रवीन्द्रनाथ ओझा की कुछ कविताओं के मुख्यांश
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रवीन्द्र नाथ ओझा |
1
हम हों केवल हिन्दुस्तानी
मिट जाएँ अब जाति - धरम सब, मिट जाएँ नफरतरासी,
हम हों केवल हिन्दुस्तानी , हों बस केवल भारतवासी ।
मानववाद ही एक धरम हो, मानववाद हो एक करम ,
मानव सब धरमों से प्यारा , कोई न मन में रहे भरम ,
हर नर राजा , नारी रानी , मिटे सभी वैषम्य - कहानी ,
गूंजे चहुँ दिसि दिगदिगंत में साम्य और समता की बानी,
हर कुटिया मालिक हो अपनी , यहाँ न कोई दासादासी,
मिट जाएँ अब जाति - धरम सब, मिट जाएँ नफरतरासी,
हम हों केवल हिन्दुस्तानी , हों बस केवल भारतवासी ।
2
उठ ,मंगलम के गीत लिख
नैराश्य में , निष्कर्म रहना यह महा दुष्कर्म है ,
प्रतिकूल से संघर्ष करना ही महा सदधर्म है,
आलोक-उज्जवल जगत कर दे,तिमिरनाशन,तम को भगा ।
उठ , मंगलम के गीत लिख औ मंगलम के गीत गा ,
उठ , जागरण के गीत लिख औ जागरण के गीत गा ।
3
देश मुदित कब होगा ?
अन्धकार से घिरे जगत में सूर्य उदित कब होगा ,
कब होगा यह तमस तिरोहित देश मुदित कब होगा ?
अमर शहीदों के सपनों का सुख -स्वराज्य कब होगा,
बापू के सपनों का चर्चित रामराज्य कब होगा?
अन्धकार से घिरे जगत में सूर्य उदित कब होगा ,
कब होगा यह तमस तिरोहित देश मुदित कब होगा ?
4
आज विदाई लेता हूँ
मन को किया अब ईश-समर्पित ,
देह जगत को देता हूँ ,
क्या लेना-देना दुनिया से,
आज विदाई लेता हूँ।
जब तक जिया नहीं कुछ समझा,
अब समझा जब जाना है,
गलती हुई अनेकों लेकिन ,
उन्हें नहीं दुहराना है।
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