आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा कृत
(Acharya Rabindra Nath Ojha)
जब मैंने Wife का Murder किया ...
(Jab Maine 'Wife' Ka 'Murder' Kiya...)
(रोचक ललित निबंधों का रुचिकर संग्रह)
संयोजन, संकलन, टंकण एवं सम्पादन
डॉ अजय कुमार ओझा
(Dr Ajay Kumar Ojha)
पी.एच.डी. (जेएनयू), एल.एल.बी (दिल्ली यूनिवर्सिटी)
सम्पादक के माउस से
आखिर क्यों पढ़ें ये पुस्तक ?
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और भोजपुरी के मर्मज्ञ विद्वान रहे हैं और उनके लेखन में यदा-कदा उर्दू का भी पुट देखा जा सकता है। उनके जीवन का अनुभव बड़ा व्यापक और विशाल रहा है तथा उनकी चिंतनशीलता गहन-गंभीर। यही कारण है कि उनके निबंधों में जीवन के इंद्रधनुषी भाव-भंगिमाएं, छवि-छटाएं, रस-रंग प्राप्त होते हैं। इनकी दृष्टि मूलतः मौलिक और समग्रतः मानवीय है इसलिए इनके निबंधों में एक खास तरह का उदात्तशील संस्कार प्राप्त होता है जो मानव जीवन को परमोत्कर्ष, परम श्रेयस की ओर प्रेरित करता है।
इस पुस्तक में आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के दस ललित निबंधों को शामिल किया गया है। दसों निबंध अपने आप में विशिष्ट हैं, अपने आप में उत्कृष्ट हैं। कुछ निबंध अध्यात्मपरक हैं, तो कुछ व्यक्ति परक, कुछ संस्मरणात्मक तो कुछ यात्रापरक। पर इस पुस्तक के नाम ने आपको अवश्य चौंका दिया होगा। ऐसा भी कहीं नाम होता है पुस्तक का ? और यही नहीं, रचनाकार ने एक ही निबंध के लिए दो शीर्षक दिया है। भला ऐसा भी कहीं होता है ?
पर ऐसा हुआ है इस पुस्तक में। निबंध के लेखक ने एक ही निबंध के लिए दो शीर्षक दे डाला है। और लेखक स्वयं स्वीकार करते हुए कह उठता है :
“जी हाँ, आप शीर्षक देखकर उचकेंगे - सोचेंगे, लेखक पागल हो गया है क्या ? कहीं उसके दिमाग का Screw (कील) तो ढीला नहीं हो गया है ! ऐसे तो यह सही भी है कि बिना कुछ दिमागी गड़बड़ के लेखन कार्य सूझता भी नहीं है और सूझता भी है तो सफलता नहीं मिलती। मैंने देखा है, पाया है और अब तो अनुभव कर ही रहा हूँ कि सफल लेखकत्व के लिए Screw loose होना बहुत जरूरी है।”
लेखक आगे कहता है :
“पर यह भी तो पागलपन या मानसिक विकृति की हद है कि मैं एक ही निबंध के लिए दो दो शीर्षक रख रहा हूँ - ऐसा भी कहीं होता है - एक ही कृति के लिए दो शीर्षक और वह भी अर्थ वही सिर्फ शब्दों का कुछ हेर फेर - पहले शीर्षक के पूरे शब्द हिन्दी-संस्कृत के, दूसरे के कुछ शब्द अंग्रेजी के।”
तो इस तरह से लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि शीर्षक कुछ इस तरह से है कि कोई भी इस पर प्रश्न खड़ा कर सकता है, कोई भी उंगली उठा सकता है, कोई भी आश्चर्य चकित हो सकता है ? इसी आश्चर्य को आगे बढ़ाते हुए मैंने भी इस पुस्तक का नाम ही रख डाला “जब मैंने Wife का Murder किया ….” अब क्या है इसमें ? क्या लेखक ने सचमुच ‘Wife’ का ‘Murder’ किया ? और ‘Murder’ किया भी तो क्यों ? ऐसा क्या हो गया कि लेखक को ‘Wife’ का ‘Murder’ करना पड़ा ? वैसे कुछ भी हुआ हो लेखक को ‘Wife’ का ‘Murder’ नहीं करना चाहिए था ? इत्यादि इत्यादि, प्रभृति प्रभृति।
यही नहीं लेखक ने एक ही निबंध के दो शीर्षक रख डाले हैं। यह भी कमाल है। न भूतो न भविष्यति। फिर ये हुआ कैसे ? कौन सा भूत सवार हो गया लेखक पर ? खैर जो भी हो। यह गुत्थी तभी सुलझेगी जब यह पुस्तक पढ़ी जाएगी।
तो मैं आपको छोड़े जा रहा हूँ इस पुस्तक के साथ - ताकि आपके प्रश्नों का सही व सटीक उत्तर मिल सके, आपकी जिज्ञासा शांत हो सके। यह भी आपको बताते चलूँ कि इस पुस्तक में और भी जो नौ निबंध हैं वे भी एक से एक हैं, एक से बढ़कर एक । अब मुझे दीजिए अनुमति तबतक के लिए जबतक कि मैं एक और साहित्यिक कृति के साथ आपके समक्ष उपस्थित न हो जाऊँ। सभी के सतत सहयोग एवं शुभकामना के लिए अनेक अनेक धन्यवाद। जय हिंद, जय भारत।
सधन्यवाद।
डॉ अजय कुमार ओझा
पूर्व संवाददाता, यूनाइटेड न्यूजपेपर्स, दिल्ली
पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी (दूरदर्शन)
भारतीय प्रसारण सेवा
एडवोकेट, भारत का सर्वोच्च न्यायालय
ई-मेल : ajayojha60@gmail.com
संपर्क : 9968270323
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