Wednesday, November 13, 2024

Kaveri Meets Ganga | Ministry of Culture|Govt. of India| Sangeet Natak Akademi|Kartavya Path| Ep.4/7

Kaveri Meets Ganga | Ministry of Culture|Govt. of India| Sangeet Natak Akademi|Kartavya Path| Ep.4/7







Tennis Sundari | Wonderful Tharu Tribe | West Champaran | Badaka Singhanpura | Rabindra Nath Ojha

Tennis Sundari | Wonderful Tharu Tribe | West Champaran | Badaka Singhanpura | Rabindra Nath Ojha





Kaveri Meets Ganga | Ministry of Culture | Govt. of India | Sangeet Natak Akademi| Kerala | Ep.3/7


Kaveri Meets Ganga | Ministry of Culture | Govt. of India | Sangeet Natak Akademi| Kerala | Ep.3/7





Wonderful Tharu Tribe , Alluring Tharuhat and Charming Champaran by Dr Ajay Kumar Ojha

                                                     Wonderful Tharu Tribe  

Alluring Tharuhat and Charming Champaran

(The Tharu Tribe of West Champaran)

By 

Dr Ajay Kumar Ojha 









This book is not only on  the wonderful Tharu Community but also on the alluring Tharuhat - the land of the Tharu Tribe, and  above all on the historic and splendid, captivating and charming Champaran. There are altogether thirty seven articles, most of them not very big but undoubtedly significant and worthy of attention .


This book is published by Rachna Publications of Delhi & available on Amazon.

















"Main Geedh Hona Chahta Hoon" ( मैं गीध होना चाहता हूँ ) Book by Dr Ajay Kumar Ojha

 

                                   मैं गीध होना चाहता हूँ 


(Main Geedh Hona Chahta Hoon) 


आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के रोचक ललित निबंधों का रुचिकर संग्रह 

(A Collection of Beautiful Personal Essays by 

Acharya Rabindra Nath Ojha)


सम्पादन 

डॉ अजय कुमार ओझा 

Edited by Dr Ajay Kumar Ojha 








सम्पादक के माउस से 








मुझे कुछ कहने दीजिए !




‘विप्राः बहुधा वदन्ति’ आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय आकलन करती हुई एक अद्भुत पुस्तक है।  इस पुस्तक में श्री कृष्ण मोहन प्रसाद जी का एक आलेख है ‘ मानवीय करुणा का विस्तार हैं ओझा जी’ । मैं इस आलेख से कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहूँगा, “आपके प्रत्येक निबंध आपके भीतर छिपे लेखक का नहीं, अपितु आपके भीतर के मनुष्य का, मनुष्य के भीतर छिपी करुणा का, संवेदना का विस्तार है।  ......  हंस और मयूरों के धवल और बहुवर्णी पक्षों पर मोहित होकर पृष्ठों को रंगीन करने वाले तो कई साहित्यकार मिल जायेंगे, परन्तु कौआ, बाज, चील और गिद्ध को साहित्य में प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले दुर्लभ साहित्यकार तो ओझा जी हैं।”  


जो पुस्तक आपके हाथ में है उसका नाम है “मैं गीध होना चाहता हूँ”।  अब आप ही बताइये कौन गीध बनना या होना  चाहेगा। आप भी सोच रहे होंगे कि लेखक का दिमाग खराब हो गया है या वह अपना संतुलन खो बैठा है।  पर लेखक को समझने के लिए लेखक की रचना को पढ़ना होगा, लेखक के अंदर छिपी करुणा को संवेदना को समझना होगा।  लेखक यों ही नहीं उद्घोष करता कि वह गीध होना चाहता है।  


अच्छा, ये चर्चा  विश्व स्तर पर नहीं हो रही कि गीधों की संख्या निरंतर काफी तेजी से कम होती जा रही है और ये पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कितने आवश्यक  हैं  और इनका तेजी से विलुप्त होना कितनी  चिंता का विषय है ?  “मृतक का भक्षण करनेवाला, मृतक से जीवन और पोषण प्राप्त करनेवाला, मृतक के विष को जीवन के  सुधामृत में बदल देने वाला मात्र गीध ही होता है।  यह उसकी ही करामात है, उसका ही चमत्कार, उसकी ही साधना, उसकी ही सिद्धि।” ऐसा कहते हुए आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा अपने निबंध में उद्घोष करते हैं कि मैं गीध होना चाहता हूँ और ये उद्घोष उन्होंने अस्सी के दशक में ही किया था जब वे  इस निबंध को लिख रहे थे।  आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा संवेदनशील तो थे ही, दूरदर्शी भी थे तभी तो जिस पक्षी को लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं उसी पक्षी की महत्ता, समाज में उसकी अनिवार्यता, पर्यावरण के लिए उसकी अपरिहार्यता, मनुष्य के अस्तित्व के लिए उसकी अत्यावश्यकता पर  उन्होंने  प्रकाश डाला। अत्यंत प्रभावकारी, सूचनाप्रद, ज्ञानप्रद  और रोचक है यह निबंध और इसीलिए मैंने  इस पुस्तक का नाम ही रख दिया “मैं गीध होना चाहता हूँ ”। 


यह पुस्तक बारह उत्कृष्ट ललित निबंधों का उत्कृष्ट संकलन है।  इस पुस्तक का दूसरा निबंध है, “नारी श्रेष्ठ है - औरत श्रेष्ठ है”। नारी की श्रेष्ठता को रेखांकित करता यह निबंध अपने आप में अनूठा है।  इसमें एक स्थल पर आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा नारी के अद्भुत गुणों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि नारी के बिना ईश्वर भी उसर  है, बंजर है, ठूंठ है, नीरस है, निष्प्रयोजन है, बेकार है - असहाय है। …. नारीत्व यानी सृजनशीलता का चरमोत्कर्ष, नारीत्व यानी व्यक्तित्व की अतलस्पर्शिनी गहराई से शक्ति-सम्प्राप्ति।  नारीत्व यानी जीवन की अकल्पनीय अननुभवगम्य अवर्णनीय गहराई से सुधापान, अमृत-अभिषेक - अमरता का वरदान। नारीत्व यानी मानवजाति की सर्वोच्च रिद्धियों-सिद्धियों-समृद्धियों का समाकलन, समाहरण-समायोजन- सम्बन्धन-संग्रंथन।”


फिर एक निबंध है :काव्येन हीनाः पशुभिः समाना:” जिसमें  काव्य की व्याख्या करते हुए आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा लिखते हैं, “काव्य का सम्बन्ध मानव हृदय से है, मानव-भावना से है।  काव्य तर्क का, बुद्धि का, तर्कणा का, विचारणा का विषय नहीं है  - न अंधविश्वास का,  न Rites-Rituals का, न व्रत-अनुष्ठान-आचार का। काव्य का सम्बन्ध सीधे मानव हृदय से, भावना से है।  काव्य सीधे मानवहृदय से  निकलता है और मानव हृदय को Appeal करता है, मानव-हृदय को स्पर्श करता है - छूता है - आनन्दित-आह्लादित-पुलकित-विकसित करता है।” 


इस प्रकार और नौ निबंध हैं  इस पुस्तक में जैसे ‘एक दिन वह सोचने लगा’, ‘मैं अपने से डरता हूँ’, ‘मेरे पड़ोसी  का रेडियो’  - निश्चय ही सब के सब रोचक हैं, दिलचस्प हैं। बारह निबंधों का यह गुलदस्ता अद्भुत है, विभिन्न विषयों को अपने में समेटे हुए, लपेटे हुए। अवश्यमेव पठनीय, अवश्यमेव मननीय एवं अवश्यमेव संग्रहणीय। 


अब मैं आपको रोकना नहीं चाहूँगा - एक पल के लिए भी नहीं, एक क्षण के लिए भी नहीं, निमिष मात्र के लिए भी नहीं।  मैं इन अद्भुत रचनाओं से साक्षात्कृत होने के लिए आपको पूरी तरह से छोड़ देता हूँ, मुक्त कर देता हूँ। अब आप बिना किसी रोक-टोक के, बिना किसी अवरोध के, बिना किसी बैरियर के इनमें डूब जाएँ, रम जाएँ - इनका रस लें, रसास्वादन करें। जय हिन्द, जय भारत। 


सधन्यवाद। 


                                                           डॉ अजय कुमार ओझा 

पूर्व संवाददाता, यूनाइटेड न्यूजपेपर्स, दिल्ली  

पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी (दूरदर्शन) 

भारतीय प्रसारण सेवा 

एडवोकेट, भारत का सर्वोच्च न्यायालय 

                                              स्थान : नई दिल्ली 

ई-मेल : ajayojha60@gmail.com 

                                                             संपर्क : 9968270323 


 




सत्यम् शिवम् के सहयोग से अनुराधा  प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित तथा डॉ अजय कुमार ओझा द्वारा सम्पादित यह पुस्तक सभी वर्ग के पाठकों के लिए अवश्यमेव पठनीय व संग्रहणीय है।