From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature Painting on 31 July 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतं।।
यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतं।।
जो दान प्रत्युपकार की भावना से या फल मिलने की अपेक्षा से और क्लेश से दिया जाता है वह राजस दान कहा गया है (वह सात्विक नहीं)।
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