Friday, October 17, 2025

आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा और हंस पत्रिका


आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा (Acharya Rabindra Nath Ojha )और हंस पत्रिका (Hans Hindi Magazine)



 

हमारे बाबूजी #आचार्यरवीन्द्रनाथओझा का #अक्षरप्रकाशन से प्रकाशित #मुंशीप्रेमचंद द्वारा स्थापित #हंसपत्रिका से काफी गहरा रिश्ता रहा है और उसके संपादक #राजेंद्रयादव जी से अत्यंत आत्मीय। 1986 से इस पत्रिका के संपादन का भार आदरणीय राजेंद्र यादव जी ने ‌संभाला। बाबूजी हंस पत्रिका बड़े ही मनोयोग से पढ़ते ‌थे और अपनी प्रतिक्रिया पत्र के‌‌ माध्यम‌ से निरंतर अभिव्यक्त किया करते थे जो हंस‌ में बराबर छपा करते थे। दोनों की विचारधारा में‌ मतभेद होने ‌के‌ बावजूद ‌दोनोंं मे मनभेद नहीं ‌रहता था और बाबूजी की प्रतिक्रिया भरे पत्र को हंस में‌ उचित स्थान मिला करता‌ था।

बाबूजी के विस्तार से‌ लिखे समीक्षात्मक पत्रों‌ से राजेंद्र यादव इतने प्रभावित थे कि 'प्रबुद्ध पाठक' के‌ रुप में पहली बार उन्होंने एक‌ पूरा पृष्ठ वह भी‌ सचित्र बाबूजी को‌ समर्पित किया था। जानना चाहेंगे वह अंक‌ कौन सा‌‌ था ? वह अंक‌ था 1989 का अक्टूबर अंक।

मुझे बहुत ही तीव्र इच्छा थी हंस के कार्यालय में जाने‌ की। संयोग‌ से‌ एक‌‌ सम्पर्क सूत्र मिला, #वीणाउनियाल जी‌ से बात ‌हुई और मैं‌ दिल्ली के #दरियागंज‌ में‌ ‌1 #अंसारीरोड पर स्थित हंस ‌ के कार्यालय में‌ पहुंच गया 17 अक्टूबर को। वीणा जी‌ मेरी प्रतीक्षा कर रहीं ‌थीं और मुस्कुराते हुए ‌उन्होंने‌ मेरा स्वागत किया - बहुत सहज भाव से, आत्मीयता से । लगा‌ ही नहीं कि मैं‌ पहली बार ‌मिल रहा‌ हूं। वीणा जी बाबूजी द्वारा लिखे पत्रों से पूर्व परिचित थींं क्योंकि वे‌ बहुत‌ पहले से‌ ही‌‌ हंस से‌ जुड़ी हुई हैं।
फिर उन्होंने मुझे अभी कुछ दिन पहले ही ज्वाइन किए अपने कार्यकारी‌ संपादक‌ से भी‌ मिलवाया। उनसे ‌छोटी‌ सी ‌मुलाकात बहुत ही प्यारी मुलाकात रही । फिर मैंने हंस के‌ कुछ अंक‌ देखे और उनमें ‌से कुछ अंको‌ में बाबूजी के पत्र - "रवीन्द्रनाथ ओझा, बेतिया, बिहार"। आंखें नम हो गईं। मैं भावुक हो गया और मैं‌ चला गया फ्लैशबैक में । " मैं‌ देख रहा‌ हूं बाबूजी को‌ हंस पढ़ते हुए और पत्र लिखते हुए - बिजली भी नहीं है, गर्मी‌ भी‌ बहुत‌ है, बाबूजी अस्वस्थ भी‌ हैं पर अध्ययन, मनन‌ और लेखन‌ का कार्य निर्बाध और निरंतर चल रहा है।"
कुछ चित्र आपके लिए।




























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