Wednesday, April 13, 2016

Prof Rabindra Nath Ojha "O Shikharasth Manishi"

प्रो. रवीन्द्र नाथ ओझा : ओ शिखरस्थ मनीषी 
                                             - डॉ. स्वर्णकिरण 





शिखरस्थ  मनीषी प्रो  रवीन्द्र  नाथ ओझा
चित्र  : डॉ अजय कुमार ओझा 





ओ शिखरस्थ मनीषी ,
जीवनयात्रा में व्यवधान अगर आये 
तो स्वयं ख़त्म हो गये ,
नए अनुभव बटोरते रहे रोज़ तुम, जगह -जगह। 
स्वर्गलोक में  नहीं , ठोस धरती पर चलते रहे ,
कल्पनाएँ  उभरीं तो खोये कुछ 
पर कटु यथार्थ से कहाँ कभी तुमने अपनी आँखे मूंदी ?
युग परिवर्तन का सपना देखते -संजोते रहे ,
अध्ययन का व्रत चलता रहा निरंतर ,
मानववादी जीवन - दर्शन का गायन 
समय -समय पर सम्मुख आकर 
करता रहा लोग - बाग  को सुरभित -आप्यायित। 
भोजपुरी संस्कृति के हामी ,
भारतीय संस्कृति से कहाँ विरोध तनिक भी,
भोजपुरी माटी का ऋण तुमने उतार रख दिया,
"भोजपुरी संस्कृति --" पर लिख दो शब्द। 
जुड़े मंचों से , आंदोलन से ,
धन्य  लघुकथा आंदोलन हो गया 
विचारक रूप तुम्हें पाकर  के। 
लघुकथा की आत्मा पर बल देने वाले ,
तथ्य -कथ्य दोनों पर दृष्टि समान रहे 
तो आकर्षण होना , सच , मुश्किल कहाँ ?
विश्वबंधुता  को महत्व देने वाले 
ऋषि-मुनियों का आदर्श निभाने वाले 
निः स्पृहता  मूर्त्ति ,
देखते आँख फाड़कर लोग तुम्हें ,
गौरव जननी के, जन्मभूमि के , चम्पारण के 
या गौरव तुम सभी जगह के ,
भेदभाव से परे,
एक अदभुत मानक साहित्य - जगत के। 


"विप्राः बहुधा वदन्ति" 'रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय  आकलन' पुस्तक से उदधृत





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