Monday, October 4, 2021

आखिर पश्चिम चम्पारण के थारू क्यों करने लगे हैं औषधीय पौधों की खेती ?| Th...

आखिर पश्चिम चम्पारण के थारू क्यों करने लगे हैं औषधीय पौधों की खेती ?| Tharus of West Champaran









ये जो  क्षेत्र आप देख रहे हैं वह पश्चिम चम्पारण के थारू आदिवासियों का क्षेत्र है।  मनमोहक है न ! मनभावक है न ! यह हिमालय की तलहटी में बसा है। 

थारू आदिवासी बासमती धान की खेती करते हैं, मिर्चा व  आनन्दी धान की खेती करते हैं।  ये सभी धान सुगन्धित होते हैं, देश-विदेश में प्रचलित हैं।  आनन्दी चावल का भूजा बहुत ही स्वादिष्ट होता है।  थारू जनजाति अद्भुत है थरुहट क्षेत्र भी अद्भुत। 

आपको बता दूँ बखरी बाजार के एक थारू हैं योगेन्द्र प्रसाद महतो - इनको 400 से अधिक औषधीय पौधों की जानकारी है और  ये अपनी बारी में अनेक औषधीय पौधे लगाए हुए हैं। 

अब थारू लोग औषधीय पौधों की खेती भी करने लगे हैं - पर यह परिवर्तन क्यों ? 

असल में बात ये है कि जंगल के बीच में रहनेवाले  थारुओं की फसल को सबसे अधिक नुकसान वन्यजीवों से होता है।  सुगन्धित धान की प्रजाति को नीलगाय, हिरन, भालू आदि व्यापक पैमाने पर बर्बाद कर देते हैं जिससे थारुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय होती जा रही है। 

यही कारण है कि थारू जनजातियों का झुकाव अब औषधीय फसलों की खेती की  ओर हो रहा है।इन फसलों को जैसे लेमन ग्रास, मशरूम, मेंथा या पिपरमिंट को जंगली  जानवर क्षति नहीं पहुँचाते हैं।  साथ ही इनसे अच्छी आमदनी हो रही है - और प्रशासन भी सहयोग व प्रोत्साहन दे रहा है। 

 तो पश्चिम चम्पारण के थारू आदिवासी  जंगल के भीतर ही खेती के बेहतर विकल्प की खोज कर रहे हैं, औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। 
साथ ही पर्यटकों के लिए भोजन एवं आवास की व्यवस्था करके भी थारू अर्थार्जन कर रहे हैं, आर्थिक लाभ कमा रहे हैं।  
 




















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