Sunday, March 8, 2020

"सुर्ख लाली आसमान में छाई,आँख खुली दुनिया मुस्काई " - डॉ शिप्रा मिश्रा (स्वर्णिम)

"सुर्ख लाली आसमान में छाई, आँख खुली दुनिया मुस्काई " - 
डॉ शिप्रा मिश्रा (स्वर्णिम)


डॉ शिप्रा मिश्रा (स्वर्णिम )

सुर्ख लाली आसमान में छाई ,
आँख खुली दुनिया मुस्काई। 
पूरब  में  सूरज   जब  छाया ,
लोगों  ने  भगवा  लहराया। 

मन ही मन फूले  इतराए ,
इस जगती में वे भरमाये। 
सरसों से बिछी न्यारी धरती, 
दुनिया रस -गंध -रूप पर मरती। 

भौं रे नर्तक कोयल गाती ,
मन में मधुरस है छलकाती।
मदमत्त झूमता मतवाला ,
आया वसंत पीला -पीला। 

दिन चढ़े मतवाले मेघ छाए ,
ओर -छोर काली घटा लहराए। 
हरखने लगे सब पात -पात ,
सिहरने लगे हैं सबके गात। 

उमड़ -घुमड़ आए बदरा रे ,
आसमान हो गए कजरारे। 
धरती का रूप -रंग बदला ,
मन मयूर थिरका मचला। 

सावन की छाई हरियाली ,
 इंद्र धनुष की छटा निराली।
पहनी धरती ने चुनर धानी ,
  हरा रंग सबने पहिचानी  ।  

ईश्वर ने रची सतरंगी दुनिया ,
रंगों के बिना बेरंगी दुनिया।
इन रंगों को तुम मत बांटो ,
अपने पैरों को मत काटो। 

रंगों का तुम राज जान लो ,
इनसे सकल समाज जान लो। 
मिलते रंग इंद्रधनुष बनाता ,
इन रंगों से ही मस्ती छाता। 

रंग हिन्दू है ना मुसलमान ,
इन रंगों से अपनी पहचान। 
रंगों से मन को भिंगाओ तुम ,
एक यही गीत बस गाओ तुम। 

सूरज की लाली बानी रहे ,
हरियाली चूनर सजी रहे। 
काले  मेघ  लहराते   रहें ,
 आसमान   पर  छाते रहें। 

केसरिया अपनी आन बने,
पीला सबकी पहचान बने। 
होली   यही   सिखाता है ,
रंगों का कलश गिराता  है। 

सब मतभेद मिटाओ तुम ,
नेह -प्रेम बरसाओ तुम। 
ऊब -डूब उतराओ तुम ,
आँखों में बिछ जाओ तुम। 










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