"सुर्ख लाली आसमान में छाई, आँख खुली दुनिया मुस्काई " -
डॉ शिप्रा मिश्रा (स्वर्णिम)
डॉ शिप्रा मिश्रा (स्वर्णिम )
सुर्ख लाली आसमान में छाई ,
आँख खुली दुनिया मुस्काई।
पूरब में सूरज जब छाया ,
लोगों ने भगवा लहराया।
मन ही मन फूले इतराए ,
इस जगती में वे भरमाये।
सरसों से बिछी न्यारी धरती,
दुनिया रस -गंध -रूप पर मरती।
भौं रे नर्तक कोयल गाती ,
मन में मधुरस है छलकाती।
मदमत्त झूमता मतवाला ,
आया वसंत पीला -पीला।
दिन चढ़े मतवाले मेघ छाए ,
ओर -छोर काली घटा लहराए।
हरखने लगे सब पात -पात ,
सिहरने लगे हैं सबके गात।
उमड़ -घुमड़ आए बदरा रे ,
आसमान हो गए कजरारे।
धरती का रूप -रंग बदला ,
मन मयूर थिरका मचला।
सावन की छाई हरियाली ,
इंद्र धनुष की छटा निराली।
पहनी धरती ने चुनर धानी ,
हरा रंग सबने पहिचानी ।
ईश्वर ने रची सतरंगी दुनिया ,
रंगों के बिना बेरंगी दुनिया।
इन रंगों को तुम मत बांटो ,
अपने पैरों को मत काटो।
रंगों का तुम राज जान लो ,
इनसे सकल समाज जान लो।
मिलते रंग इंद्रधनुष बनाता ,
इन रंगों से ही मस्ती छाता।
रंग हिन्दू है ना मुसलमान ,
इन रंगों से अपनी पहचान।
रंगों से मन को भिंगाओ तुम ,
एक यही गीत बस गाओ तुम।
सूरज की लाली बानी रहे ,
हरियाली चूनर सजी रहे।
काले मेघ लहराते रहें ,
आसमान पर छाते रहें।
केसरिया अपनी आन बने,
पीला सबकी पहचान बने।
होली यही सिखाता है ,
रंगों का कलश गिराता है।
सब मतभेद मिटाओ तुम ,
नेह -प्रेम बरसाओ तुम।
ऊब -डूब उतराओ तुम ,
आँखों में बिछ जाओ तुम।
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