Wednesday, April 1, 2020

प्रो (डॉ) रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तिपरक ललित निबंध 'रमाकान्त उपाध्याय' पर 'समालोचना' - डॉ सुशीला ओझा



 प्रो (डॉ) रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तिपरक ललित निबंध 'रमाकान्त उपाध्याय'  पर 'समालोचना' - डॉ सुशीला ओझा  

संस्मरण और रेखाचित्र का सुन्दर समन्वय। रमाकान्त जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था।  बाह्य सौन्दर्य के साथ आंतरिक संबंधों का मणिकांचन योग विरले में होता है।  गौर वर्ण,लम्बा-चौड़ा शरीर  ईश्वर ने बड़े कलात्मकता के साथ, उत्कृष्टता के साथ चेहरे के नाक नक्श को उत्कीर्ण किया था - एक चमत्कारी व्यक्तित्व, एक आकर्षक व्यक्तित्व, सौम्य-शालीनता का  विविधरंगी व्यक्तित्व - शरत्पूर्णिमा की चाँद की तरह पावन, उज्ज्वल, धवल, भव्य व्यक्तित्व  -   सहृदयता, आत्मीयता, मधुरता, प्रेम सौहार्द्र , स्नेह की अन्तः सलिला की  पवन धारा से अवगाहन कराता व्यक्तित्व  -  प्रेम पयोधि में निमग्न कराता, सांचे में ढला निखरा सँवरा व्यक्तित्व - दर्शन अध्यात्म की ऊंचाईयों को स्पर्शित करता, ऊर्जस्वित करता, मौलिकता  की गहराई को नापता व्यक्तित्व -  लगता है विभु ने, ब्रह्मा ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से अपने कौशल से  रूपात्मक, सकारात्मक, रचनात्मक, प्रखर,धवल, शीतल, मधुर, स्निग्ध तत्व को एक जगह उड़ेल दिया है -  सम्पूर्ण उत्कृष्टता का बिम्ब, शिल्प मनोयोग के साथ धरती पर अवतरित किया है। कम पढ़लिखकर भी विद्वता की रश्मियों से भास्वर  होना अद्भुत है।  सारस्वत का ज्ञान वैभव और वाग्मिता दोनों अपराजेय है। पुस्तकालय, जीवन बीमा,  प्रकृति-सौन्दर्य  के साधक।  सभी साधनाओं में अपने को माँजा है, निखारा है, महिमा मंडन किया है।  इस पारसमणि के स्पर्श से सभी क्षेत्र को कसौटी पर कसकर अपनी भव्यता के सूर्य के सिन्दूरी रंग से एक पावनता का श्रेय दिया।  संगठनात्मक शक्ति, भावनात्मक शक्ति, बौद्धिकता, कलात्मकता सुनियोजन की अद्भुत क्षमता एक ही व्यक्तित्व में ठहरकर अलौकिक अनुभूति के सरित  मणि पद्मराग से विभूषित थी। श्रद्धा और इड़ा के  संयमित, संतुलित रूप के दोनों पलड़े बिलकुल बराबर। यानी कि एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व कहीं एक जगह आकर सिमट गया है  - तो उस विराटता का दर्शन एक ही बिन्दु पर ठहर जाता है। ऐसा ही प्रखर, उदारवेत्ता, मानवीय गुणों से श्री संपन्न व्यक्तित्व है रमाकान्त उपाध्याय जी का।  कोटि-कोटि नमन उस महान आत्मा को। उस महान आत्मा महापुरुष को समझने परखने, निरीक्षण, परीक्षण, दीक्षित  करने वाला कोई महापुरुष ही होता है। हीरे को पहचानने वाला विरला पुरुष ही होता है।  किसी के बाह्य और अन्तस की भावभूमि की गहराई में उतरकर शब्दों को शुभ्र मोतियों से टाँककर जीवंतता के नगीने में उत्कीर्ण करना - आरती के पारदर्शी  थाल में धूप, अगरबत्ती, कुमकुम ,कर्पूर से जीवन को अमरता के पद पर प्रतिष्ठापित करना एक अलौकिक शक्ति है और इस  विभूति को सुगंधमयता की परिपूर्णता के सुमेरु पर पहुँचाने का श्रेय महान विभूति  प्रो (डॉ ) रवीन्द्र  नाथ ओझा जी को है।  दोनों महानता के सुमेरु शिखर को मेरा भावपूर्ण, श्रद्धापूरित श्रद्धांजलि।  रवीन्द्र नाथ ओझाजी को कोटि कोटि नमन जिन्होंने अपनी लेखनी के पावन मसि से उपाध्याय जी को अमर कर दिया। 


सर्वाधिकार (C)    डॉ सुशीला ओझा 
वरिष्ठ साहित्यकार व संस्कृति कर्मी 
बेतिया, पश्चिम चम्पारण, बिहार 
(व्हाट्स अप से प्राप्त) 





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