This book is not only on the Wonderful Tharu Community but also on alluring Tharuhat - the land of the Tharu Tribe, and above all on the historic and splendid, captivating and charming Champaran of Bihar . This book is published by Rachna Publications of Delhi.
Saturday, August 31, 2024
Wonderful Tharu Tribe, Alluring Tharuhat & Charming Champaran by Dr Ajay Kumar Ojha
Wednesday, August 28, 2024
Jab Maine 'Wife' Ka 'Murder' Kiya - Dr Ajay Kumar Ojha
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा कृत
(Acharya Rabindra Nath Ojha)
जब मैंने Wife का Murder किया ...
(Jab Maine 'Wife' Ka 'Murder' Kiya...)
(रोचक ललित निबंधों का रुचिकर संग्रह)
संयोजन, संकलन, टंकण एवं सम्पादन
डॉ अजय कुमार ओझा
(Dr Ajay Kumar Ojha)
पी.एच.डी. (जेएनयू), एल.एल.बी (दिल्ली यूनिवर्सिटी)
सम्पादक के माउस से
आखिर क्यों पढ़ें ये पुस्तक ?
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और भोजपुरी के मर्मज्ञ विद्वान रहे हैं और उनके लेखन में यदा-कदा उर्दू का भी पुट देखा जा सकता है। उनके जीवन का अनुभव बड़ा व्यापक और विशाल रहा है तथा उनकी चिंतनशीलता गहन-गंभीर। यही कारण है कि उनके निबंधों में जीवन के इंद्रधनुषी भाव-भंगिमाएं, छवि-छटाएं, रस-रंग प्राप्त होते हैं। इनकी दृष्टि मूलतः मौलिक और समग्रतः मानवीय है इसलिए इनके निबंधों में एक खास तरह का उदात्तशील संस्कार प्राप्त होता है जो मानव जीवन को परमोत्कर्ष, परम श्रेयस की ओर प्रेरित करता है।
इस पुस्तक में आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के दस ललित निबंधों को शामिल किया गया है। दसों निबंध अपने आप में विशिष्ट हैं, अपने आप में उत्कृष्ट हैं। कुछ निबंध अध्यात्मपरक हैं, तो कुछ व्यक्ति परक, कुछ संस्मरणात्मक तो कुछ यात्रापरक। पर इस पुस्तक के नाम ने आपको अवश्य चौंका दिया होगा। ऐसा भी कहीं नाम होता है पुस्तक का ? और यही नहीं, रचनाकार ने एक ही निबंध के लिए दो शीर्षक दिया है। भला ऐसा भी कहीं होता है ?
पर ऐसा हुआ है इस पुस्तक में। निबंध के लेखक ने एक ही निबंध के लिए दो शीर्षक दे डाला है। और लेखक स्वयं स्वीकार करते हुए कह उठता है :
“जी हाँ, आप शीर्षक देखकर उचकेंगे - सोचेंगे, लेखक पागल हो गया है क्या ? कहीं उसके दिमाग का Screw (कील) तो ढीला नहीं हो गया है ! ऐसे तो यह सही भी है कि बिना कुछ दिमागी गड़बड़ के लेखन कार्य सूझता भी नहीं है और सूझता भी है तो सफलता नहीं मिलती। मैंने देखा है, पाया है और अब तो अनुभव कर ही रहा हूँ कि सफल लेखकत्व के लिए Screw loose होना बहुत जरूरी है।”
लेखक आगे कहता है :
“पर यह भी तो पागलपन या मानसिक विकृति की हद है कि मैं एक ही निबंध के लिए दो दो शीर्षक रख रहा हूँ - ऐसा भी कहीं होता है - एक ही कृति के लिए दो शीर्षक और वह भी अर्थ वही सिर्फ शब्दों का कुछ हेर फेर - पहले शीर्षक के पूरे शब्द हिन्दी-संस्कृत के, दूसरे के कुछ शब्द अंग्रेजी के।”
तो इस तरह से लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि शीर्षक कुछ इस तरह से है कि कोई भी इस पर प्रश्न खड़ा कर सकता है, कोई भी उंगली उठा सकता है, कोई भी आश्चर्य चकित हो सकता है ? इसी आश्चर्य को आगे बढ़ाते हुए मैंने भी इस पुस्तक का नाम ही रख डाला “जब मैंने Wife का Murder किया ….” अब क्या है इसमें ? क्या लेखक ने सचमुच ‘Wife’ का ‘Murder’ किया ? और ‘Murder’ किया भी तो क्यों ? ऐसा क्या हो गया कि लेखक को ‘Wife’ का ‘Murder’ करना पड़ा ? वैसे कुछ भी हुआ हो लेखक को ‘Wife’ का ‘Murder’ नहीं करना चाहिए था ? इत्यादि इत्यादि, प्रभृति प्रभृति।
यही नहीं लेखक ने एक ही निबंध के दो शीर्षक रख डाले हैं। यह भी कमाल है। न भूतो न भविष्यति। फिर ये हुआ कैसे ? कौन सा भूत सवार हो गया लेखक पर ? खैर जो भी हो। यह गुत्थी तभी सुलझेगी जब यह पुस्तक पढ़ी जाएगी।
तो मैं आपको छोड़े जा रहा हूँ इस पुस्तक के साथ - ताकि आपके प्रश्नों का सही व सटीक उत्तर मिल सके, आपकी जिज्ञासा शांत हो सके। यह भी आपको बताते चलूँ कि इस पुस्तक में और भी जो नौ निबंध हैं वे भी एक से एक हैं, एक से बढ़कर एक । अब मुझे दीजिए अनुमति तबतक के लिए जबतक कि मैं एक और साहित्यिक कृति के साथ आपके समक्ष उपस्थित न हो जाऊँ। सभी के सतत सहयोग एवं शुभकामना के लिए अनेक अनेक धन्यवाद। जय हिंद, जय भारत।
सधन्यवाद।
डॉ अजय कुमार ओझा
पूर्व संवाददाता, यूनाइटेड न्यूजपेपर्स, दिल्ली
पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी (दूरदर्शन)
भारतीय प्रसारण सेवा
एडवोकेट, भारत का सर्वोच्च न्यायालय
ई-मेल : ajayojha60@gmail.com
संपर्क : 9968270323
Predominance of Skill in Determining Winning Outcome in Fantasy Sports
Predominance of Skill in Determining Winning Outcome in Fantasy Sports: A Statistical Report by IIM Bangalore Professors
The study proposes a data-driven approach that policymakers can use to resolve the ongoing debate on skill and chance in online gaming
Researchers from the Indian Institute of Management, Bangalore, and SP Jain Institute of Management & Research recently published a joint report, which objectively concludes that the effect of the user’s skill is significantly more than that of chance, in determining the winnability in a fantasy sports contest. The study, “Decision Support System for Policy-Making: Quantifying Skill and Chance in Daily Fantasy Sports (DFS)", further proposes a data-driven approach to determine, through empirical evidence, whether any game is a game of skill or chance.
This is the second paper by Professor U Dinesh Kumar, which focuses on studying the statistical aspects of online games. This study goes beyond measuring the effect of skill and chance on a user’s performance. Also, it focuses on quantifying several other indicators of skill, such as the effect of user’s past performance, experience and recent participation, which have not been studied previously.
This peer-reviewed study offers an integrated decision support framework that:
- Evaluates the relative importance of skill and chance,
- Studies a contestant’s observed and unobserved characteristics,
- Tests for other indicators of skill,
- It can be replicated in other games, subject to data availability.
The framework proposed in the study can help policymakers adopt a more science-oriented and quantitative approach to resolving the ongoing debate on skill and chance. The lack of such a standardized and objective approach to evaluating online games has led to inconsistencies in regulation and hurt the ease of doing business for legitimate gaming companies in India.
By analyzing performance data, the study helps identify how much of a player’s success is due to their skill and how much depends on chance, providing a clear picture of what drives success in fantasy sports. By analyzing users’ performances across 2,951 matches and 160,000 contests, the study concludes that the effect of users’ skill is significantly more than that of chance in determining winnability in fantasy sports. The study also quantifies other indicators of skill, like user’s past performance, experience and recent participation and finds that these significantly affect their performance in fantasy sports contests.
U. Dinesh Kumar, Professor, IIMB, emphasized the significance of these findings: “This research provides a decision support system that can allow policymakers to objectively and quantitatively differentiate between games of skill and chance. The framework proposed in the study can be replicated for any online game, subject to data availability. We believe that such frameworks are key to formulating regulations based on data science and better suited to address the challenges stemming from emerging technologies and new age sectors, such as online gaming.”
Key findings from the study include:
- Experience improves winnability: There is a positive correlation between users’ experience and winning consistency, i.e., users with more experience exhibit higher winnability in fantasy sports contests.
- This indicates that users learn from experience and improve their future performances. In a game of chance, on the other hand, experience will not affect a user’s winnability.
- Consistent high-performers fare better: Users who consistently performed well in the past also perform better in the current fantasy sports contests.
- This indicates that users’ capabilities matter in fantasy sports contests. In a game of chance, on the other hand, past performances would not determine a user’s present performance.
- Recency positively affects winnability: Users who participated recently in fantasy sports contests exhibit higher winnability.
- This indicates that the score gap increases with an increasing number of days since the users’ last participation, i.e., users who participated recently exhibit higher winnability. This is also consistent with the concept of skill depreciation used in human capital theory.
- Choice of contest influences relative performance
- The variance of unobserved skill is higher than the variance of chance: The study found that the unobserved components of skill play a far greater role in determining winnability than pure random shocks.
Authors:
- Dr. U Dinesh Kumar is a Professor in the Decision Sciences area at the Indian Institute of Management, Bangalore (IIMB). He is also the Chairperson of IIMB’s Data Centre and Analytics Lab (DCAL).
- Dr. Aishvarya is an Assistant Professor in the Information Management & Analytics area at the S.P. Jain Institute of Management & Research (SPJIMR), Mumbai.
- Dr. Tirthatanmoy Das is an Associate Professor and Chairperson of the Economics area at the Indian Institute of Management, Bangalore (IIMB).
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Tohar Saris Ek Tohin Madhav (Essays on Mahakavi Vidyapati) - Dr Ajay Kumar Ojha
Editor
Dr Ajay Kumar Ojha
सम्पादक के माउस से
देसिल बयना सब जन मिट्ठा
जब मैं आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की अप्रकाशित अनगिन-अगणित-असंख्य अमूल्य-बहुमूल्य-अद्वितीय साहित्यिक रचनाओं के आगार पर दृष्टि डाल रहा था तो मुझे एक दो नहीं छः ऐसे आलेख प्राप्त हुए जो महाकवि विद्यापति पर आधृत थे - सभी आलेख एक से बढ़कर एक। मैं तो दंग रह गया उनको पढ़कर। क्या भाषा, क्या शैली, क्या प्रवाह और क्या पकड़ विद्यापति की रचनाओं पर ? ऐसा लगा कि आचार्य ओझा और विद्यापति पृथक व्यक्तित्व नहीं, अलग सत्ता नहीं, अलग अलग युग में जन्मे भी नहीं - दोनों एक ही, दोनों का व्यक्तित्व एक ही, दोनों की सोच भी एक ही, और दोनों एक ही भाव-धारा में बह रहे हों, एक ही तरह की अनुभूति से सराबोर हों, एक ही अमृत की तलाश में - भाव एक, मंजिल एक, लक्ष्य एक। हाँ ये बात अवश्य थी कि विद्यापति की रचना पद्य में और आचार्य ओझा की अभिव्यक्ति गद्य में।
फिर मैंने उन छः आलेखों को स्वयं ही टाइप किया। पेज 60 से भी कम था। कैसे उसे एक पुस्तक का आकार दिया जा सकता था ? क्या एक पुस्तक के लिए उपयुक्त थे वे आलेख ? क्या करूँ ? पुस्तक का रूप दूँ या नहीं ? बड़ी उधेड़बुन में था, पेशोपेश में था, उलझन में था। पर मेरी प्रबल इच्छा थी कि इन आलेखों को लेकर विद्यापति जी पर छोटी ही सही पर एक ऐतिहासिक साहित्यिक महत्व की पुस्तक प्रकाशित कर ही दी जाए।
विद्यापति जी पर बहुतों ने लिखा होगा, आपलोगों ने पढ़ा भी होगा क्योंकि विद्यापति भारतीय साहित्य की ‘शृंगार परम्परा’ के साथ साथ ‘भक्ति परम्परा’ के प्रमुख स्तंभों में से एक और मुख्यतः मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। मिथिला के लोगों को ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का सूत्र देकर उन्होंने उत्तर बिहार में लोकभाषा की जन चेतना को जीवित-जीवंत करने का अद्भुत प्रयास भी किया है। ‘देसिल बयना’ शब्द से तात्पर्य है अपनी देसी भाषा, वस्तु, सामग्री या रचनाओं का समावेश। दूसरों की वस्तुएँ, उनकी भाषाएँ, कला, संस्कृति आदि लुभावनी तो होती हैं पर संतुष्टि सिर्फ अपनी वस्तुओं, अपनी भाषा, अपनी कला, संस्कृति से ही प्राप्त होती है।
तो अब आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा को भी पढ़िए। इनके छः आलेखों को पढ़िए जो विद्यापति जी पर केन्द्रित हैं। जब सभी आलेखों को मैंने टाइप कर दिया तो मेरे सामने समस्या थी इसके प्राक्कथन लिखवाने की। वह विद्वान वैसा होना चाहिए जो महाकवि विद्यापति को अच्छी तरह से पढ़ा हो, समझा हो, जाना हो, उनको आत्मसात किया हो - और साथ ही साथ आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की रचनाओं से परिचित हो बल्कि उनके व्यक्तित्व से भी।
बहुत मस्तिष्क मंथन करने के पश्चात् मुझे वह व्यक्ति मिल गया. वह व्यक्ति कोई और नहीं डॉ ओम प्रकाश झा हैं जो दूरदर्शन में हिंदी अधिकारी हैं और बहुचर्चित कवि, अनुवादक व कथाकार। इनकी अनेकों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और कई तो प्रकाशनाधीन हैं। मेरे बहुत आत्मीय हैं झा जी। बाबूजी से भी परिचित और उनकी रचनाओं से भी परिचित - महाकवि विद्यापति की अजेय कृतियों से भी पूर्णतः भिज्ञ। इनसे अच्छा और उपयुक्त कौन हो सकता था ?
मैंने उनसे संपर्क साधा। वे सहर्ष तैयार हो गए प्राक्कथन लिखने के लिए। पर वे इसी बीच अचानक अस्वस्थ हो गए। कार्यालयीय व्यस्तता और अस्वस्थता के बावजूद समय निकालकर उन्होंने इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखा जिसका नाम है - “लघुमति मोर चरित अवगाहा”। झा जी ने इस पुस्तक के शीर्षक का सुझाव भी दिया। मैं बहुत आभारी हूँ डॉ ओम प्रकाश झा जी का।
इस पुस्तक से संबंधित जो आवश्यक और रोचक बातें थीं उसे आप लोगों से साझा किए बिना मैं कैसे रह सकता था ? अब मैं आपसे अनुमति चाहूँगा पर आपको छोड़े जा रहा हूँ इस अद्भुत साहित्यिक कृति के साथ।
जय हिन्द जय भारत !
डॉ अजय कुमार ओझा
पूर्व संवाददाता, यूनाइटेड न्यूजपेपर्स, दिल्ली
पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी (दूरदर्शन)
भारतीय प्रसारण सेवा
एडवोकेट, भारत का सर्वोच्च न्यायालय
ई-मेल : ajayojha60@gmail.com
संपर्क : 9968270323
सत्यम् शिवम् के सहयोग से अनुराधा प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित तथा डॉ अजय कुमार ओझा द्वारा सम्पादित यह पुस्तक सभी वर्ग के पाठकों के लिए अवश्यमेव पठनीय व संग्रहणीय है।
Monday, August 26, 2024
Shri Vrinda Kunj-Iskcon Bhakti Vriksha |Mehrauli | Delhi | Shri Krishna Janmashtami | Agrasen Vatika
Sunday, August 25, 2024
Àzadi Sangeet Sammelan| Ustad Amjad Ali Khan | Sarod | Àkashvani Rangbhavan | Smriti Irani |Ep.2/2
Saturday, August 24, 2024
Amjad Ali Khan|Sarod|Àzadi Sangeet Sammelan| Àkashvani Rangbhavan | New Delhi | Ep. 1/2 | Sansad Marg
News Nation| Noida | Uttar Pradesh| Sanjay Kulshrestha| Doordarshan| Dr Ajay Kumar Ojha| Advocate
Thursday, August 22, 2024
"भारतीय संस्कृति उत्सव धर्मिता रक्षा सूत्र में बंधा है" - डॉ. सुशीला ओझा
"भारतीय संस्कृति उत्सव धर्मिता रक्षा सूत्र में बंधा है" -
डॉ. सुशीला ओझा
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धना मि रक्षे माचल माचल:
भारतीय संस्कृति उत्सव धर्मिता रक्षा सूत्र में बंधा है.. सावन में शिव का कैलास से उतरना उनके शिवत्व का ही बोधक है.. प्रेम का वह सूत्र ही तो बिन्दु और नाद से बंधा है. शक्ति बिन्दु और शिव नाद हैं .. सावन उमंग, तरंग, उत्साह, आनंद, उत्सव, के अभिषेक का महीना है.. धरती आकाश का मिलन.. सिन्धुसुता भी अपने भाई बिधु से मिलने के लिए उछलने, कूदने लगती है .. रक्षा बंधन मानवीय मूल्यों को रेखांकित करता है, प्रेम और मर्यादा को अपने में केन्द्रित करता है.. रक्षाबंधन पूर्णिमा के दिन आता है.. बहन भाई के प्रगति, उसकी श्री समृद्धि देखकर प्रेम विह्वल होकर भाई के माथे पर तिलक लगाने के लिए उन्मुख हो जाती है.. यह प्रेम सौहार्द का पर्व है, भावना का पर्व है, आस्था विश्वास का पर्व है, संकल्प का पर्व है.. सावित्री ने वटवृक्ष में बांधकर पति की दीर्घायु की कामना की थी.. और वटवृक्ष ने आक्सीजन देकर पति को जीवित किया था.. बहन के भाव, मर्यादा, मान, सम्मान का पर्व है रक्षाबंधन... इस भावनासूत्र में बहन का प्रेम है, मर्यादा है और भाई का संरक्षण, पोषण है.. इसे भौतिक तराजू पर रखकर नहीं तौला जा सकता है.. सूत में बहन के भाव सूत्र हैं.. दाहिने हाथ पर बहन बाँधती है.. दाहिना हाथ के पुरुषार्थ की कामना करती है.. दाहिने हाथ को दधि, रोली, अक्षत से पूजकर कलाई में रक्षासूत्र बांधती है.. भाई के कल्याण के लिए.. भाई के शिवत्व के लिए ललाट पर दधि रोली अक्षत का तिलक लगाती है.. भाई का यश कीर्ति सुख समृद्धि अक्षत रहे.. उसकी शुभाकांक्षिणी बहन ही होती है.. उस ऐश्वर्य उस विभूति को चंद रुपए से नहीं तौला जाता है... बहन के आत्म सम्मान, आदर, मर्यादा, संरक्षण का पावन सूत्र है.. देवासुर संग्राम में इन्द्राणी ने देवराज को इन्द्र को राखी बान्धा था.. रक्षा सूत्र सशक्तता का प्रमाण है और स्वयं को रक्षिता, संरक्षिता बहन समझती है..
वामन ने राजा बलि से तीन डग धरती मांगा था... दो ही डग में आकाश और धरती को नाप लिया और तीसरे पग को वामन ने बढ़ाया तो बलि ने अपना माथा दे दिया.. बलि पाताल लोक में निवास करने लगे, और श्री हरि से वरदान माँगा प्रभु आप मेरे साथ रहेंगे आप मेरे रक्षक रहेंगे..बलि ने श्री हरि को अपना द्वारपाल बना लिया... इधर लक्ष्मी विष्णु के लिए व्यग्र थीं.. इसी बीच नारद गए और लक्ष्मी ने अपनी बात नारद के समक्ष रखा..... नारद प्रथम संवाददाता थे और जनजन के मंगल की कामना से प्रतिबद्ध थे.. उन्होंने नारद से बताया विष्णु बलि के द्वारपाल बने हैं.. बलि की रक्षा का प्रण लिए हैं.... तुम अगर बहन बनकर जाओगी और बलि को रक्षा सूत्र में बाँधोगी, तो विष्णु तुम्हारे साथ आ जाएंगे.. लक्ष्मी ने राखी बली को बांधा और विष्णु को ले जाने की बात कही.. बलि ने रक्षा कवच का सम्मान किया.... लक्ष्मी विष्णु को लेकर आ गई..... रक्षा सूत्र केवल औपचारिक नहीं हैं... उसमें बहन का मान, सम्मान, स्वाभिमान की रक्षा का संकल्प निहित है.. राजा बलि दानी, वीर पराक्रमी, लोकमंगल की कामना से परिपूर्ण थे.. उन्होंने चार महीने का समय मांगा हरि से और सावन की पूर्णिमा को अपनी प्रजा के दर्शन की उत्कट अभिलाषा को शमित करने को कहा.. राजा बलि सावन पूर्णिमा के दिन अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने आते हैं.. प्रजा बलि के शुभागमन पर हर्ष, उल्लास के अतिरेक से ओणम का पर्व मनाती है..!
मुगल काल में कर्णावती ने हुमायूँ को रक्षा सूत्र बान्धा था.. हुमायूँ बहन की रक्षा के लिए जाति धर्म की मर्यादा छोड़कर बहन की रक्षा के लिए गया था.. तबतक कर्णावती जौहर हो चुकी थी.. हुमायूँ को बहुत ग्लानि हुई थी कि उसने बहन की रक्षा मे देर कर दिया ..
. रक्षासूत्र में बहन की भावना का प्रकर्ष, उत्कर्ष रहता है..... वह अपने भाई में पिता का जीवंत रूप देखती है... पिता की धरोहर है बेटी.. आंगन की सोन चिरईया, चबूतरे की तुलसी की मोती मंजरी भाई की मंगलकामना, उन्न \ति के शिखर पर प्रतिष्ठित करने की शुभाकांक्षिणी होती है.. साथ में मान, सम्मान, स्वाभिमान की आकांक्षा करती है ... कलाई में राखी बांधकर भाई को सशक्त करती है..... पुरुष के भीतर की संभावनाओं को जगाती है.. प्रेरित करती है.... भाई बहन का प्रेम पवित्र है, शाश्वत है, सनातन है, मानवीय मूल्यों पर आधारित धरोहर को जीवंत करता है, उमंग, उत्साह, उत्सव के रंग में रंगकर जीवन को नई दिशा,नई उमंग देता है....
अपसंस्कृति ने मर्यादाओं को इस सूत्र को खंडित किया है.. बहन को बाप के दरवाजे पर अपमानित किया जाता है.. भाई यह भूल रहा है कि उस बहन में उसके माता -पिता का रक्त अभिसिंचित है... भाई बहन के अपमान के माध्यम से अपनी संस्कृति, मानवीय मूल्यों का अपमान करता है.. संबंधों की मर्यादा को लोग भूल रहे हैं... व्यक्तिवाद में अपने को समेट लिए हैं यह रक्षाबंधन सामूहिकता की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है... भाई अपनी भाषा, संस्कार की मर्यादा का विस्मरण कर रहा है... रक्षा के क्षेत्र में यह शुभ संकेत नहीं है..... केवल अधिकारों के पुलंगी पर झुल रहा भाई अपनी जड़ों को भूल रहा है... रक्षाबंधन जैसा पर्व बहन की भावना, उसके अटूट प्रेम का पर्व है.....भौतिकता की तराजू पर बहन का प्रेम, उसकी भावना, उसकी आस्था, उसके विश्वास को डिगाना रक्षा बंधन का लक्ष्य नहीं है.. यह भाव का संबंध है......
पिता की विरासत बहन है, पिता की अमानत है .. उसकी भावनाओं का अपमान पूर्वजों का अपमान है.. यह संस्कृति और अपसंस्कृति का द्वंद्व है.. नारी का अपमान करने वाला कभी पूज्य नहीं होता.. गंगानंदन भीष्म और इन्द्र ने नारी का अपमान किया है.. कभी पूज्य नहीं हुए..! दैत्य और देवसंस्कृति के व्यापक दृष्टिकोण से अभिरक्षित है रक्षा सूत्र.. भाई रक्षति रक्षि ता.. भाई अपने मन की विकृतियों का प्रक्षालन करे अपने मृदु मधुर बोली के मिठास को बहन का रक्षा सूत्र समझे.. बहन का भाव अपरिभाषित है, शब्दातीत है.. पैसों से भाव को सम्मानित नहीं किया जा सकता है.. भाव निर्गुण ब्रह्म की अभ्यर्थना है.. बहन भाव, प्रेम की भूखी है.. उसे भाई के दो मीठे शब्दों की आकांक्षा रहती है.. इसलिए मन की दुष्प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंककर रक्षा सूत्र का वंदन अभिनंदन करें.. सभी बहनें रक्षा बंधन के पर्व का बाजारीकरण नहीं करना चाहती हैं.. यह आत्मा का संबंध है.. भावना, प्रेम का संबंध है.... बाबा की दुलारी बिटिया का सम्मान, आदर आवश्यक है.. वह पैसा से नहीं मिलता है.. वह आत्मिक गुण है..!
तोहरो ललाट भइया सोभे दहिया अक्षतवा तिलकवा
बहिनी मनावे मंगल वा
दाहिन हथवा पुजेली बहिनिया
बान्हेली रक्षा सुत कलइया
एहि सुतवा में बहिनी के भाव , आस्था विसवासवा
हम त हई भइया बाबा के सोन चिरईया
फुदकी फुदुकी नाची
अंगनवा
तोहरा अंगनवा के तुलसी के विरवा
मंगल मनावेनी दिनरतिया
सुख समृद्धि बढ़े भइया के दुअरिया
जुग जुग बाढ़े तहरा मथवा के पगिया
बहिनी के बतिया जइसे चुवे हरसिंगारवा
गमगम गमके तहार हवेलिया
अपना दुआरिया बहिनी मनावेली सगुनवा
कब अइहे भइया दुअरिआ
लोरवा के बुनिया बिछावेली अंगनवा
भाव के गजमोती पुरावेली चौकवा हथवा में लेके
खाड़ भाव के अक्षत दहिया ,
प्रेम के करेली आरतिया
डॉ. सुशीला ओझा
बेतिया, पश्चिम चम्पारण
बिहार
साभार : डॉ सुशीला ओझा के फेसबुक वॉल से
Wednesday, August 21, 2024
Relaunch of DD Kashir
Renovation of the large studio with new set. For the first time on 4th October 2017 "Good Morning J&K Live" was telecast from the renovated studio.