Monday, October 27, 2025

विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) का विनाशक क्रूर मुस्लिम आक्रांता बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji)

 

विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) का विनाशक  क्रूर मुस्लिम आक्रांता बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji)




भारत के गौरवशाली इतिहास में नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda Vishvavidyalaya) ज्ञान, शिक्षा और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। यह केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं था, बल्कि समूचे एशिया में भारतीय दर्शन, तर्कशास्त्र, बौद्ध धर्म, चिकित्सा, गणित और ज्योतिष का केंद्र था। परंतु 12वीं शताब्दी के अंत में इस महान संस्थान को एक विदेशी आक्रांता बख्तियार खिलजी (Bakhtiyar Khilji) ने नष्ट कर दिया। यह घटना न केवल भारत की शिक्षा परंपरा के लिए एक त्रासदी थी, बल्कि समस्त सभ्यता के इतिहास में ज्ञान-विनाश का प्रतीक बन गई।


मोहम्मद बख्तियार खिलजी का जन्म अफगानिस्तान के खुरासान क्षेत्र में हुआ था। वह तुर्क-खिलजी वंश का था और दिल्ली सल्तनत की नींव रखने वाले कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन कार्य करता था। उसकी महत्वाकांक्षा अत्यधिक थी  - वह केवल सैनिक विजय नहीं, बल्कि भारतीय भूभाग पर इस्लामी सत्ता स्थापित करने के लिए भी कटिबद्ध था। 1193-1206 के बीच उसने बिहार और बंगाल पर अनेक हमले किए, जिनमें उसका उद्देश्य केवल लूट और दमन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहरों का विनाश भी था।


नालंदा की स्थापना 5वीं शताब्दी में कुमारगुप्त प्रथम ने की थी।यहाँ 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 2,000 से अधिक आचार्य निवास करते थे।यहाँ बौद्ध दर्शन, संस्कृत साहित्य, तर्कशास्त्र, चिकित्सा विज्ञान, ज्योतिष, गणित, और दर्शन की उच्चतम शिक्षा दी जाती थी।चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान और श्रीलंका से विद्यार्थी यहाँ अध्ययन करने आते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसकी महिमा का वर्णन करते हुए लिखा था कि "नालंदा में ज्ञान का ऐसा महासागर है, जिसमें पूरे विश्व की नदियाँ समा जाती हैं।"


लगभग 1199 ईस्वी के आसपास बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण किया। उसका सेनापति अली मर्दान नालंदा और विक्रमशिला के मार्गदर्शक स्थलों को जानता था।आक्रमण के दौरान खिलजी की सेना ने नालंदा विश्वविद्यालय को घेर लिया और उसकी विशाल पुस्तकालयों (Libraries) – “धर्मगंज”, “रत्नागार” और “रत्नरंजक” को आग के हवाले कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार वह आग तीन महीने तक जलती रही, क्योंकि वहाँ लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ रखे थे। उसने हजारों भिक्षुओं और विद्वानों की हत्या कर दी। कई बचे हुए आचार्य नेपाल, तिब्बत और दक्षिण भारत की ओर भाग गए और वहाँ उन्होंने भारतीय ज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाया।

  • भारत में प्राचीन शिक्षा प्रणाली का एक महान केंद्र समाप्त हो गया।

  • बौद्ध धर्म को भारत में घोर आघात पहुँचा और वह धीरे-धीरे लुप्त होने लगा।

  • अनगिनत प्राचीन ग्रंथ – वैदिक, वैद्यक, खगोल, गणित और दर्शन – हमेशा के लिए खो गए।

  • भारत की “विश्वगुरु” की पहचान को गहरा धक्का पहुँचा।

इतिहासकारों के शब्दों में, “नालंदा का जलना केवल पुस्तकों का जलना नहीं था, बल्कि मानव सभ्यता के ज्ञान का दहन था।”


  • मिन्हाज-उस-सिराज की “तबकात-ए-नासिरी” में बख्तियार खिलजी के बिहार आक्रमण का विवरण मिलता है।

  • तिब्बती इतिहासकार तारानाथ और दिपंकर श्रीज्ञान (अतीशा) के ग्रंथों में भी इस विनाश की चर्चा है।

  • आधुनिक विद्वानों जैसे डॉ. आर.के. मुखर्जी, एच.जी. रावलसन, और आर.सी. मजूमदार ने नालंदा विनाश को भारतीय शिक्षा इतिहास की सबसे बड़ी हानि बताया है।


  • 21वीं शताब्दी में भारत सरकार और यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा (Rajgir, Bihar) ने मिलकर “नालंदा यूनिवर्सिटी” का पुनर्निर्माण किया है।

    यह आधुनिक संस्थान प्राचीन नालंदा की परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है  -  एक वैश्विक शैक्षणिक और दार्शनिक संवाद का केंद्र बनकर।


    बख्तियार खिलजी का नाम इतिहास में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्ज है जिसने भारतीय संस्कृति और ज्ञान को नष्ट करने का प्रयास किया।
    परंतु, नालंदा की राख से जो शिक्षा की चिंगारी निकली, उसने मानवता को यह संदेश दिया कि —
    “ज्ञान को आग से नहीं जलाया जा सकता, क्योंकि वह चेतना में जीवित रहता है।”


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