Monday, October 27, 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय संस्कृति

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय संस्कृति












भारत की पहचान केवल उसके भौगोलिक स्वरूप से नहीं, बल्कि उसकी जीवंत संस्कृति, आध्यात्मिक परंपरा और सामाजिक जीवन से होती है। इसी संस्कृति को पुनर्जीवित करने का कार्य 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने किया। संघ ने भारतीयता को केवल एक विचार नहीं, बल्कि जीवन-शैली के रूप में प्रस्तुत किया।

भारतीय संस्कृति का स्वरूप और आधार


भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम और सर्वाधिक जीवन्त संस्कृति है। इसका मूल भाव “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात् समस्त मानवता को एक परिवार मानना है। यह संस्कृति धर्म, अध्यात्म, कर्तव्य, सहिष्णुता, और समरसता पर आधारित है।

मुख्य विशेषताएँ :

  1. अध्यात्मवाद – जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मा की उन्नति।

  2. धर्मनिष्ठा – आचरण में सत्य, अहिंसा और न्याय।

  3. परिवार-केन्द्रित जीवन – परिवार को संस्कारों का केंद्र मानना।

  4. प्रकृति-सम्मान – पेड़, पशु, जल, भूमि सबको देवतुल्य मानना।

  5. कर्तव्य-प्रधानता – अधिकार से पहले कर्तव्य का भाव।

भारतीय संस्कृति केवल पूजा-पद्धति नहीं है, यह जीवन के हर क्षेत्र में “सत्य को आचरण में लाने की कला” है।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना और उद्देश्य


संघ की स्थापना :


यह तो सर्वविदित है कि  वर्ष 1925 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय जीवन में संगठन, अनुशासन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य से RSS की स्थापना की।

मुख्य उद्देश्य :

  • भारत को उसकी सांस्कृतिक चेतना से जोड़ना।

  • समाज में संगठन और आत्मबल का निर्माण।

  • प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रभक्ति और चरित्रबल का विकास।

संघ की शाखा :
संघ का सबसे सशक्त माध्यम है  -  शाखा
यह एक ऐसा दैनिक अभ्यास है जिसमें प्रार्थना, व्यायाम, खेल, गीत, और चर्चा के माध्यम से देशभक्ति, अनुशासन, और संस्कृति का संस्कार दिया जाता है।

संघ का आदर्श है —

“संघर्ष से नहीं, संस्कार से राष्ट्र निर्माण।”


भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में संघ


संघ ने भारतीय संस्कृति को केवल शास्त्रों में नहीं, बल्कि व्यवहार में जीवित रखा।
इसने भारतीय समाज के सभी वर्गों - ग्राम, शहर, गरीब, अमीर, विद्यार्थी, किसान, मजदूर को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया।

संघ द्वारा प्रसारित सांस्कृतिक मूल्य :

  1. संस्कारों की रक्षा – गुरु, माता-पिता, राष्ट्र का सम्मान।

  2. सेवा की भावना – बाढ़, भूकंप या महामारी में निस्वार्थ सेवा।

  3. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता – भारतीय उत्पादों के प्रति आग्रह।

  4. सामाजिक समरसता – जाति, भाषा, धर्म से ऊपर उठकर एकता।

  5. चरित्र निर्माण – नैतिकता और अनुशासन को सर्वोच्च स्थान।

संघ का दृष्टिकोण:
संघ मानता है कि राष्ट्र केवल राजनीतिक संस्था नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक शक्ति है, जिसकी आत्मा भारतीय संस्कृति में बसती है।



संघ के कार्यक्षेत्र और सांस्कृतिक प्रसार


संघ ने अपनी विचारधारा को समाज के विभिन्न क्षेत्रों में संस्थाओं के रूप में फैलाया  - 

क्षेत्र

प्रमुख संगठन

कार्यक्षेत्र

शिक्षा

विद्या भारती

संस्कारयुक्त शिक्षा

श्रमिक

भारतीय मजदूर संघ

श्रमिकों में देशभक्ति और आत्मसम्मान

किसान

भारतीय किसान संघ

ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भर कृषि

समाज सेवा

सेवा भारती

निर्धन, अनाथ, और आपदा-ग्रस्त लोगों की सेवा

धर्म-संवर्धन

विश्व हिन्दू परिषद

हिन्दू एकता और सांस्कृतिक संरक्षण

इन संस्थाओं के माध्यम से संघ ने यह सिद्ध किया कि भारतीय संस्कृति कोई पुरातन विचार नहीं, बल्कि जीवन का व्यावहारिक दर्शन है।

भारतीय संस्कृति और संघ का भविष्य दृष्टिकोण


संघ का लक्ष्य केवल वर्तमान समाज का सुधार नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में संस्कार और आत्मविश्वास का बीजारोपण है।
RSS मानता है कि भारत तभी सशक्त बनेगा जब—

  • समाज में जाति, पंथ, और वर्ग की दीवारें टूटें,

  • हर व्यक्ति अपने कर्तव्य को राष्ट्र के लिए समर्पित करे,

  • विज्ञान और अध्यात्म में संतुलन स्थापित हो।

संघ का सपना है —

“एक ऐसा भारत जो विश्व को केवल शक्ति नहीं, बल्कि संस्कृति और शांति का मार्ग दिखाए।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय संस्कृति का जीवन्त प्रतिनिधि है।
उसने यह प्रमाणित किया है कि संस्कृति का पुनर्जागरण केवल ग्रंथों से नहीं, बल्कि संस्कार, सेवा, और संगठन से होता है।
संघ के माध्यम से भारतीयता एक बार पुनः अपने गौरवशाली स्वरूप में प्रकट हो रही है।

“भारत माता केवल भूमि नहीं  -  यह संस्कृति की मूर्ति है।”

संघ का संदेश है -  “संगठित, संस्कारित और सशक्त भारत ही विश्वगुरु बनेगा।”



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