सूर्योपासना का अनोखा पर्व छठ (Chhath) अब लोकल (Local) से ग्लोबल (Global) हो गया है
भारतीय संस्कृति की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ हर पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि संस्कार और दर्शन भी होता है। इन्हीं में से एक है छठ पर्व, जो सूर्योपासना की वह परंपरा है जहाँ श्रद्धा, शुद्धता और पर्यावरण का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। कभी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल की घाटियों तक सीमित यह पर्व अब पूरी दुनिया में भारतीयता का प्रतीक बन गया है। सच ही कहा जाए तो छठ अब लोकल से ग्लोबल हो गया है।
छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में उपासक (व्रती) सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों समय सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह न केवल एक धार्मिक साधना है, बल्कि शरीर और मन की शुद्धि का साधन भी है।
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है - इसमें किसी पुरोहित की आवश्यकता नहीं, हर व्यक्ति स्वयं पूजा करता है। यही इसकी लोकपद्धति और जनसंस्कृति की आत्मा है।
आज प्रवासी भारतीय जहाँ-जहाँ बसे हैं, वहाँ-वहाँ छठ का लोकगान और दीपों की पंक्तियाँ दिखाई देती हैं।
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लंदन के टेम्स नदी के किनारे,
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न्यूयॉर्क के हडसन तट पर,
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दुबई, टोरंटो, सिडनी, कुआलालंपुर, डबलिन
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और मॉरीशस तथा फिजी के द्वीपों पर भी अब छठ पर्व पूरे उत्साह से मनाया जाता है।
छठ पर्व प्रकृति की आराधना का प्रतीक है। सूर्य, जल, वायु और मिट्टी - इन सभी तत्वों का पूजन होता है।
छठ की एक और सुंदर बात यह है कि इसमें जाति, वर्ग, संपत्ति या पद का कोई भेद नहीं। अमीर-गरीब सब एक साथ घाट पर खड़े होकर सूर्य को प्रणाम करते हैं - यह है समरसता का सजीव उदाहरण।
इसलिए कहा जा सकता है -
“छठ अब केवल एक पर्व नहीं, यह विश्व-स्तर पर भारतीय संस्कृति की नई पहचान बन चुका है।”
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