"सूत्रधार अब राजनीति के हो जाएँ आश्रमवासी" - प्रो (डॉ ) रवीन्द्र नाथ ओझा
आज भारत देश के केंद्र में श्री नरेंद्र मोदी की सरकार है और देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की। दोनों ही आश्रमवासी की तरह हैं और देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु कृतसंकल्प। निस्वार्थ भाव से। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आज देश सुरक्षित हाथों में है और देश का भविष्य उज्ज्वल है।
योगी आदित्यनाथ एक प्रखर -प्रभावशाली वक्ता हैं जो तथ्य पर आधारित तर्कों से सबको निरुत्तर कर देने का सामर्थ्य रखते हैं , संवेदनशील - लोकप्रिय - राष्ट्रभक्त युवा नेता हैं जो प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी होने की क्षमता रखनेवाले प्रतीत होते हैं।
योगी आदित्यनाथ एक प्रखर -प्रभावशाली वक्ता हैं जो तथ्य पर आधारित तर्कों से सबको निरुत्तर कर देने का सामर्थ्य रखते हैं , संवेदनशील - लोकप्रिय - राष्ट्रभक्त युवा नेता हैं जो प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी होने की क्षमता रखनेवाले प्रतीत होते हैं।
प्रो (डॉ ) रवीन्द्र नाथ ओझा |
प्रो (डॉ ) रवीन्द्र नाथ ओझा की यह कविता देशवासियों को प्रेरित कर रही है कि सब तरह के घृणा व द्वेष को त्यागकर "हम हों केवल हिन्दुस्तानी हों बस केवल भारतवासी"... इसी कविता के माध्यम से प्रो ओझा ने देश में परिवर्त्तन के लिए यह भी अभिव्यक्त किया है कि " सूत्रधार अब राजनीति के हो जाएँ आश्रमवासी " जो आज सर्वांशतः सत्य प्रतीत हो रहा है।
प्रो (डॉ ) ओझा की दूरदृष्टि व दिव्यदृष्टि को शत शत नमन।
"मिट जाएँ अब जाति - धरम सब मिट जाएँ नफरातरासी
हम हों केवल हिन्दुस्तानी हों बस केवल भारतवासी।
मानववाद ही एक धरम हो, मानववाद हो एक करम ,
मानव सब धरमों से प्यारा , कोई न मन में रहे भरम ,
हर नर राजा , नारी रानी , मिटे सभी वैषम्य -कहानी ,
गूँजे चहुँदिसि दिग्दिगंत में साम्य और समता की बानी
मिट जाएँ अब जाति - धरम सब मिट जाएँ नफरातरासी
हम हों केवल हिन्दुस्तानी हों बस केवल भारतवासी।
हर पंछी को नीड़ हो अपना , हर नौका को लंगर ,
हर राधा को सहज सुलभ हो वंशीधर पीतांबर ,
हर सीता को मिला करे , मनभावन श्यामल सुवर ,
धरती का हर प्रणय निवेदन सुना करे नीलांबर ,
लक्ष्मण को कोई बाण लगे नहीं , राम न हों वनवासी,
मिट जाएँ अब जाति - धरम सब मिट जाएँ नफरातरासी
हम हों केवल हिन्दुस्तानी हों बस केवल भारतवासी।
यहाँ नहीं बाणों से आहात क्रोन्च करे कोई क्रन्दन ,
फँसे नहीं अभिमन्यु व्यूह में , सभी काष्ठ हों चन्दन ,
हर सरिता को पास बुलावे उसका प्रेमी सागर ,
हरी भरी सब यौवन क्यारी भरी - भरी हो गागर ,
सूत्रधार अब राजनीति के हो जाएँ आश्रमवासी ,
मिट जाएँ अब जाति - धरम सब मिट जाएँ नफरातरासी
हम हों केवल हिन्दुस्तानी हों बस केवल भारतवासी।"
"विप्रा : बहुधा वदन्ति "(२००८ )
(रवीन्द्र नाथ ओझा के व्यक्तित्व का बहुपक्षीय आकलन )
पुस्तक से साभार
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