From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha :
Dawn Nature's Painting on 1 July 2020
(All the images are subject to IPR)
सुभाषितानि
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत।।
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत।।
कुल के हितार्थ स्वयं के स्वार्थ यानी एक का त्याग करना चाहिए, गाँव के हितार्थ कुल का त्याग करना चाहिए, देश के हितार्थ गाँव का त्याग करना चाहिए और आत्मा के लिए, आत्म-कल्याण के लिए पृथ्वी का, समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
Image (C ) Dr Ajay Kumar Ojha |
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