From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 12 July 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन, मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन, मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।
भाई, भाई से द्वेष न करें। बहन, बहन से द्वेष न करें। समान गति से एक दूसरे का आदर-सम्मान करते कर्मों को करते हुए भद्रभाव से परिपूर्ण होकर बातचीत करें यानी एक मत से प्रत्येक कार्य करते हुए भद्रभाव से पूर्ण-परिपूर्ण होकर सम्भाषण करें।
इस तरह की भावना रखने से कभी गृहकलह नहीं होता। संयुक्त परिवार में रहकर भी व्यक्ति शांतिमय जीवन यापन कर सर्वांगीण उन्नति या विकास कर सकता है।
Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha |
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