Sunday, August 24, 2025

‘‘नागरी संगम स्वर्ण जयंती विशेषांक’ (Golden Jubilee Special Edition of Nagari Sangam)

                                          ‘नागरी संगम स्वर्ण जयंती विशेषांक’ 

(Golden Jubilee Special Edition of Nagari Sangam)












अपनी व्यस्तता के बीच मुझे नहीं लग रहा था कि मैं ‘नागरी संगम  स्वर्ण जयंती विशेषांक’ पर अपनी टिप्पणी दे पाऊँगा । पर यह पत्रिका जो पुस्तकाकार रूप धारण कर ली है मुझे बारम्बार किसी प्रेयसी की तरह किसी प्रियतमा की तरह अपनी ओर आकर्षित करती रही - अपनी वेशभूषा से, अपनी  साज-सज्जा से, अपनी सजावट-बनावट से।  कितना सुंदर है इसका परिधान और कितना सुंदर इसका आवरण ! मैं खींचा चला आया इसकी ओर, न जाने कैसे - अनायास, अचानक, अकस्मात्। 


अब मैं अपनी इस प्रेयसी-पुस्तक  के बारे में कुछ कहने को बैठ गया हूँ।  लेकिन ये मत सोचिए कि इसके अनुपम सौन्दर्य के प्रभाव में इसकी अनुचित एवं असत्य प्रशंसा करुँगा।  नहीं, कभी नहीं।  वैसे ये पुस्तक है ही प्रशंसा के लायक। आप मानें या न मानें।  आप चाहें या न चाहें। देखने में सुंदर तो है ही, स्पर्श करने में अत्यंत कोमल व मुलायम।  


और इसके घटक या अवयव।  52 हैं।  और सब एक से बढ़कर एक। सब नागरी लिपि के बारे  में। उसके इतिहास के बारे में, उसके वर्तमान के बारे में और उसके भविष्य के बारे में भी। और हाँ उसके उद्देश्य के बारे में, उसकी उपादेयता के बारे में, राष्ट्रीय एकता तथा विश्व-लिपि के रूप में उसकी भूमिका के बारे में, उसकी वैज्ञानिकता के बारे में, उसकी जननी के बारे में । फिर नागरी लिपि परिषद् (Nagari Lipi Parishad) के बारे में - जो अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंती मना  रहा है।  और ये तो सर्वविदित ही है कि 1975 में आचार्य विनोबा भावे की सत्प्रेरणा से इस परिषद् की स्थापना हुई थी नागरी लिपि के प्रचार प्रसार हेतु । 

 

इस पुस्तक में नागरी लिपि परिषद् का संक्षिप्त परिचय भी है, उसका इतिहास भी, उसकी गतिविधियाँ भी, उसके पदाधिकारियों के विवरण भी  और हाँ परिषद् का लेखा-जोखा भी ताकि पारदर्शिता बनी रहे। और यही नहीं परिषद् द्वारा आयोजित नागरी लिपि कार्यक्रमों का विवरण भी - नागरी लिपि परिषद् द्वारा जो पुरस्कार दिए जाते हैं उनका विवरण भी, नागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए जो प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं उनका विस्तृत विवरण भी, अंतर भारती के अंतर्गत विभिन्न भाषाओं (देश की और विदेश की भी) को नागरी लिपि में कैसे लिखा जाए उनके उदाहरण भी, नागरी लिपि परिषद् द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘नागरी संगम’ का सिंहावलोकन भी।  


और यही नहीं समाचार पत्रों के क्लिप्पिंग्स भी, दुर्लभ चित्रों के माध्यम से नागरी लिपि परिषद् का रंगीन सचित्र इतिहास भी, परिषद् की रंगीन सचित्र गतिविधियॉं एवं उप्लब्धियाँ भी, ‘नागरी संगम’ पत्रिका में प्रख्यात और दिग्गज नागरी लिपि विद्वानों और प्रेमियों के पूर्व प्रकाशित आलेखों का पुनः प्रस्तुतीकरण भी, और भारत सरकार में शिक्षा  मंत्री माननीय धर्मेन्द्र प्रधान का शुभकामना संदेश  भी  और साथ ही केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी का संदेश भी।     


तो कहने का तात्पर्य है कि क्या नहीं समाहित है इस ‘नागरी संगम स्वर्ण जयंती विशेषांक’ में। नागरी लिपि और नागरी लिपि परिषद् का एक गज़ब का दस्तावेज़ है यह, एक अद्भुत प्रलेख है अभिलेख है।  सभी नागरी लिपि प्रेमियों एवं सेवियों के लिए भगवद्गीता की तरह अवश्यमेव पठनीय ही नहीं संग्रहणीय सामग्री है यह विशेषांक। 


इस  अद्भुत “नागरी संगम स्वर्ण जयंती विशेषांक” के लिए  बेहिचक, बेसंकोच  और बेझिझक ताली तो बनती ही है। तो संपादक-मण्डल के अध्यक्ष डॉ. प्रेमचंद पातंजलि  और प्रधान संपादक डॉ. हरिसिंह पाल को, उनके कर्मठ, निष्ठावान  और समर्पित  टीम के साथ, अपार, असीम, अनंत बधाई एवं शुभकामनाएँ।   

“जय नागरी, जय भारती”



सधन्यवाद।   


डॉ. अजय कुमार ओझा

(Dr. Ajay Kumar Ojha) 


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