Wednesday, June 25, 2025

जे. पी. आंदोलन तथा आपातकाल के सेनानी आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा (MISA Arrestee Acharya Rabindra Nath Ojha )

 जे. पी. आंदोलन (J P Movement) तथा आपातकाल (Emergency) के

सेनानी आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा

(Acharya Rabindra Nath Ojha)


25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा भारत में आपातकाल लागू करना लोकतंत्र के लिए सबसे काला अध्याय है। इस घटना की 50वीं वर्षगांठ हमें तानाशाही के ख़तरों के साथ साथ उसके दुष्परिणाम की याद दिलाती है। इस घटनाक्रम में हमारा पूरा परिवार ही अस्त व्यस्त, परेशान दुखित, बेबस लाचार हो गया था - मानसिक व आर्थिक रुप दोनों तरह से ।

प्रभुराज नारायण राय के अनुसार जे.पी.आंदोलन के दौर में छात्र -आंदोलन का मार्गदर्शन व नेतृत्व करने का काम आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा ने किया। वे एम. जे. के महाविद्यालय शिक्षक संघ के सचिव भी थे । छात्र आंदोलन के क्रम में ही उन्हें गिरफ्तार कर बेतिया जेल भेज दिया गया । वहां महीनों उन्हें जेल में रहना पड़ा । जेल में रहने के कारण घर-परिवार में जबरदस्त आर्थिक तंगी आ गई थी जिसके चलते नयी गंजी खरीदने में भी वो असमर्थ थे। ऐसे कठिन समय को भोगने का तथा उससे अपने‌ को उबारने का साहसिक अनुभव मुझे उनके साथ प्राप्त हुआ।
"विप्रा : बहुधा वदन्ति" रवीन्द्रनाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय आकलन करती हुई एक अद्भुत पुस्तक है। इस पुस्तक में एडवोकेट राजेश्वर प्रसाद के कथनानुसार आचार्य ओझा लोकनायक जयप्रकाश आंदोलन की अगुवाई अपने हाथ में ले चुके थे। शहर में नुक्कड़ सभा, चौराहों पर अनशन, धरना आदि कार्यक्रम चलने लगा। ऐसे ही समय में एक दिन अचानक आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा शहर के प्रसिद्ध भोला बाबू चौक पर अनशन पर आ बैठे। आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका से पूरे जिले में एक नई क्रान्ति पैदा हो गयी। इसी‌ क्रम में ओझा जी की बेतिया में मीसा (Maintenance of Internal Security Act) के अन्तर्गत गिरफ्तारी हुई और उसके प्रथम गिरफ्तार व्यक्ति ओझा जी थे। बेतिया जेल में ओझा जी का करीब डेढ़ महीना बीत चुका था । सावन‌ के महीने में बेतिया कौन कहे पूरा चम्पारण बाढ़ की चपेट में आ गया, जेल में पानी भर गया कैदियों को कहीं अन्यत्र ले जाने की नौबत आ गयी। मीसा बन्दी बहुत ही खतरनाक श्रेणी में आते थे। उनका जेल स्थानान्तरण किया गया और पुलिस वान में बैठाकर किसी तरह मोतिहारी जेल में भेजा गया। करीब पन्द्रह दिन मोतिहारी कारागार में बीता होगा कि ओझा जी की रिहाई की खबर आई।
इस बीच आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा को M.J.K College से सस्पेंड कर दिया गया। घर चलाना मुश्किल हो गया । हम दो भाइयों के स्कूल का फीस देना मुश्किल हो गया। मकान मालिक घर से निकालने की धमकी देने लगा। सभी अपने पराए हो गए। विपरीत परिस्थितियों में अपनों‌ का साथ भी‌ छूट जाता है। सभी तानें देने लगे। इन सब तनाव व परेशानी के बावजूद मैट्रिक की परीक्षा में मैं प्रथम श्रेणी में‌ बहुत अच्छे अंक के साथ उत्तीर्ण हुआ। मेरा एडमिशन संत जेवियर कॉलेज रांची और पटना साइंस काॅलेज दोनों में हो रहा था, जो सभी का सपना होता है, पर ऐसी परिस्थिति में बाहर जाना असम्भव था। मां को सम्भालना था, छोटे भाई को भी देखना था। कम उम्र में ही मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी थी। खैर।
मेरे बाबूजी को बिहार सरकार द्वारा आज तक जे.पी. सेनानी सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया जबकि मैंने कई बार बिहार सरकार को मेल भी किया था । बेतिया, चम्पारण से मीसा में सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले मेरे बाबूजी आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा अब इस दुनिया में नहीं हैं पर इस सम्मान के वे हकदार तो थे‌ ही। इस सम्मान के मिलने से‌ उनकी आत्मा को शांति मिलती।
आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर बाबूजी की याद आना स्वाभाविक है, और जो असहनीय कष्ट व वेदना हमलोगों ने झेलीं उस काले कालखंड‌ में, उसको स्मरण कर आज भी घबड़ाहट और बेचैनी होने लगती है।
एक बात और कहना चाहूंगा। कुछ दिन जेल में रहकर उस समय कुछ लोग केंद्र में और राज्य में मंत्री बन गए। परन्तु आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा को यह स्वीकार नहीं था। महीनों मीसा (MISA) में गिरफ्तार होने के बावजूद भी उन्होंने किसी पद व प्रतिष्ठा व पुरस्कार के लिए याचना नहीं की।
जे.पी आंदोलन व आपातकाल के सेनानी आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा को नमन, शत शत नमन।

















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