मित्र की पहचान कब ?
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान्
बान्धवान्व्यसनाSSगमे।
मित्रं ह्याSSपत्तिकालेषु
भार्यां च विभवक्षये।।
किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेजते समय सेवक की पहचान होती है। व्यसन के समय में बन्धु - बान्धवों की पहचान होती है। विपत्ति काल में मित्र की पहचान होती है एवं विभव-क्षय अर्थात् धन-संपत्ति के नष्ट हो जाने पर पत्नी की पहचान होती है।
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