From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 13 July 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।
एवा मे प्राण मा विभेः।।
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।
एवा मे प्राण मा विभेः।।
जिस प्रकार आकाश व पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण ! तुम भी भयमुक्त रहो।
अर्थात् किसी भी व्यक्ति को कभी भी किसी तरह का भय नहीं करना चाहिए। भय से जहाँ शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी पैदा होते हैं। भयाक्रान्त व्यक्ति का किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भीक होना भी आवशयक है। भय तो केवल ईश्वर से होना चाहिए।
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Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha |
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