के गीत लिख औ जागरण के गीत गा।
आलोक उज्ज्वल जगत कर दे , तिमिरनाशन, तम को भगा।
उठ, मंगलं के गीत लिख औ मंगलं के गीत गा ,
उठ , जागरण के गीत लिख औ जागरण के गीत गा।
"विप्राः बहुधा वदन्ति " (रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय आकलन ) पुस्तक से साभार

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