"भारतीय संस्कृति उत्सव धर्मिता रक्षा सूत्र में बंधा है" -
डॉ. सुशीला ओझा
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धना मि रक्षे माचल माचल:
भारतीय संस्कृति उत्सव धर्मिता रक्षा सूत्र में बंधा है.. सावन में शिव का कैलास से उतरना उनके शिवत्व का ही बोधक है.. प्रेम का वह सूत्र ही तो बिन्दु और नाद से बंधा है. शक्ति बिन्दु और शिव नाद हैं .. सावन उमंग, तरंग, उत्साह, आनंद, उत्सव, के अभिषेक का महीना है.. धरती आकाश का मिलन.. सिन्धुसुता भी अपने भाई बिधु से मिलने के लिए उछलने, कूदने लगती है .. रक्षा बंधन मानवीय मूल्यों को रेखांकित करता है, प्रेम और मर्यादा को अपने में केन्द्रित करता है.. रक्षाबंधन पूर्णिमा के दिन आता है.. बहन भाई के प्रगति, उसकी श्री समृद्धि देखकर प्रेम विह्वल होकर भाई के माथे पर तिलक लगाने के लिए उन्मुख हो जाती है.. यह प्रेम सौहार्द का पर्व है, भावना का पर्व है, आस्था विश्वास का पर्व है, संकल्प का पर्व है.. सावित्री ने वटवृक्ष में बांधकर पति की दीर्घायु की कामना की थी.. और वटवृक्ष ने आक्सीजन देकर पति को जीवित किया था.. बहन के भाव, मर्यादा, मान, सम्मान का पर्व है रक्षाबंधन... इस भावनासूत्र में बहन का प्रेम है, मर्यादा है और भाई का संरक्षण, पोषण है.. इसे भौतिक तराजू पर रखकर नहीं तौला जा सकता है.. सूत में बहन के भाव सूत्र हैं.. दाहिने हाथ पर बहन बाँधती है.. दाहिना हाथ के पुरुषार्थ की कामना करती है.. दाहिने हाथ को दधि, रोली, अक्षत से पूजकर कलाई में रक्षासूत्र बांधती है.. भाई के कल्याण के लिए.. भाई के शिवत्व के लिए ललाट पर दधि रोली अक्षत का तिलक लगाती है.. भाई का यश कीर्ति सुख समृद्धि अक्षत रहे.. उसकी शुभाकांक्षिणी बहन ही होती है.. उस ऐश्वर्य उस विभूति को चंद रुपए से नहीं तौला जाता है... बहन के आत्म सम्मान, आदर, मर्यादा, संरक्षण का पावन सूत्र है.. देवासुर संग्राम में इन्द्राणी ने देवराज को इन्द्र को राखी बान्धा था.. रक्षा सूत्र सशक्तता का प्रमाण है और स्वयं को रक्षिता, संरक्षिता बहन समझती है..
वामन ने राजा बलि से तीन डग धरती मांगा था... दो ही डग में आकाश और धरती को नाप लिया और तीसरे पग को वामन ने बढ़ाया तो बलि ने अपना माथा दे दिया.. बलि पाताल लोक में निवास करने लगे, और श्री हरि से वरदान माँगा प्रभु आप मेरे साथ रहेंगे आप मेरे रक्षक रहेंगे..बलि ने श्री हरि को अपना द्वारपाल बना लिया... इधर लक्ष्मी विष्णु के लिए व्यग्र थीं.. इसी बीच नारद गए और लक्ष्मी ने अपनी बात नारद के समक्ष रखा..... नारद प्रथम संवाददाता थे और जनजन के मंगल की कामना से प्रतिबद्ध थे.. उन्होंने नारद से बताया विष्णु बलि के द्वारपाल बने हैं.. बलि की रक्षा का प्रण लिए हैं.... तुम अगर बहन बनकर जाओगी और बलि को रक्षा सूत्र में बाँधोगी, तो विष्णु तुम्हारे साथ आ जाएंगे.. लक्ष्मी ने राखी बली को बांधा और विष्णु को ले जाने की बात कही.. बलि ने रक्षा कवच का सम्मान किया.... लक्ष्मी विष्णु को लेकर आ गई..... रक्षा सूत्र केवल औपचारिक नहीं हैं... उसमें बहन का मान, सम्मान, स्वाभिमान की रक्षा का संकल्प निहित है.. राजा बलि दानी, वीर पराक्रमी, लोकमंगल की कामना से परिपूर्ण थे.. उन्होंने चार महीने का समय मांगा हरि से और सावन की पूर्णिमा को अपनी प्रजा के दर्शन की उत्कट अभिलाषा को शमित करने को कहा.. राजा बलि सावन पूर्णिमा के दिन अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने आते हैं.. प्रजा बलि के शुभागमन पर हर्ष, उल्लास के अतिरेक से ओणम का पर्व मनाती है..!
मुगल काल में कर्णावती ने हुमायूँ को रक्षा सूत्र बान्धा था.. हुमायूँ बहन की रक्षा के लिए जाति धर्म की मर्यादा छोड़कर बहन की रक्षा के लिए गया था.. तबतक कर्णावती जौहर हो चुकी थी.. हुमायूँ को बहुत ग्लानि हुई थी कि उसने बहन की रक्षा मे देर कर दिया ..
. रक्षासूत्र में बहन की भावना का प्रकर्ष, उत्कर्ष रहता है..... वह अपने भाई में पिता का जीवंत रूप देखती है... पिता की धरोहर है बेटी.. आंगन की सोन चिरईया, चबूतरे की तुलसी की मोती मंजरी भाई की मंगलकामना, उन्न \ति के शिखर पर प्रतिष्ठित करने की शुभाकांक्षिणी होती है.. साथ में मान, सम्मान, स्वाभिमान की आकांक्षा करती है ... कलाई में राखी बांधकर भाई को सशक्त करती है..... पुरुष के भीतर की संभावनाओं को जगाती है.. प्रेरित करती है.... भाई बहन का प्रेम पवित्र है, शाश्वत है, सनातन है, मानवीय मूल्यों पर आधारित धरोहर को जीवंत करता है, उमंग, उत्साह, उत्सव के रंग में रंगकर जीवन को नई दिशा,नई उमंग देता है....
अपसंस्कृति ने मर्यादाओं को इस सूत्र को खंडित किया है.. बहन को बाप के दरवाजे पर अपमानित किया जाता है.. भाई यह भूल रहा है कि उस बहन में उसके माता -पिता का रक्त अभिसिंचित है... भाई बहन के अपमान के माध्यम से अपनी संस्कृति, मानवीय मूल्यों का अपमान करता है.. संबंधों की मर्यादा को लोग भूल रहे हैं... व्यक्तिवाद में अपने को समेट लिए हैं यह रक्षाबंधन सामूहिकता की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है... भाई अपनी भाषा, संस्कार की मर्यादा का विस्मरण कर रहा है... रक्षा के क्षेत्र में यह शुभ संकेत नहीं है..... केवल अधिकारों के पुलंगी पर झुल रहा भाई अपनी जड़ों को भूल रहा है... रक्षाबंधन जैसा पर्व बहन की भावना, उसके अटूट प्रेम का पर्व है.....भौतिकता की तराजू पर बहन का प्रेम, उसकी भावना, उसकी आस्था, उसके विश्वास को डिगाना रक्षा बंधन का लक्ष्य नहीं है.. यह भाव का संबंध है......
पिता की विरासत बहन है, पिता की अमानत है .. उसकी भावनाओं का अपमान पूर्वजों का अपमान है.. यह संस्कृति और अपसंस्कृति का द्वंद्व है.. नारी का अपमान करने वाला कभी पूज्य नहीं होता.. गंगानंदन भीष्म और इन्द्र ने नारी का अपमान किया है.. कभी पूज्य नहीं हुए..! दैत्य और देवसंस्कृति के व्यापक दृष्टिकोण से अभिरक्षित है रक्षा सूत्र.. भाई रक्षति रक्षि ता.. भाई अपने मन की विकृतियों का प्रक्षालन करे अपने मृदु मधुर बोली के मिठास को बहन का रक्षा सूत्र समझे.. बहन का भाव अपरिभाषित है, शब्दातीत है.. पैसों से भाव को सम्मानित नहीं किया जा सकता है.. भाव निर्गुण ब्रह्म की अभ्यर्थना है.. बहन भाव, प्रेम की भूखी है.. उसे भाई के दो मीठे शब्दों की आकांक्षा रहती है.. इसलिए मन की दुष्प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंककर रक्षा सूत्र का वंदन अभिनंदन करें.. सभी बहनें रक्षा बंधन के पर्व का बाजारीकरण नहीं करना चाहती हैं.. यह आत्मा का संबंध है.. भावना, प्रेम का संबंध है.... बाबा की दुलारी बिटिया का सम्मान, आदर आवश्यक है.. वह पैसा से नहीं मिलता है.. वह आत्मिक गुण है..!
तोहरो ललाट भइया सोभे दहिया अक्षतवा तिलकवा
बहिनी मनावे मंगल वा
दाहिन हथवा पुजेली बहिनिया
बान्हेली रक्षा सुत कलइया
एहि सुतवा में बहिनी के भाव , आस्था विसवासवा
हम त हई भइया बाबा के सोन चिरईया
फुदकी फुदुकी नाची
अंगनवा
तोहरा अंगनवा के तुलसी के विरवा
मंगल मनावेनी दिनरतिया
सुख समृद्धि बढ़े भइया के दुअरिया
जुग जुग बाढ़े तहरा मथवा के पगिया
बहिनी के बतिया जइसे चुवे हरसिंगारवा
गमगम गमके तहार हवेलिया
अपना दुआरिया बहिनी मनावेली सगुनवा
कब अइहे भइया दुअरिआ
लोरवा के बुनिया बिछावेली अंगनवा
भाव के गजमोती पुरावेली चौकवा हथवा में लेके
खाड़ भाव के अक्षत दहिया ,
प्रेम के करेली आरतिया
डॉ. सुशीला ओझा
बेतिया, पश्चिम चम्पारण
बिहार
साभार : डॉ सुशीला ओझा के फेसबुक वॉल से
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