संगति का परिणाम
यदि सन्तं सेवति यद्य सन्तं
तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।
वासो यथा रङ्गवशं प्रयाति
तथा स तेषां वशमभ्युपैति।।
कपड़े को जिस रंग में रंगा जाए उस पर वैसा ही रंग चढ़ जाता है। ठीक इसी प्रकार सज्जन के साथ रहने पर उनकी सेवा करने पर सज्जनता, चोर के साथ रहने पर चोरी एवं तपस्वी के साथ रहने पर तपश्चर्या का रंग चढ़ जाता है।
"संसर्गजा दोषगुणा: भवन्ति।"
अर्थात् संसर्ग से संगति से, किसी के साथ किसी के संग रहने से दोष या गुण उत्पन्न होते हैं। जैसा संग वैसा मन।
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।
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