Sunday, April 17, 2016

Constituentization of M.J.K. College Bettiah Bihar : Prof Rabindra Nath Ojha's Unforgettable Contribution

शिक्षक नेता प्रो रवीन्द्र नाथ ओझा जी
                                   - जे. के. पाण्डेय  




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प्रो रवीन्द्र नाथ ओझा  (धोती -कुरता में ) थरुहट प. चम्पारण  (बिहार भारत ) में
चित्र : डॉ अजय कुमार ओझा



'ओझा जी ' परिचित नाम है।  महारानी जानकी कुँअर  कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष, स्वतन्त्र, निष्पक्ष और निर्भय शिक्षक एवं चम्पारण के लोकप्रिय व्यक्तित्व के रूप में वे घर - घर में जाने जाते हैं। वे अपने को केवल अंग्रेजी विभाग तक ही सीमित नहीं रखे वरन हिन्दी और भोजपुरी साहित्य के विकास एवं संवर्द्धन  में भी अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते रहे हैं।  सचमुच में, ओझा जी , पूरा नाम रवीन्द्र नाथ ओझा, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं , समाज की कई दिशाओं  में उनकी प्रतिभा अभिव्यक्त  होती रही है। 


एम. जे. के. कॉलेज बेतिया प. चम्पारण बिहार भारत
चित्र : डॉ अजय कुमार ओझा 




मुझे प्रो रवीन्द्र नाथ ओझा का विगत 40 वर्षों से सानिध्य और स्नेह मिलता रहा है। शिक्षक - नेता के रूप में उन्हें निकट से देखने का अवसर मिला है क्योंकि शिक्षक संघ की गतिविधियों  से मैं प्रारम्भ से ही जुड़ा हुआ था। उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष सदैव आकर्षित करता रहा , प्रेरित करता रहा है। मैं उन दिनों की  चर्चा कर रहा हूँ जब यह  कॉलेज बिहार विश्वविद्यालय का एक प्रमुख सम्बद्ध महाविद्यालय था। आज उदारीकरण के  युग में निजी संस्थाओं तथा क्षेत्रों की प्राथमिकता बढ़ती जा रही है लेकिन उस समय शिक्षक  संघ के नेतृत्व में निजी प्रबंधन की आलोचना की जाती  थी।  शिक्षक कम या अधिक शासी निकायों  के उत्पीड़न से प्रभावित हुआ करते थे। शिक्षण  - संस्थानों में भेदभाव और दो   मापदंड की धाराएं थी। ओझा जी स्थानीय शिक्षक संघ के  सचिव थे , उन्होंने अपनी रचनात्मक और शक्तिशाली भूमिका द्वारा कॉलेज की मर्यादाओं का संरक्षण किया और दूसरी ओर शासी निकाय पर न्यायपूर्ण नियंत्रण बनाये रखा। ओझा जी, पी.झा, अमर जी जैसे व्यक्तित्व की उपस्थिति में निजी प्रबंध के दुष्प्रभाव यहाँ दिखाई नहीं पड़े। ओझा जी के रूप में विश्वविद्यालय के अंतर्गत कॉलेज को एक नया व्यक्तित्व मिला। 




एम.जे. के. कॉलेज बेतिया प. चम्पारण बिहार भारत
चित्र: डॉ अजय   कुमार ओझा 




नेता समाज को दिशा देता है।  ओझा जी ने शिक्षक नेता के रूप में स्थानीय शिक्षक और कॉलेज -प्रशासन को नई  दिशा दी। कॉलेज में नया विभाग - मनोविज्ञान विभाग खुल रहा था।  कॉलेज -प्रशासन द्वारा नए विभाग के लिए शिक्षक की नियुक्ति चर्चित थी। शिक्षक संघ के सचिव और सम्मानित नेता के रूप में उन्होंने आमरण भूख हड़ताल की घोषणा कर दी।  वे कॉलेज की कमज़ोर वित्तीय स्थिति को देखते हुए नए विभाग के खुलने के पक्ष में नहीं थे। उधर कॉलेज प्रशासन भी अपने निर्णय के प्रति अडिग था।  कई प्रलोभनों को नकारते हुए ओझा जी - तत्कालीन स्थानीय शिक्षक के सचिव , भूख हड़ताल पर चले गए। प्रारंभिक चरण में सचिव ओझा जी को शिक्षकों का विरोध सहना पड़ा , क्योंकि यह उनका निजी निर्णय था।  लेकिन भूख - हड़ताल के बाद नई स्थिति पैदा हो गई।  लगभग सभी शिक्षक उनके पक्ष में सक्रिय हो गये। तत्कालीन दर्शन शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ के. के. वर्मा भी भूख हड़ताल पर बैठ गये। ओझा जी का स्वास्थ्य धीरे -धीरे गिरने लगा।  शहर हो या देहात हर क्षेत्र के बच्चे -जवान ओझा जी को देखने आने लगे।  महिलाओं की भी सहभागिता बढ़ने लगी। महाविद्यालय - परिसर में बढ़ती हुई भीड़ , ओझा जी का जन-समर्थन और दृढ़ता, और गिरते हुए  स्वास्थ्य के सामने कॉलेज प्रशासन को झुकना पड़ा। चम्पारण के सम्मानित नेता केदार पाण्डेय  आये। भूख हड़ताल समाप्त हुई और नया मनोविज्ञान विभाग खुलना बंद हो गया। 

 ओझा जी की सफल भूख हड़ताल ने   इस महाविद्यालय की   दिशा को एक नया मोड़ दिया। कॉलेज की  गतिविधियों में श्री केदार पाण्डेय की  अभिरुचि बढ़ी। बाद में, पाण्डेय  जी मुख्य मंत्री बने। ओझा जी के बार -बार आग्रह करने पर मुख्य मंत्री ने पश्चिम  चम्पारण के तत्कालीन जिलाधीश हरिशंकर प्रसाद  सिंह को प्रबन्ध समिति की बैठकों में हमेशा उपस्थित  होने  को कहा। उन दिनों पश्चिम चम्पारण के जिलाधीश प्रबन्ध  समिति के अध्यक्ष थे।  जिलाधीश की उपस्थिति से ही कॉलेज प्रशासन की स्वेच्छाचारिता मर्यादित हो गई।  ओझा जी का ही प्रयास कहा जा सकता है कि पश्चिम चम्पारण के जिलाधीश ने सरकार को अपने  पत्र में स्पष्ट कर दिया कि  अभी व्यावहारिक दृष्टि से महाविद्यालय भवन, सम्पत्ति   कॉलेज की है। यह पत्र कॉलेज को अंगीभूत (Constituent)  बनने में    आधार बना।

आज  ओझा जी अवकाश प्राप्त कर चुके हैं लेकिन महाविद्यालय के व्यक्तित्व पर उनका प्रभाव स्पष्ट देखा जाता रहेगा। वे शिक्षक संघ के लिए प्रेरणा बने रहेंगे। शिक्षक नेता के रूप में महाविद्यालय परिवार उनकी सेवाओं को याद कर सदैव गौरवान्वित महसूस   करता रहेगा। 





"विप्राः बहुधा वदन्ति" 'रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय  आकलन' पुस्तक से उदधृत



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