Sunday, July 6, 2014

PROF (DR) RABINDRA NATH OJHA KI KAALJAYEE SAHITYIK KRITI KA ADBHUT AVLOKAN

प्रो (डॉ )  रवीन्द्र  नाथ ओझा 

की 
कालजयी साहित्यिक  कृति 
का
अद्भुत अवलोकन  




रवीन्द्र नाथ ओझा  (1932-2010  )


विलक्षण आचार्य] विलक्षण ललित निबंधकार &कवि&समीक्षक&पत्र लेखक& संपादक ] विलक्षण  निर्देशक &प्रबंधक ] विलक्षण प्रखर व ओजस्वी वक्ता ]विलक्षण खिलाड़ी&खेल प्रेमी ] विलक्षण निष्णात् संगीतवेत्ता ]विलक्षण दार्शनिक & विचारवेत्ता & नेतृत्वप्रदानकर्त्ता &समाजसेवी &मानवतावादी यानि विलक्षण बहुआयामी व्यक्तित्व सृष्टिकर्त्ता की विलक्षण कृति  





रवीन्द्र  नाथ ओझा
छाया : अजय कुमार ओझा 


रवीन्द्र  नाथ ओझा
छाया : अजय कुमार ओझा
 



रवीन्द्र  नाथ ओझा
छाया : अजय कुमार ओझा 




























कुछ  लोग धारा  के विपरीत चलने के ही आदि-अभ्यस्त होते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि ऐसा करना उनकी आंतरिक मज़बूरी हो, उनकी प्रकृतिगत मज़बूरी या फिर उनकी संस्कारगत लाचारी ।  आज जबकि ललित  निबंध विधा मृत या मृतप्राय घोषित हो चुकी है या फिर नितांत अलोकप्रिय, आज जबकि साहित्य के केंद्र में कथा-कहानी उपन्यास विधा ही प्रतिष्ठित हो गयी है, वही सर्वत्र चर्चा के केंद्र में है -  रवीन्द्र नाथ ओझा कुछ ऐसे  सर्जक-व्यक्तियों में हैं जिन्होंने आज के ललित-विरोधी युग  में भी  ललित निबंध को ही अपनी   सृजनात्मक ऊर्जा  की अभिव्यक्ति का मुख्य  माध्यम बनाया है। उनका कहना है कि  वे इसी विधा  में ही  अपनी समग्र सृजनात्मक ऊर्जा का समग्र , सम्यक उपयोग कर पाते हैं और इसीलिए उन्होंने अपनी सम्पूर्ण आत्माभिव्यक्ति के परम सुख संतोष के  लिए ही इस विधा को अपनाया है। 

ओझा जी ने अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति के क्रम में सैकड़ों उत्कृष्ट निबंधों की सर्जना  की   है। निबंध विधा में प्रकाशकों की  अरुचि एवं उनका अविज्ञात,अल्पज्ञात होना ही उनके निबंधों के प्रकाशन में बहुत बड़ा बाधक सिद्ध होता है। 

ओझाजी हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत और भोजपुरी के मर्मज्ञ विद्वान हैं और उनका जीवनानुभव बड़ा व्यापक और विशाल है तथा उनकी चिंतन -मननशीलता गहन-गंभीर।  इसलिए उनके निबंधों में जीवन के इंद्रधनुषी भाव -भंगिमाएं, छवि-छटाएं, रसरंग  प्राप्त होते हैं। इनकी दृष्टि मूलतः मौलिक और समग्रतः मानवीय है  इसलिए इनके निबंधों में एक खास तरह का उदात्त शील - संस्कार  प्राप्त होता है जो मानव जीवन को परमोत्कर्ष, परम श्रेयस की ओर प्रेरित करता है। पाठकों की चेतना को उर्ध्वमुखी बनाने में , उनके कायाकल्पिक भावान्तरण करने में इनकी रचनाएँ बड़ी सहायक सिद्ध होती  हैं और सच पूछिए  तो  इसी में इनका लेखन अपना वैशिष्ट्य और सार्थकत्व प्राप्त करता है। 

ओझा जी के निबंध माखनलाल चतुर्वेदी, अध्यापक पूर्ण सिंह, हजारी प्रसाद द्धिवेदी , विद्यानिवास मिश्र , कुबेरनाथ राय  की ही परंपरा को विकसित और समृद्ध करते हैं।  ये निबंध इस मानी में विशिष्ट  हैं कि  इनमें शास्त्रीयता का संस्पर्श नगण्य है।  इनमें अनुभव की ताजगी है , अनुभूति की समृद्धि है, दृष्टि की मौलिकता और नवीनता है। ये निबंध सूचनात्मक या उद्धरणात्मक नहीं, बिलकुल सृजनात्मक हैं, शुद्ध रचनात्मक हैं। इनमें जीवन-प्रवाह का स्वाद है , सृष्टि का आस्वाद है , सृजन का आनंद-उजास है। इनमें काव्य ,दर्शन,आध्यामिकता ,मानवीय मूल्य और संवेदनाएं इस कदर अनुस्पूत हैं कि इनका स्वाद और संस्कार बिलकुल भिन्न हो जाता है।  इस दृष्टि से ये पूर्णतः मौलिक और मानवीय हैं तथा हिंदी साहित्य को एक विशिष्ट वैभव से संपन्न करने  का  सामर्थ्य रखते हैं। 

पुस्तक  :नैवेद्यम् (निबंध -संग्रह )

लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा 

ओझाजी  के प्रथम निबंध -संग्रह में  कुल  २४ निबंध हैं।  रुचिर वैविध्य से संपन्न यह निबंध संग्रह अपने विभिन्न रूचि-रस -रंग , विभिन्न आकार -प्रकार-संस्कार के निबंधों के चलते  पर्याप्त महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान हो गया है।  इसमें एक ओर "ब्राह्मी संगीत" जैसा निबंध है तो दूसरी ओर "सूअर बड़ा कि मैं"। एक ओर "जलाशय की अन्तरात्मा"  एवं  " देवी से साक्षात्कार" जैसे लम्बे और गंभीर निबंध हैं  तो दूसरी ओर "तरकारीवाला " और "बहादुर की चाय " जैसे लघु और अपेक्षाकृत कम गंभीर निबंध।  एक ओर "धूप सुन्दरी " जैसे प्रकृति प्रेम और दार्शनिकता से जुड़े निबंध हैं  तो दूसरी तरफ "रोटी का सवाल" और "ॐ नमो द्रव्य देवाय " जैसे  वास्तविकता  से जुड़े निबन्ध। "यदि मेघ न होते ", "यदि पहाड़ न होते ", जब मौत मर जाती है" कुछ ऐसे निबंध भी हैं जो सनातन साहित्यिक सम्पदा से संपन्न हैं और बारम्बार आस्वादनीयता का निमंत्रण देते हैं।  





छाया : अभिनव उत्कर्ष 


छाया : अभिनव उत्कर्ष 



छाया : अभिनव उत्कर्ष 




पुस्तक : निर्माल्यम् (निबंध -संग्रह )
लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा 


ओझाजी के दूसरे निबंध -संग्रह " निर्माल्यम् " में कुल २१ निबंध हैं। इन निबंधों के शीर्षक कुछ इस प्रकार हैं - "मैं मेघ होना चाहता हूँ ", निद्रादेवी का स्तुतिगान", "कुत्ते ही प्यार करना जानते हैं", "यदि पेड़ न होते ","रनिंग ट्रेन्स ", "दुःखी ", "बसगीत महतो की बेवा ", "महादेव बो पनेरिन"।  ये निबंध अपनी विषय -वस्तु एवं प्रस्तुति से पाठकों को पर्याप्त प्रभावित करते हैं। ये सभी उच्च कोटि  के निबंध हैं जो लेखक की गहन अंतर्दृष्टि ,उसका प्रकृति -प्रेम , उसकी मौलिक चिन्तनशीलता एवं दार्शनिकता के प्रबल प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इस संग्रह में कुछ सामान्य व्यक्तियों से सम्बंधित व्यक्ति -चित्र भी हैं जो मूल मानवीय संवेदनाओं से सराबोर हो अपने ढंग के अनूठे व्यक्ति-चित्र बन पड़े हैं। 





छाया : अभिनव उत्कर्ष 
                            




छाया : अभिनव उत्कर्ष 



छाया : अभिनव उत्कर्ष 







पुस्तक : सत्यम -शिवम् (निबंध -संग्रह)
लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा 

ओझाजी के तीसरे निबंध -संग्रह  "सत्यम -शिवम् " में कुल १४ निबन्ध संगृहीत हैं।  इस संग्रह में दो निबंध तो ऐसे हैं जो अपनी मौलिक विचारणा एवं चमत्कारिक उदभावना से पाठकों को बेहद चमत्कृत  करते हैं। ये निबंध हैं - "मैं गीध होना चाहता हूँ " और "मैं अंधकार में खो जाना चाहता हूँ"।लेखक क्यों गीध होना चाहता  है और क्यों अंधकार में खो जाना चाहता है  - यह तो लेखक ही अच्छी तरह जानता  है और उसने अपनी इस चाहत के लिए अपनी ओर से पर्याप्त  अकाट्य तर्क भी प्रस्तुत किये है।  पर निश्चय ही लेखक की यह विलक्षण चाहत अध्ययनशील अध्येताओं को विलक्षण रूप से चमत्कृत करती है। फिर इस संग्रह में कुछ ऐसे निबंध भी हैं जो बेहद करुणाजनक हैं। ऐसे निबंधों से लेखक की सहृदयता ,संवेदनशीलता एवं करुणामयता स्वयमेव सिद्ध हो जाती है।  इस कोटि के निबंधों में"बैल-विदाई ", "रामानन्द  की पीड़ा ", "पुत्र शोक " आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस संग्रह में भी कुछ ऐसे व्यक्ति -चित्र हैं , कुछ ऐसे उपेक्षित व  उपेक्षणीय चरित्र जो शुद्ध सात्विक सर्जन के सुधा-संस्पर्श को पाकर सततजीवी, सदाजीवी हो गए हैं। 



छाया : अभिनव उत्कर्ष 
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छाया : अभिनव उत्कर्ष 



पुस्तक : शिवम् -सुन्दरम् (निबंध -संग्रह )
लेखक : रवीन्द्र नाथ ओझा 



ओझाजी के चौथे निबंध-संग्रह "शिवम् -सुन्दरम् " में कुल १८ निबंध संकलित हैं।  इस संग्रह में कुछ ऐसे निबंध हैं जो पाठकों को व्यापक -विराट, असीम -निस्सीम, अनादि-अनन्त  की ओरे ले जाते हैं।  यथा "उड़ जा पंछी दूर गगन में" नीलगगन के तले ", काल प्रवाह की अनुभूति ", चेतना के गहनतर गह्वर में"। यह निबंध-चतुष्टय मानवीय दृष्टि को, जीवनानुभव को वृहत्तर परिप्रेक्ष्य से , महत्तर सन्दर्भ से जोड़ता है।  साथ ही कुछ ऐसे निबंध हैं जो निबंधकार की अनन्य मौलिक दृष्टि और शैली के परम परिचायक हैं यथा "जब साबुन खो गया ", सुबह -सुबह उल्लुओं से भेंट", कुत्तों के सामने मुंह दिखने लायक न रहा"।साथ ही इस संग्रह में भी कुछ उपेक्षित और उपेक्षणीय व्यक्तियों के कालजयी चित्र हैं।  कुछ विरल  करुणा  से भरे निबंध भी हैं यथा "एक रिटायर्ड टीचर की कहानी", "कन्या-विदाई ", "कुत्ते की हत्या" आदि।  इन निबंधों के सम्यक-समग्र अध्ययन-अनुशीलन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि  लेखक की दृष्टि धरती से आकाश तक है, क्षण से अनन्त  तक है, स्थानिकता से सार्वभौमिकता तक है, सविशेष साकार से लेकर निर्विशेष-निराकार तक है।  

ऐसी मौलिक मानवीय, उदात्त और उत्कर्षिणी दृष्टि आज के साहित्य में दुर्लभ ही है।  औपनिषदिक संस्कार से पल्लवित-पुष्पित प्रस्फुटित ये निबंध वास्तव में हिंदी साहित्य की शक्ति सामर्थ्य और समृद्धि के सूचक हैं और उसके भंडार की श्री वृद्धि करने वाले हैं। 




छाया : अभिनव उत्कर्ष 

छाया : अभिनव उत्कर्ष 












पुस्तक :विप्राः बहुधा  वदन्ति
रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय आकलन 
संपादक : डॉ आदिनाथ उपाध्याय 
                अजय कुमार ओझा  



छाया : अभिनव उत्कर्ष 

                             




छाया : अभिनव उत्कर्ष 

छाया : अभिनव उत्कर्ष 








रवीन्द्र  नाथ ओझा, शंकर महतो ( थारु अनुसूचित जनजाति ) के साथ 













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