From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 8 July 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।
कठोपनिषद
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।
कठोपनिषद
उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। विद्वान मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जैसे पैना किये हुए छुरे की धार पर चलना।
स्वामी विवेकानंद इस श्लोक को बराबर उद्धृत करते थे।
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha |
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