From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 16 July 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वमेव संपदः।।
सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वमेव संपदः।।
अचानक यानी आवेश में आकर बिना सोचे समझे कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि अविवेक यानी विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है। परन्तु जो व्यक्ति सोच-समझकर कार्य करता है गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी यानी वैभव स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती/लेता है।
Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha |
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