बिहार का तेलहारा विश्वविद्यालय :
नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी प्राचीन
प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास का एक बहुत बड़ा भाग बिहार में अवस्थित रहा है। बिहार का मगध क्षेत्र इस मानी में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इस क्षेत्र के नालंदा, पटना, गया जैसी जगहों पर अनेकों टीलों के अंदर छोटी-बड़ी अनेकों सभ्यतायें इतिहास का कोई न कोई महत्वपूर्ण चैप्टर या अध्याय होने का इशारा करती रहती हैं।
एकंगरसराय प्रखंड में पड़ता है एक गाँव जिसका नाम है तेलहारा। यह गाँव विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय से केवल तैंतीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर खुदाई के उपरांत एक विशाल केंद्र सामने आया है जो पहली शताब्दी का बताया जा रहा है। अनेक पुरातत्वविदों के अनुसार यह विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला से भी प्राचीन है। अब तो जो साक्ष्य प्राप्त हुए हैं वे कुषाण काल से लेकर पाल काल के क्रमबद्ध इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय पांचवी और विक्रमशिला विश्वविद्यालय सातवीं शताब्दी के हैं पर तेलहारा में उत्खनन से प्राप्त हुईं ईंटें 42 x 32 x 6 सेंटीमीटर की हैं जो इस बात को प्रमाणित करती हैं कि यह निर्माण पहली शताब्दी का है। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग दोनों तेलहारा आये थे। दोनों ने लिखा है कि बौद्ध धर्म के एक पंथ महायान का यह केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय से भी उच्च स्थान रखता है। बिहार के प्राचीन इतिहास पर केंद्रित Kashi Prasad Jayaswal Research Institute, Patna द्वारा प्रकाशित D.R. Palit लिखित दुर्लभ पुस्तक 'The Antiquarian Remains in Bihar' में इस बात का रोचक उल्लेख है कि खोजी अंग्रेज इतिहासकार बुकानन की आँखों से तेलहारा ओझल हो गया।
किन्तु ब्रिटिश आर्मी इंजीनियर कनिंघम ने 1875-78 में अपने शोध से सबको आश्चर्यचकित कर दिया। कनिंघम की रिपोर्ट इस बात की ओर संकेत करती है कि टीले के भीतर किसी बड़े साम्राज्य के अवशेष हो सकते हैं। इस जानकारी के प्रकाश में आने के पश्चात् बिहार पुरातत्व विभाग ने तेलहारा के उत्खनन में गहरी रूचि दिखाई।
अतुल कुमार वर्मा की स्पष्टोक्ति है कि उत्खनन से यह स्पष्ट हो गया है कि नालंदा और विक्रमशिला की स्थापना तेलहारा विश्वविद्यालय के पश्चात् हुई। अतुल कुमार वर्मा बिहार पुरातत्व विभाग के निदेशक एवं उत्खनन स्थल के प्रभारी हैं।
यह भी कम रोचक नहीं जिस स्थल पर सरकार की दृष्टि पड़ी वह सदियों से स्थानीय लोगों के बीच पूज्य है पावन है पवित्र है। स्थानीय लोग वहाँ निकले पेड़ों की पूजा किया करते हैं। ये भी बताया जाता है कि पूर्वज वहाँ की भूरी मिट्टी वाले टीले पर उपजे पेड़ों के नीचे बैठकर आराम करते थे।
तेलहारा के बारे में कई कहानियाँ-कथाएँ प्रचलित हैं। किसी कहानी में ये बताया गया कि यहाँ एक राजवंश दबा पड़ा है तो किसी कहानी में इसे नगर रक्षिका देवी का आश्रयस्थल बताया गया।
इन साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि नालंदा के समीप ज्ञान का एक और स्थल था एवं इस स्थल पर भी देश विदेश से छात्र आते थे। दो दशमलव छह एकड़ में फैले टीले के उत्खनन के पश्चात् यह बात प्रकाश में आयी है कि यहाँ एक तीनमंजिला भवन, प्रार्थना हॉल, एक हजार से अधिक महायान बौद्धधर्म के विद्यार्थियों या भिक्षुओं के बैठने के लिए एक सभा-मंडप या चबूतरा के अवशेष हैं।
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