Sunday, April 24, 2016

Arresting View of Tharuhat (Tharu Tribe Belt)of West Champaran Bihar I...



Video uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

This video clip "From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha"  captures alluring, attracting, arresting view of Tharuhat of West Champaran district of Bihar India. The land of Tharu tribe is very fertile and beautiful near the foothills of Shivalik  on the Indo-Nepal border.

Now Smooth Drive-down in Tharuhat of West Champaran Bihar India



Video uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

This video clip "From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha"  captures the moment while driving down to Bakhari Bazaar village on Ramnagar - Gobardhana road  of Tharuhat of West Champaran district of Bihar India . Earlier there was no good road , no transport , no bridge on the river so very difficult to visit this area. And see the greenery on the either side of the road. Very  fertile land hence mushrooming of big farms by grabbing the land of the poor, innocent & simple Tharu tribe by the outsiders "bajians" in local parlance.

Tharus of Bakhari Bazaar of West Champaran Chatting about Change in The...



Video Clip Uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

This video clip "From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha" captures the Tharus of  Bakhari Bazaar village of West Champaran Bihar India discussing about the change in their situation. They were very poor, struggling for their livelihood but now all the three brothers own motor-cycle and are employed also. They are pointing towards me as witness as I have been observing them and studying them for almost over three decades and also stayed in their hut for months together during eighties of the last century when this area happened to be quite indifferent, inaccessible, inhospitable and known to be Mini Chambal and also Lal Salam infested.

DISH TV IN THARUHAT (THARU TRIBE BELT) OF WEST CHAMPARAN IN BIHAR INDIA



Video uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

This video clip "From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha" takes the viewers to Bakhari Bazaar - a Tharu Tribe village  on Ramnagar-Gobardhana road in the Ramnagar Block   of West Champaran district of Bihar India  and shows that now Dish TV has also reached in this village  of erstwhile very inhospitable ignored  backward Tharuhat region. 

Friday, April 22, 2016

Capturing Not -to- be-seen-now Endangered Housebird Sparrow (Gauraiya)



Video uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

Sparrow (Gauraiya) has been constant companion in our journey, be it rural or urban, and has been associated with human settlements for around 10,000 years. So let us celebrate the spirit of togetherness by making effort to save this beautiful cute house bird. So let us "rise for sparrow". This rare video clip "From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha" happens to fortunately captures this house bird - chirping on a terrace in one of the cities of Bihar India.

Sunday, April 17, 2016

Constituentization of M.J.K. College Bettiah Bihar : Prof Rabindra Nath Ojha's Unforgettable Contribution

शिक्षक नेता प्रो रवीन्द्र नाथ ओझा जी
                                   - जे. के. पाण्डेय  




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प्रो रवीन्द्र नाथ ओझा  (धोती -कुरता में ) थरुहट प. चम्पारण  (बिहार भारत ) में
चित्र : डॉ अजय कुमार ओझा



'ओझा जी ' परिचित नाम है।  महारानी जानकी कुँअर  कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष, स्वतन्त्र, निष्पक्ष और निर्भय शिक्षक एवं चम्पारण के लोकप्रिय व्यक्तित्व के रूप में वे घर - घर में जाने जाते हैं। वे अपने को केवल अंग्रेजी विभाग तक ही सीमित नहीं रखे वरन हिन्दी और भोजपुरी साहित्य के विकास एवं संवर्द्धन  में भी अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते रहे हैं।  सचमुच में, ओझा जी , पूरा नाम रवीन्द्र नाथ ओझा, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं , समाज की कई दिशाओं  में उनकी प्रतिभा अभिव्यक्त  होती रही है। 


एम. जे. के. कॉलेज बेतिया प. चम्पारण बिहार भारत
चित्र : डॉ अजय कुमार ओझा 




मुझे प्रो रवीन्द्र नाथ ओझा का विगत 40 वर्षों से सानिध्य और स्नेह मिलता रहा है। शिक्षक - नेता के रूप में उन्हें निकट से देखने का अवसर मिला है क्योंकि शिक्षक संघ की गतिविधियों  से मैं प्रारम्भ से ही जुड़ा हुआ था। उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष सदैव आकर्षित करता रहा , प्रेरित करता रहा है। मैं उन दिनों की  चर्चा कर रहा हूँ जब यह  कॉलेज बिहार विश्वविद्यालय का एक प्रमुख सम्बद्ध महाविद्यालय था। आज उदारीकरण के  युग में निजी संस्थाओं तथा क्षेत्रों की प्राथमिकता बढ़ती जा रही है लेकिन उस समय शिक्षक  संघ के नेतृत्व में निजी प्रबंधन की आलोचना की जाती  थी।  शिक्षक कम या अधिक शासी निकायों  के उत्पीड़न से प्रभावित हुआ करते थे। शिक्षण  - संस्थानों में भेदभाव और दो   मापदंड की धाराएं थी। ओझा जी स्थानीय शिक्षक संघ के  सचिव थे , उन्होंने अपनी रचनात्मक और शक्तिशाली भूमिका द्वारा कॉलेज की मर्यादाओं का संरक्षण किया और दूसरी ओर शासी निकाय पर न्यायपूर्ण नियंत्रण बनाये रखा। ओझा जी, पी.झा, अमर जी जैसे व्यक्तित्व की उपस्थिति में निजी प्रबंध के दुष्प्रभाव यहाँ दिखाई नहीं पड़े। ओझा जी के रूप में विश्वविद्यालय के अंतर्गत कॉलेज को एक नया व्यक्तित्व मिला। 




एम.जे. के. कॉलेज बेतिया प. चम्पारण बिहार भारत
चित्र: डॉ अजय   कुमार ओझा 




नेता समाज को दिशा देता है।  ओझा जी ने शिक्षक नेता के रूप में स्थानीय शिक्षक और कॉलेज -प्रशासन को नई  दिशा दी। कॉलेज में नया विभाग - मनोविज्ञान विभाग खुल रहा था।  कॉलेज -प्रशासन द्वारा नए विभाग के लिए शिक्षक की नियुक्ति चर्चित थी। शिक्षक संघ के सचिव और सम्मानित नेता के रूप में उन्होंने आमरण भूख हड़ताल की घोषणा कर दी।  वे कॉलेज की कमज़ोर वित्तीय स्थिति को देखते हुए नए विभाग के खुलने के पक्ष में नहीं थे। उधर कॉलेज प्रशासन भी अपने निर्णय के प्रति अडिग था।  कई प्रलोभनों को नकारते हुए ओझा जी - तत्कालीन स्थानीय शिक्षक के सचिव , भूख हड़ताल पर चले गए। प्रारंभिक चरण में सचिव ओझा जी को शिक्षकों का विरोध सहना पड़ा , क्योंकि यह उनका निजी निर्णय था।  लेकिन भूख - हड़ताल के बाद नई स्थिति पैदा हो गई।  लगभग सभी शिक्षक उनके पक्ष में सक्रिय हो गये। तत्कालीन दर्शन शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ के. के. वर्मा भी भूख हड़ताल पर बैठ गये। ओझा जी का स्वास्थ्य धीरे -धीरे गिरने लगा।  शहर हो या देहात हर क्षेत्र के बच्चे -जवान ओझा जी को देखने आने लगे।  महिलाओं की भी सहभागिता बढ़ने लगी। महाविद्यालय - परिसर में बढ़ती हुई भीड़ , ओझा जी का जन-समर्थन और दृढ़ता, और गिरते हुए  स्वास्थ्य के सामने कॉलेज प्रशासन को झुकना पड़ा। चम्पारण के सम्मानित नेता केदार पाण्डेय  आये। भूख हड़ताल समाप्त हुई और नया मनोविज्ञान विभाग खुलना बंद हो गया। 

 ओझा जी की सफल भूख हड़ताल ने   इस महाविद्यालय की   दिशा को एक नया मोड़ दिया। कॉलेज की  गतिविधियों में श्री केदार पाण्डेय की  अभिरुचि बढ़ी। बाद में, पाण्डेय  जी मुख्य मंत्री बने। ओझा जी के बार -बार आग्रह करने पर मुख्य मंत्री ने पश्चिम  चम्पारण के तत्कालीन जिलाधीश हरिशंकर प्रसाद  सिंह को प्रबन्ध समिति की बैठकों में हमेशा उपस्थित  होने  को कहा। उन दिनों पश्चिम चम्पारण के जिलाधीश प्रबन्ध  समिति के अध्यक्ष थे।  जिलाधीश की उपस्थिति से ही कॉलेज प्रशासन की स्वेच्छाचारिता मर्यादित हो गई।  ओझा जी का ही प्रयास कहा जा सकता है कि पश्चिम चम्पारण के जिलाधीश ने सरकार को अपने  पत्र में स्पष्ट कर दिया कि  अभी व्यावहारिक दृष्टि से महाविद्यालय भवन, सम्पत्ति   कॉलेज की है। यह पत्र कॉलेज को अंगीभूत (Constituent)  बनने में    आधार बना।

आज  ओझा जी अवकाश प्राप्त कर चुके हैं लेकिन महाविद्यालय के व्यक्तित्व पर उनका प्रभाव स्पष्ट देखा जाता रहेगा। वे शिक्षक संघ के लिए प्रेरणा बने रहेंगे। शिक्षक नेता के रूप में महाविद्यालय परिवार उनकी सेवाओं को याद कर सदैव गौरवान्वित महसूस   करता रहेगा। 





"विप्राः बहुधा वदन्ति" 'रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय  आकलन' पुस्तक से उदधृत



Wednesday, April 13, 2016

Prof Rabindra Nath Ojha "O Shikharasth Manishi"

प्रो. रवीन्द्र नाथ ओझा : ओ शिखरस्थ मनीषी 
                                             - डॉ. स्वर्णकिरण 





शिखरस्थ  मनीषी प्रो  रवीन्द्र  नाथ ओझा
चित्र  : डॉ अजय कुमार ओझा 





ओ शिखरस्थ मनीषी ,
जीवनयात्रा में व्यवधान अगर आये 
तो स्वयं ख़त्म हो गये ,
नए अनुभव बटोरते रहे रोज़ तुम, जगह -जगह। 
स्वर्गलोक में  नहीं , ठोस धरती पर चलते रहे ,
कल्पनाएँ  उभरीं तो खोये कुछ 
पर कटु यथार्थ से कहाँ कभी तुमने अपनी आँखे मूंदी ?
युग परिवर्तन का सपना देखते -संजोते रहे ,
अध्ययन का व्रत चलता रहा निरंतर ,
मानववादी जीवन - दर्शन का गायन 
समय -समय पर सम्मुख आकर 
करता रहा लोग - बाग  को सुरभित -आप्यायित। 
भोजपुरी संस्कृति के हामी ,
भारतीय संस्कृति से कहाँ विरोध तनिक भी,
भोजपुरी माटी का ऋण तुमने उतार रख दिया,
"भोजपुरी संस्कृति --" पर लिख दो शब्द। 
जुड़े मंचों से , आंदोलन से ,
धन्य  लघुकथा आंदोलन हो गया 
विचारक रूप तुम्हें पाकर  के। 
लघुकथा की आत्मा पर बल देने वाले ,
तथ्य -कथ्य दोनों पर दृष्टि समान रहे 
तो आकर्षण होना , सच , मुश्किल कहाँ ?
विश्वबंधुता  को महत्व देने वाले 
ऋषि-मुनियों का आदर्श निभाने वाले 
निः स्पृहता  मूर्त्ति ,
देखते आँख फाड़कर लोग तुम्हें ,
गौरव जननी के, जन्मभूमि के , चम्पारण के 
या गौरव तुम सभी जगह के ,
भेदभाव से परे,
एक अदभुत मानक साहित्य - जगत के। 


"विप्राः बहुधा वदन्ति" 'रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय  आकलन' पुस्तक से उदधृत





Prof Rabindra Nath Ojha se Ek Sneh-Surbhit Sakshatkar - Mantramudit

प्रो  रवीन्द्र  नाथ ओझा से एक स्नेह -सुरभित साक्षात्कार    -    मन्त्रमुदित 



Prof Rabindra Nath Ojha with Shankar Mahto Tharu Tribe of  Bakhari Bazar of West Champaran Bihar
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



गौर वर्ण , कर्पूरवत केश , प्रशस्त ललाट, नयनाभिराम नासिका, सुदीर्घ कर्ण , स्मित हास्ययुक्त  आरक्त अधर , गुरुगम्भीर  ललित नेत्र , श्मश्रु -रहित प्रभावक मुखमण्डल, दर्शनीय ग्रीवा , वार्धक्य -वैभव -संपन्न प्रलम्ब देहयष्टि  - कुछ इसी सम्मोहन स्वरूप में मुझे सुप्रसिद्ध ललित निबंध-लेखक श्रीयुत रवीन्द्र नाथ ओझा बेतिया के अपने प्रज्ञापुरी -स्थित निवास पर मिले ।   उस श्रावणी पूर्णिमा के पावस -प्रक्षालित अपराह्न में वे मुझ साहित्यिक अन्तरंग-आत्मीय की प्रतीक्षा ही कर रहे थे क्योंकि पूर्वसुनिश्चित था  कि  मुझे उनका स्नेह-सुरभित साक्षात्कार लेना है , अर्थात एक सहज -सुमधुर  साहित्य - साधक के रचना -संसार से अवगत होना है।  


Pragyapuri( Bettiah West Champaran Bihar) Residence of Prof Rabindra Nath Ojha
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha


इतने में ही,  सत्कार में मुझ मधुर-प्रिय ब्राह्मण के लिए अनेक मिष्ठान्न एवं गर्मागर्म सुस्वादु व्यंजन समक्ष आ गये, कारण कि उनकी छायानुगामिनी धर्मपत्नी आदरणीया  राधिका जी  को अपने पतिदेव के प्रियजनों की अभ्यर्थना में अतीव आनंद की अनुभूति  होती है । मैंने तो अनुभव किया है कि ऐसे अवसरों पर वे अपनी पाककला का खुलकर आकर्षक प्रदर्शन करती हैं ।  साथ ही आपने जैसे ही उनके कर्तृत्व की प्रशंसा कर दी तो सुभोजन कराते -कराते अघा देती हैं । 

इस तृप्ति के अनन्तर मैंने ओझाजी से निवेदन किया कि आपने  अपने प्रथम ललित निबन्ध  - संग्रह 'नैवेद्यम' की प्रस्तावना  'कुछ मेरी भी सुन लें ' में उल्लेख किया है कि आपने कुल दो सौ पचास निबन्ध लिखे हैं , परन्तु 'नैवेद्यम ' में प्रकाशित चौबीस निबन्ध , 'निर्माल्यं' में प्रकाशित इक्कीस निबन्ध , 'सत्यम्-शिवम्' में प्रकाशित चौदह निबन्ध  एवं 'शिवम् - सुन्दरं' में प्रकाशित अठारह निबंध का कुल योग सतहत्तर आता है , तो शेष निबन्धों के बारे में  भी बतावें ।  इसका स्पष्टीकरण उन्होंने कुछ इस प्रकार किया । भावुकता में लहराते वे मुझे अपने विशाल अध्ययन -कक्ष में ले गए ।  वहां मैंने उनके निबन्धों की पांडुलिपियों के सैंतालीस रजिस्टर देखे । एक -एक रजिस्टर में दो से लेकर आठ निबन्ध  लिखे थे। 

ओझा जी ने श्रीमदभगवद्गीता  के सुप्रसिद्ध  श्लोकार्थों  पर आधारित सात निबन्ध  लिखे हैं , जिनमें उनके अनुसार 'भजस्व माम', 'मामेकं शरणं ब्रज', 'योगक्षेम वहाम्यहम्', 'न मे भक्तः प्रणश्यति ', एवं 'मन्मना भव' सारगर्भित होने के कारण महत्वपूर्ण हैं । उन्होंने मैथिल कोकिल विद्यापति के पदों की अर्धाली  पर ये छः निबन्ध लिखे हैं - एक करम संग जाए , सागर लहर समाना, तुअ  बिनु गति नहिं आरा, तारन भार  तोहारा,
तातल सैकत बारि बिन्दु सम  एवं तोहर सरिस एक तोहि माधव ।  इनमें वे  'एक करम संग जाए' तथा 'तारन  भार तोहारा' को महत्त्वपूर्ण मानते हैं ।

फिर मैंने उनसे पूछा - " आप अपने प्रकाशित निबन्ध -संग्रहों के उल्लेख्य  निबन्धों  को बतावें । " ओझा जी ने बताया 'नैवेद्यम' में - जलाशय की अन्तरात्मा , सुअर  बड़ा कि  मैं , कुतिये  का परमानन्द , यदि मेघ न होते, जब मौत मर जाती है और संध्या सुन्दरी , 'निर्माल्यं' में - मैं मेघ होना चाहता हूँ , ब्रह्म-बेला के पाँच चित्र , वसंत के तीन चित्र, मेरी साइकिल , बसगीत महतो की बेवा और महादेव बो पनेरिन, 'सत्यम् -शिवम्' में - मैं गीध होना चाहता हूँ ,गाजरवाली , बैल -विदाई  और रामानन्द की पीड़ा तथा 'शिवम् -सुन्दरं' में - उड़ जा पंछी दूर गगन में, नील गगन के तले, चतुरी चमार , काल-प्रवाह की अनुभूति, रामनारायण , सृजन का आनन्द और उषा सुन्दरी मेरे प्रिय निबन्ध हैं , मेरी दृष्टि में महत्त्वपूर्ण निबन्ध हैं और इनके लेखन में मेरी लेखनी खुलकर लहरायी  है, यानी  कई -कई इंद्रधनुषों की सृष्टि की है। 

उनके अप्रकाशित ललित निबन्धों की पांडुलिपियों की संख्या को देखकर मुझे लगा कि अभी और आठ संकलन प्रकाशित हो सकते हैं। मैंने गद्गद होते उनसे जानना चाहा कि इन अप्रकाशित निबन्धों में आपकी दृष्टि में कौन -कौन से पठनीय निबन्ध हैं ? तभी ध्यान में आया कि  बिजली  कब की जा चुकी है।  वे पसीने से लथपथ  हैं। मैं पंखा झलने लगा।  वे बताने लगे कि मेरे इन बयालीस प्रिय निबन्धों की सूची अग्रलिखित शीर्षकों के अनुसार बनायी जा सकती है -

अध्यात्मपरक - अनन्त की खोज:असीम की तृष्णा, सम्भोग और समाधि , धोबिया जल बिच  मरत पियासा , अकेलत्व  की चाह, त्वमेव माता , वैराग्योदय, नाहं वसामि वैकुण्ठे , दुखियारी सारी दुनिया एवं मन फूला -फूला  फिरे  जगत में 

व्यक्तिपरक - मेरे पिताजी , पिताजी की आत्मभर्त्सना , कलम अपनी :आलोचना अपनी , फुआ  की विदाई, शिवचंद्र झा की मनोव्यथा , डॉ सत्यदेव ओझा , बीमारी और बीमारी के बाद , बुढ़ापा , बाबा कहि कहि  जाए , मैं कवि हूँ : गीत गाता हूँ , मैं नशे में हूँ, मैं धोबी हूँ, अब मुझे यही शरीर चाहिये एवं वासना तू न गयी  मेरे मन से 

संस्मरणात्मक - जब अज्ञेय जी बेतिया पधारे, बनारस की वह संगीत-संध्या , सहयात्री नरेन्द्र , बुढ़िया भिखारिणी, एक दिन की बात, टेप रिकॉर्डर की खोज , बरखा रानी , एवं ज्योतिष से भेंट 

यात्रापरक -   मेरी जेल-यात्रा , ट्रैक्टर -यात्रा , मेरी बनारस -यात्रा एवं बड़ी नहर की सैर 

स्थानपरक  - पटने का गांधी मैदान , दुर्गापूजा  में दुर्गा मन्दिर , बेतिया का पशु- मेला, बोल उठा खेत उस दिन , हज़ारी एवं स्टेशन 

इतना कहते-कहते बादल बरसने लगे।  कुछ बूँदें खुली खिड़की से अन्दर  आने लगीं।  ठंडक तरोताज़ा कर रही थी।  और अन्दर से  ओझा जी की 'स्पेशल' एवं 'स्पेशली प्रिपेयर्ड' लीफ वाली मज़ेदार चाय आ गयी।  हम दोनों चुस्की लेने लगे। 

अब मुझे लगा कि  कुछ नितान्त  वैयक्तिक परिचय हो जाए।  उन्होंने अपने परिवार का सक्षिप्त परिचय देते हुए बताया  - " मेरे पितामह पंडित सत्यराम ओझा थे।मैं उनसे विशेष लगाव अनुभव करता था।  वे मुझ पर कितनी स्नेह-वर्षा करते थे। जब उनका देहावसान हुआ तो मुझे लगा कि मैं एकदम-से टूट गया हूँ। मेरे पिता सिद्धनाथ ओझा थे तो माता देवमुनि देवी थीं। मेरी एकमात्र पुत्री सुशीला निवेदिता है।  मुझे प्रसन्नता है कि उसने भी एम.ए., पी.एच.डी.  की उपाधियाँ उपलब्ध  की।  मेरे जामाता  प्रो.  डॉ.  बलराम मिश्र, एम. ए. (द्वय ), पी.एच. डी., डी. लिट. महारानी जानकी कुँवर महाविद्यालय, बेतिया के स्नातकोत्तर हिंदी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होकर अहर्निश साहित्य - सेवा में संलग्न हैं। वे चम्पारण  साहित्यकारों में पांक्तेय भी हैं। मेरे पुत्र द्वय अजय एवं संजय भी उच्च पदों पर अधिष्ठित हैं। " आगे उन्होंने गर्व प्रकट किया  - " ग्रामीण परिवेश में मैंने जन्म लिया - मध्यवर्गीय ब्राह्मण-कुल में, एक किसान के घर में। मैं जिस परिवेश में बढ़ा-पला, जिस परिवेश में मेरी शिक्षा - दीक्षा हुई, वह बिलकुल ग्राम्य परिवेश था , कृषि और कृषक-परिवेश था , ठेठ भोजपुरी -परिवेश था। भोजपुरी -संस्कार , कृषक -संस्कार और प्रकृति से जुड़ाव  - मेरे व्यक्तित्व -निर्माण में काफी दूर तक निर्धारक रहे , निर्णायक रहे। ये तीनों संस्कार अभी तक मेरे भीतर वर्तमान हैं - अपने शुद्ध सहज , निर्विकार भाव में। "


M.J.K. College Bettiah West Champaran Bihar
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



ओझा जी ऊर्जस्वी एवं मनीषी साहित्य -सर्जक हैं। जब वे भाव-तरंगायित होते   हैं तो तीन-चार घंटे तक लगातार लिखते रहते हैं। उनकी जीवन - संगिनी  राधिका  बताती हैं - " जब वे लिखने लगते हैं तो मैं भी उनके कक्ष में नहीं जाती, कि जाने से लेखन में कहीं व्यवधान न पड़ जाए , जो मोती पन्नों पर बिखर रहे रहे हैं वे कहीं - किसी तल में न अटक जाएँ। बहुत बार तो मैं उन्हें उसी 'साहित्यिक प्रसव -पीड़ा ' में छोड़कर मन्दिर चली जाती   हूँ और वहाँ देवता से प्रार्थना करती हूँ  कि मेरे पति इसी तरह दिव्य, उज्ज्वल ,उत्तम  ललित निबन्धों रूपी 'लालों ' को जन्म देते रहें और मैं एक साहित्यकार की अर्धांगिनी होने का सौभाग्य -सुख पाती रहूँ।"


Radhika Devi Wife of  Prof Rabindra Nath Ojha
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



ओझा जी ने ललित निबन्धों के साथ हिंदी एवं भोजपुरी में कमनीय कविताएँ भी लिखी हैं, जिनकी संख्या क्रमशः एक सौ पचास एवं साठ  है। उन्होंने राम बिहारी ओझा रचित भोजपुरी गीता - 'गीता माई ' की विस्तृत एवं प्रभावपूर्ण भूमिका लिखी है।  साथ ही अंग्रेजी  लघु कथा 'आइसबर्ग' का उनके द्वारा लिखा 'इन्ट्रोडक्शन' भी  है। 
हिन्दी के प्रबुद्ध पाठकों को ज्ञात है कि ओझा जी जमकर पत्र लिखते हैं , लम्बे -लम्बे पत्र  हैं और लगातार लिखते हैं।  उनके पत्र 'सारिका ', 'दिनमान', 'साप्ताहिक हिंदुस्तान ', 'नवनीत', 'मधुमती ', 'कादम्बिनी',
'आजकल','हंस', जैसी पत्रिकाओं में बार -बार छपे हैं।  अक्टूबर 1989  के अंक में 'हंस ' द्वारा उन्हें प्रबुद्ध पाठक का सम्मान भी दिया गया है, उनका चित्र  भी छापा  गया है। 


Muzaffarpur Railway Station
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha 
ओझा जी शिक्षक -नेता रहे हैं।  एम. जे. के. कॉलेज , बेतिया के   शिक्षक -संघ के वे पंद्रह वर्षों तक लगातार सचिव रहे हैं।  इस क्रम में उन्हें आंदोलन करते हुए एक बार मुजफ्फरपुर में  जेल भी  जाना पड़ा। जे.पी. आन्दोलन  में ओझा जी को दो बार 'मीसा' के अंतर्गत बेतिया और मोतिहारी के जेलों में रखा गया।  ओझा जी  जन्मजात आंदोलनकारी हैं। कई आन्दोलनों में कूद  पड़ने का उनका लम्बा रेकॉर्ड रहा है।  उन रेकॉर्डों  को आज भी याद किया जाता है। 


एम. जे. के. कॉलेज , बेतिया के  अंग्रेजी -विभागाध्यक्ष -पद से सेवानिवृत्ति के अनन्तर उन्होंने रेल मंत्रालय एवं विधि और न्याय मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के मनोनीत सदस्य के रूप में तीन -तीन  वर्षों तक अपनी महत्वपूर्ण सेवाएँ समर्पित की   हैं। 

ओझा जी टेनिस के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। साथ ही उन्हें फुटबॉल ,वॉलीबॉल एवं बैडमिंटन खेलना भी अच्छा लगता है। 
जीवन की संध्या में अब ओझा जी अत्यन्त संतुष्ट लगते हैं। उनके लिए जीवन एक अखण्ड आनन्द का उत्सव है।  वे मानवता के आराधक हैं। कर्तृत्व के अभिमान से रहित हैं। निर्विकल्प स्थिति में हैं।  द्वन्द्वमुक्त हैं। उनकी आकांक्षा है कि  सभी धर्म -परायण बनें , प्रीति के पुजारी बनें। 

तब तक तीन घंटे बीत चुके थे। आकाश में मेघ पुनः छाने  लगे थे।  लगता था कि  ज़ोरदार वर्षा होगी। अतएव मैंने समर्पित साहित्य - सर्जक श्री आर. एन. ओझा जी से विदा ली।  उस समय मैंने नमन करते निहारा तो पाया कि  उनकी भावुक आँखों में अग -जग के लिए स्नेह के शत -शत  सुरधनु  अपने चमकीले रंगों के साथ जगमगा रहे हैं। 



"विप्राः बहुधा वदन्ति" 'रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय  आकलन' पुस्तक से उदधृत 
  







Saturday, April 9, 2016

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : "Seven Sisters Falls" Point Sohra Meghalaya India

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : 
"Seven Sisters Falls" Point Sohra Meghalaya India

(All the images are subject to IPR)

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha


Monday, April 4, 2016

Prakrit Pradhyapak Prof Rabindra Nath Ojha

        प्रकृत प्राध्यापक पं  रवीन्द्रनाथ  ओझा 
- व्रतराज  दुबे 'विकल'



जाड़ा  हो या गर्मी 
धूप या छाँव 
वर्षा हो या तूफान 
शहर हो या गाँव 
उत्तम अभियान पर 
निकला हुआ एक व्यक्ति 
सड़क -किनारे 
पकड़े पगडंडी 
छोटा केश
 सादा-वेश 
कुर्ता और धोती 
रंग जैसे मोती 
मझोला कद 
विश्वास की हद 
एक हाथ में झोला 
एक हाथ में छाता 
निभाता हुआ फ़र्ज़ 
जोड़ता हुआ नाता 
विद्वता की झुकान 
विनम्रता की मुस्कान 
देता हुआ वरदान 
पाया हुआ सम्मान 
गोष्ठी अधिवेशन 
परिचर्चा सम्मलेन 
सभी स्थल पर 
आता जाता दिखाई पड़ता है 
जिसे  हम 
आर. एन.ओझा कहते हैं 


प्रो  रवींद्र नाथ ओझा 




भावना से अभिभूत 
भारतीयता के दूत 
संस्कार के शिखर 
बुद्धि के प्रखर 
अहंकार से मुक्त 
प्यार से युक्त 
साहस के सम्राट 
व्यक्तित्व के विराट 
सिद्ध कलाकार 
कौशल अपार 
तलवार की धार 
मन के उदार 
मानव के भक्त
ईमान सशक्त 
शील के भंडार 
धैर्य  के पहाड़ 
आशा के दीप 
मन के महीप
आस्था की आंधी 
ज्ञान  के गांधी 
प्रेरणा के स्रोत 
पुरुषार्थ का पोत 
युग का आदर्श 
जो देता है हर्ष  
मिटाता अमर्ष 
ले शब्द सुमन 
उसको मेरा नमन 
सौ बार नमन 



"विप्राः बहुधा वदन्ति" 'रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय  आकलन' पुस्तक से उदधृत 




Saturday, April 2, 2016

Prof (Dr) Rabindra Nath Ojha on "Samay Ka Sadupayog" in Evening Live Sho...



The below link regarding the details about Prof.(Dr.)  Rabindra Nath Ojha....    http://ajaykuamrojha.blogspot.in/



PROF(Dr) RABINDRA NATH OJHA:

A RARE PERSONALITY UNHIGHLIGHTED



Born to Devmuni Devi & Siddhanath Ojha in the village Badaka Singhanpura of Buxar district (Bihar, India) Prof (Dr.) Rabindra Nath Ojha did his schooling from Prathmik Vidyalaya Badka Singhanpura & K.P Uchcha Vidyalaya Dumri. He was married to Radhika Devi of Sonwani village, Balia (Uttar Pradesh).

He studied in Bhagalpur University & later Bihar University ( Now B.R.A University).Just after completing his post graduation in English he joined M.J.K college Bettiah as Lecturer and retired from the same college as University Professor.

Prof (Dr.) Rabindra Nath Ojha has been rightful front-runner amongst the famous scholars of English, Hindi ,Sanskrit and Bhojpuri. He is a well-known name as an essayist, poet, critique, reviewer, analyst, translator, letter-writer, editor, powerful orator, Director (Play/Drama), successful organizer, trade unionist, champion of the causes of Teachers/Students & Deprived, social activist, philosopher, spiritualist above all humanist and what not. In the true sense of the 'saying' he has been embodiment of "Simple Living & High Thinking".

Enlightened readers of Hindi must be aware of the fact that Ojhajee used to write letters very often. Long letters and that too continuously. His letters have been repeatedly published in Hindi Magazines such as 'Saarika', 'Dinmaan', 'Saptahik Hindustan','Navneet', 'Madhumati', 'Kadambini', 'Aajkal', 'Hans'.Hans' patrika has honoured him as "Prabuddha Pathak" in the October edition of 1989.

Though Prof Ojha has used his pen on many aspects of Hindi literature but special mention may be made of his four published books on the collections of personal essays namely NAIVEDYAM, NIRMALYAM,SATYAM-SHIVAM, SHIVAM-SUNDARAM. After looking at the numbers of manuscripts of unpublished personal essays it appears that another eight collections can still be published. Apart from personal essays he has penned down hundreds of beautiful poems in Hindi as well as in Bhojpuri.He has also written a very extensive and impressive introduction of the "GEETA MAI" in Bhojpuri written by Ram Bihari Ojha.An introduction written in English by Prof Ojha of English Short Story "ICEBERG" has been highly appreciated.

After having retired as Head ,Department of English, M. J. K College Bettiah he has been nominated as member of Hindi Advisory Committee,Ministry of Railways and later Ministry of Law & Social Justice and has offered his important services for the spread of Hindi for three-three years.

Prof. Ojha has been honoured by various institutions.He has been appreciated and remained in news for being a very powerful & arresting orator. An active Gandhian Social Activist Dr. Ojha has always fought for the causes and welfare of Teachers, students & other deprived sections of society. In the process he has gone on fast -unto -death and courted arrest several times.

The below link regarding the details about Prof.(Dr.)  Rabindra Nath Ojha....http://ajaykuamrojha.blogspot.in/