हे नव संवत्सर !!! - डॉ सुशीला ओझा
हे नव संवत्सर!
नव -ऊर्जा के सौन्दर्य संवर्द्धक, नैसर्गिक नैवेद्यों से पुलकित , पल्लवित , कुसमित अन्तस को प्रक्षालित संतुलित , संयमित भावों से रोम रोम को ऊर्जस्वित करती -
नव्य धरा का नवल कलेवर नूतनता के फूलों से टंकित, मध्य दिवस की मदिर मलयानिल, मदमस्त हुआ जीवन अंतस -
इस सुरमयी , मनोहारी, मुग्धकारी , रमणीय , प्रकृति के बीच किसने तोड़ा अनुशासन की कड़ी , साँसों में जहाँ सुगंधमयता, पवित्रता , भव्यता , दिव्यता के भावों का विस्तार था -
इन तरंगों को किसने छेड़ने का दुस्साहस किया ?किसके गर्भ के संक्रमण से सारा विश्व संक्रमित है, सम्पूर्ण मानवता दहशत की गठरी बन गई है -
रक्तबीज के रक्त धरती से उत्पन्न होते हैं पर यह प्रलयंकारी साँसों के संक्रमण का मिसाइल दाग रहा है -
स्वच्छता , पवित्रता के मापदंडों का एक अजस्र प्रवाह,
घंटी ,घड़ियाल , थाली , डमरू का समवेत ध्वनि निनाद से संपूर्ण राष्ट्र विविधता में एकता की डोर से दृढ़संकल्पित , अटूटता , अडिगता का मिसाल -
इसी नववर्ष में मत्स्य अवतार लेकर प्रलय से सृष्टि को बचाया था,
हमारे प्रधान मंत्री ने राष्ट्र की रक्षा के लिए जनता कर्फ्यू का आह्वान किया है , इस विषाक्तता के विनाश के लिए कठोर नियम,संयम , कानून , दृढ निश्चयता, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए आत्मसंयमता के दायरे में रखने की निर्णायक भूमिका निभाई है।
राष्ट्र की रक्षा बहुत बड़ी चुनौती है
इस वासंतिक नवरात्र में , नववर्ष के नूतन परिवेश के हृदयंगम दृश्यों से हम वंचित घरों में दुबकने के लिए मजबूर हैं -
प्रफुल्लित प्रकृति के बीच
किसने हवा को विषाक्त किया ?
आशा ,विश्वास ,उम्मीदों के वासंतिक
नवरात्र में शक्ति स्वरूपा का शुभागमन
इस प्रलयंकारी , महामारी के
दुष्कृत्यों , विषवमित , जहरीली , लपलपाती जिह्वा से
मानवता की रक्षित कर विजयिनी
राष्ट्र रक्षा का देदीप्यमान कवच देवी के समक्ष है
वे सारे विषाक्तता के चक्रव्यूह के भेदन में समर्थ हैं -
अहं राष्ट्री संगमनी
नमस्ते स्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी।।
डॉ सुशीला ओझा
वरिष्ठ साहित्यकार व संस्कृति कर्मी
बेतिया, प.चम्पारण, बिहार
|
No comments:
Post a Comment