आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा
धरावतरण दिवस : 17 दिसंबर 1932
परिनिर्वाण : 13 मई 2010
धरावतरण स्थान : बड़का सिंहनपुरा, बक्सर (बिहार)
माता का नाम : स्व. देवमुनि देवी
पिता का नाम : स्व. सिद्धनाथ ओझा
शैक्षिक योग्यता : एम.ए. (अंग्रेजी), बिहार विश्वविद्यालय
कार्यानुभव : व्याख्याता, अंग्रेजी विभाग, महारानी
जानकी कुंवर महाविद्यालय,बेतिया
पश्चिम चम्पारण (बिहार) तदुपरांत
उपाचार्य और आचार्य के रूप में 1993 में
सेवानिवृत्त
हिन्दी जगत में स्थान : एक निबंधकार, कवि, समीक्षक, पत्र-
लेखक के रूप में जाना-पहचाना नाम
प्रकाशित रचनायें : चार निबंध संग्रह : 'नैवेद्यम्', 'निर्माल्यम्',
'सत्यम्-शिवम्' और 'शिवम्-सुन्दरम्'
रवीन्द्रनाथ ओझा के व्यक्तित्व का
बहुपक्षीय आकलन करती एक पुस्तक :
'विप्राः बहुधा वदन्ति'
आचार्य रवीन्द्र नाथ ओझा की रचनाओं पर आधारित पुस्तकें :
'बोल उठा खेत उस दिन' (निबंध संग्रह)
'हम हों केवल भारतवासी' (कविता संग्रह)
'भारतीय संस्कृति के सप्त आधारग्रंथ' (पत्र-लेखन)
'तोहर सरिस एक तोहीं माधव' (महाकवि विद्यापति पर आधारित निबंध संग्रह)
विशेष अनुभव : 1993 में रेल मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के सम्मान्य सदस्य के रूप में मनोनीत; तदुपरांत विधि और न्याय मंत्रालय से सम्बद्ध उच्च शक्ति प्राप्त हिन्दी सलाहकार समिति के सम्मान्य सदस्य
विशिष्टतायें :
दार्शनिक, विचारवेत्ता, भारतीय संस्कार व संस्कृति के संवाहक
हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत तथा भोजपुरी पर समान अधिकार
शिक्षकों, विद्यार्थियों, वंचितों तथा थारू आदिवासियों के अधिकार तथा कल्याणार्थ सर्वदा सक्रिय - अनेकों बार आमरण अनशन भी
जे. पी. आन्दोलन में भी काफी सक्रिय, कई बार जेल गमन, मीसा (MISA) में भी गिरफ्तारी
सक्रिय गाँधीवादी समाज-सेवी
प्रखर एवं ओजस्वी वक्ता के रूप में चर्चित व प्रशंसित
विश्व के एकमात्र खिलाड़ी जिनके द्वारा धोती-कुर्ता में ही टेनिस का अद्भुत प्रदर्शन
बिहार के चम्पारण के बेतिया जैसे उपेक्षित क्षेत्र में साठ के दशक में शेक्सपीयर के अति कठिन नाटक "A Midsummer Night's Dream" का सफल मंचन व निर्देशन - अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय
विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित
विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर (बिहार) द्वारा विद्या वाचस्पति (पी.एच.डी.) की उपाधि से सम्मानित
बिहार सरकार द्वारा 'चम्पारण विभूति' से सम्मानित
1989 में ‘हंस’ पत्रिका में प्रबुद्ध पाठक के रूप में अभिनन्दन
कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में निबंध और कविताएं प्रकाशित, साक्षात्कार भी प्रकाशित
आकाशवाणी और दूरदर्शन पर कई साक्षात्कार-कार्यक्रम प्रसारित - लाइव और रिकार्डेड दोनों। डी डी आर्काइव्ज में रवीन्द्रनाथ ओझा पर एक वृत्तचित्र “अद्भुत व्यक्तित्व,अनुपम कृतित्व” भी उपलब्ध ।
Tharu Dr Ajay Kumar Ojha ब्लॉग पर तथा @Dr Ajay Kumar Ojha यू-ट्यूब पर कई साक्षात्कार-कार्यक्रम उपलब्ध
www.rabindranathojha.com वेबसाइट
अंगरेजी का अध्ययन - अध्यापन तो ओझा जी ने अवश्य किया पर मन और आत्मा हिन्दी, संस्कृत और भोजपुरी में रमते रहे और अंततः अपनी सृजनात्मक ऊर्जा को हिन्दी के माध्यम से पूर्ण अभिव्यक्ति देने में पूर्णतः सफल रहे। आज हिन्दी जगत में एक निबंधकार, कवि, समीक्षक, पत्र-लेखक के रूप में आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा जाने जाते हैं, पहचाने जाते हैं। 1989 में ‘हंस’ पत्रिका ने प्रबुद्ध पाठक के रूप में ओझा जी का अभिनन्दन किया था और पूर्ण एक पृष्ठ उनके लेखन-वैशिष्ट्य को अर्पित किया था।
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के निबंधों की विद्वानों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है जिनमें विष्णु प्रभाकर, डॉ रामदरश मिश्र, डॉ पुष्पपाल सिंह, डॉ चन्द्रकान्त बांदिवडेकर, डॉ सूर्यबाला, डॉ सन्हैयालाल ओझा, डॉ भगवतीशरण मिश्र आदि प्रमुख हैं।
कुछ लोग धारा के विपरीत चलने के ही आदि-अभ्यस्त होते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि ऐसा करना उनकी आंतरिक मजबूरी हो, उनकी प्रकृतिगत मजबूरी या फिर उनकी संस्कारगत लाचारी । आज जबकि ललित निबंध विधा मृत या मृतप्राय घोषित हो चुकी है या फिर नितांत अलोकप्रिय, आज जबकि साहित्य के केंद्र में कथा-कहानी उपन्यास विधा ही प्रतिष्ठित हो गयी है, वही सर्वत्र चर्चा के केंद्र में है - रवीन्द्रनाथ ओझा कुछ ऐसे सर्जक-व्यक्तियों में हैं जिन्होंने आज के ललित-विरोधी युग में भी ललित निबंध को ही अपनी सृजनात्मक ऊर्जा की अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम बनाया है। उनकी दृष्टि में वे इसी विधा में ही अपनी समग्र सृजनात्मक ऊर्जा का समग्र, सम्यक उपयोग कर पाते हैं और इसीलिए उन्होंने अपनी सम्पूर्ण आत्माभिव्यक्ति के परम सुख संतोष के लिए ही इस विधा को अपनाया है।
ओझा जी ने अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति के क्रम में सैकड़ों उत्कृष्ट निबंधों की सर्जना की है। निबंध विधा में प्रकाशकों की अरुचि एवं उनका अविज्ञात, अल्पज्ञात होना ही उनके निबंधों के प्रकाशन में बहुत बड़ा बाधक सिद्ध होता है।
ओझाजी हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और भोजपुरी के मर्मज्ञ विद्वान हैं और उनका जीवनानुभव बड़ा व्यापक और विशाल है तथा उनकी चिंतन-मननशीलता गहन-गंभीर। इसलिए उनके निबंधों में जीवन के इंद्रधनुषी भाव-भंगिमाएं, छवि-छटाएं, रसरंग प्राप्त होते हैं। इनकी दृष्टि मूलतः मौलिक और समग्रतः मानवीय है इसलिए इनके निबंधों में एक खास तरह का उदात्तशील संस्कार प्राप्त होता है जो मानव जीवन को परमोत्कर्ष, परम श्रेयस की ओर प्रेरित करता है। पाठकों की चेतना को उर्ध्वमुखी बनाने में, उनके कायाकल्पिक भावान्तरण करने में इनकी रचनाएँ बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं और सच पूछिए तो इसी में इनका लेखन अपना वैशिष्ट्य और सार्थकत्व प्राप्त करता है।
ओझा जी के निबंध माखनलाल चतुर्वेदी, अध्यापक पूर्ण सिंह, हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय की ही परंपरा को विकसित और समृद्ध करते हैं। ये निबंध इस मानी में विशिष्ट हैं कि इनमें शास्त्रीयता का संस्पर्श नगण्य है। इनमें अनुभव की ताजगी है, अनुभूति की समृद्धि है, दृष्टि की मौलिकता और नवीनता है। ये निबंध सूचनात्मक या उद्धरणात्मक नहीं, बिलकुल सृजनात्मक हैं, शुद्ध रचनात्मक हैं। इनमें जीवन-प्रवाह का स्वाद है, सृष्टि का आस्वाद है, सृजन का आनंद-उजास है। इनमें काव्य, दर्शन, आध्यात्मिकता, मानवीय मूल्य और संवेदनाएं इस कदर अनुस्यूत हैं कि इनका स्वाद और संस्कार बिलकुल भिन्न हो जाता है। इस दृष्टि से ये पूर्णतः मौलिक और मानवीय हैं तथा हिंदी साहित्य को एक विशिष्ट वैभव से संपन्न करने का सामर्थ्य रखते हैं।
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