Sunday, September 25, 2016

"बेटियों !उठो !जागो ! विरासत को संभालने का वक़्त आ गया है " डॉ शिप्रा स्वर्णिम (Dr Shipra Svarnim)

       
"बेटियों !उठो !जागो ! विरासत को संभालने का  वक़्त आ गया है " 
डॉ शिप्रा स्वर्णिम 
(Dr Shipra Svarnim)





डॉ शिप्रा स्वर्णिम  बेतिया चंपारण बिहार में एक गोष्ठी को संबोधित करती हुईं
Dr Shipra Svarnim Participating in a Goshthi organized in Bettiah Champaran Bihar






बेटी हूँ मैं 
अबला और कमज़ोर नहीं 
तरस से न देखो मुझे 
सँभाल सकती हूँ 
पुरखों की विरासत 

ज़िद्द पर आ जाऊँ 
तो तुम्हें 
परास्त भी कर सकती हूँ 
आ जाओ कभी 
कर लें दो - दो हाथ

आज़मा  लो मुझे 
माँ ने तुमसे कम दूध 
मुझे नहीं पिलाया 
तुम भूल चुके हो 
अपना कर्त्तव्य -निर्वाह 

पर नहीं भूली मैं 
पिता की सीख 
पुरखों की विरासत 
नहीं चाहिए मुझे 
तेरा यह धन-दौलत 
शान -शौकत 

पिलाया है माँ ने 
जन्मघूंटी में मुझे 
मान ,सम्मान,स्वाभिमान 
इतनी बेग़ैरत नहीं हूँ मैं 
कि ऋण न चूका सकूँ 
अपनी जननी - जन्मभूमि का 

ललकारो न हमें कभी 
अपने कर्त्तव्य -पालन को 
निकले हैं हम 
सर पर बाँध के कफ़न 

बेटियों !उठो !जागो !
विरासत को संभालने का 
वक़्त आ गया है 
और -
हम नहीं हैं कभी 
बेटों से कम 
हमारा वज़ूद नहीं है 
कभी किसी से कम 

अरे मूर्खों !
बेटियों को कम मत आँको 
उनमें शील - संस्कार बसता है 
कभी उनके अंतरतम में तो झाँको 
क्यों रोता  और कब हँसता है ?


डॉ शिप्रा स्वर्णिम की माँ डॉ सुशीला निवेदिता
Dr Sushila Nivedita  Mother of Dr Shipra Svarnim



डॉ शिप्रा स्वर्णिम की कुछ और कविताएँ 

डॉ शिप्रा स्वर्णिम तुलसी जयंती पर  बेतिया में अपनी कविता का पाठ करती हुईं
Dr Shipra Svarnim Reciting Her Poem on the Occasion of Tulsi Jayanti in Bettiah Champaran



"रत्ना का पत्र , तुलसी के नाम -"


हे मानस के हंस ,
करती हूँ तुम्हें प्रणाम,

हे संत, निर्मल निष्काम ,
रखती हूँ तुम्हारी कुशलता की इच्छा 
सामर्थ्य क्या मेरी 
जो करूँ तुम्हारी समीक्षा ?

चले गए तुम छोड़ , मैं रह गयी अकेली 
तिल - तिल, रोम रोम जलती हूँ 
आकुलता है चिरसंगी सहेली-

मैंने तो सिखलाया तुम्हें विमुक्तता की भाषा 
क्या जानती थी मैं , जल जाएगी मेरी अभिलाषा 

कभी तो दर्शन दे दो , हे स्वामी हे नाथ !
खिल जाएगी अभिशप्त रत्ना , पाकर तुम्हारा साथ 

करते हो तुम जगत का उद्धार, क्या मैं ही तुम पर एक 
तुच्छ भार ?

किया मैंने असंभव को संभव 
बनाया भोगी को योगी ,काम को राम 
बढ़ाया इस माया जगत में तेरा ही गौरव 

हाड़ -मांस के नश्वर देह से 
थी तुम्हारी अनुरक्ति 
  रत्ना ने ही दिखलाया तुझे तेरे राम की शक्ति 

राममय हो गए तुम हे मानस के हंस !
तेरी इस उपलब्धि में तो 
मेरा भी है कुछ अंश

फिर मैं ही क्यों झेलूँ इस दुसह विरह का दंश 
हो जीवन का  सूर्यास्त तुम्हारे चरणों में ही 

राम से है विनती अविराम 
पा जाऊँ मैं मुक्ति तुम्हारी शरणों में ही 

प्रार्थना है मेरी , जगे तुम्हारी चेतना ,
मानिनी है और रहेगी तुम्हारी रत्ना  -


हिंदी को समर्पित एक कविता 
"तू हिंदी है 

मेरे माथे की बिंदी है-"



डॉ शिप्रा स्वर्णिम
Dr Shipra Svarnim 



जब से होश संभाला 
तेरी गोद ने पाला 
तू हिंदी है 
मेरे माथे की बिंदी है-

सीखा पकड़ के पिता की उँगली 
तुलसी , मीरा ,रैदास से सँभली 
रामचरित, गीता ने ढाला 
मुझको तो सूरदास ने पाला

तू हिंदी है 
मेरे माथे की बिंदी है-

तेरी मिट्टी में गढ़े हुए 
तेरे संस्कार में बढ़े हुए 
तेरी गोद में रतन - ख़ज़ाने 
सारा विश्व उनको पहचाने 

तू हिंदी है 
मेरे माथे की बिंदी है-

कबीरदास की उल्टी बानी 
उनकी महिमा किसने न जानी 
तू तो है गागर में सागर 
प्रकृति के रंगों में ढलकर

तू हिंदी है 
मेरे माथे की बिंदी है-

छोटी  सी इच्छा अनजानी 
तेरे वर्ण, शब्द और वाणी 
रहें सदा मेरे अंतरतम में 
हर्ष - विषाद के हर क्षण क्षण में 

तू हिंदी है 
मेरे माथे की बिंदी है-


पिता को समर्पित एक रचना   On Father's Day  
"मैं तो थी...." 
डॉ शिप्रा स्वर्णिम के पिताजी  प्रॉ (डॉ ) बलराम मिश्रा
Prof (Dr) Balram Mishra Father of Dr Shipra Svarnim




मैं तो थी 
मिट्टी की एक अबोध चिड़िया 
पंख दिए तुमने , हौसले की उड़ान भी 
तुमने डाले प्राण और मेरी पहचान भी 
मुझमें भरे भाव , और स्वाभिमान भी 
बनाया आत्मनिर्भर , दिया आसमान भी 

मैं तो थी 
एक नन्ही - सी बेजान चिड़िया 
दिया तूने सर्वस्व , सिखाया पंखों को फैलाना 
जीवन के झंझावातों से अपने आपको बचाना 
सोई हुई प्रकृति को अपनी गूंज से जगाना 
सूरज की किरणों से हँसना - खिलखिलाना 

मैं तो थी 
भोली- भाली कोमल चिड़िया 
बादल से लुक -छिप कर अपनी राह बनाई 
रंग और खुशबू आसमान से लाई 
मत रोको मेरी राह, उड़ने दो बेपरवाह 
भटके को नई  राह दिखलाने आई 

मैं तो हूँ 
एक मज़बूत इरादों वाली चिड़िया...

तेरा एहसास मुझे ताक़त देता है 
तेरा आशीष मुझे बरक़्क़त देता है 
घिर जाती हूँ कभी गर्द - गुबार में 
बाहर निकलने की मुझे मशक़्क़त देता है 

तू मेरी धरती है तू मेरा आकाश है 
तुझमें मेरे ईश्वर का वास है 
तू न होता तो मैं न होती 
 तू ही मेरी शक्ति , मेरा विश्वास है... 


एक महान आत्मा ,चिंतक,विचार ,विश्व विख्यात वैज्ञानिक ,अभूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे  अब्दुल कलाम (Dr A P J Abdul Kalam ) को  समर्पित 
डॉ शिप्रा स्वर्णिम की कुछ पंक्तियाँ 

Dedicated to Dr A P J Abdul Kalam

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डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम
(Dr A P J Abdul Kalam)



हे कर्मयोगी !
तुम थे, तुम हो , तुम रहोगे 
हमेशा -हमेशा 

मेरी हृदय -स्थली की नर्म शैय्या पर 
मेरी पुतलियों के बीच ,
मेरी सुनहरी किताब की एक-एक हरफ़ में,
मेरी श्वासों के बीच,

मैं तुम्हें जाने न दूँगी , रोक लूँगी 
अपने हठ से , अपने बाल - हठ से 

तुम बिन है कौन हमारा ?
हम तो निराश्रित हो जाएँगे तेरे बग़ैर 

तुम रहोगे सदा , सर्वदा अपनी 
भारत - भूमि पर 
जिसकी आधी आबादी सपने देखती है 

पर
पूरा करने की हिम्मत नहीं रखती 
 कौन ले जाएगा उन्हें 
स्वर्ण - शिखर पर.. 
हमारी कमज़ोर उँगलियों को 
आकर थाम तो लो 
और दिखा दो हमें रास्ता 
तुम मत जाओ , तुम मत जाओ 
कभी मत जाओ.. 


"सावन के बादल" 

कहाँ से आते हो तुम 
और कहाँ जाते हो?
मेरे घर आँगन में,
क्यों नहीं बस जाते हो ?
सुख गयी थी मेरी बगिया 
पीले थे पत्ते और सुखी थी डालियाँ 
मुरझाए -से फूल और गुमसुम -सी नदियाँ 
पत्थर -सी हो गयी थी सबकी नजरिया 
आए तुम तो नई जान आ गयी 
सबकी झोलियाँ भर-भर जाते हो 
मेरे घर आँगन में,
क्यों नहीं बस जाते हो ?

मन में मीठी बांसुरी लहराती है 
एक कशिश चारो ओर छा जाती है 
बूँद -बूँद अठखेलियाँ कर जाती हैं 
मन्द - मन्द मादकता हर ओर पसराती है 
आकुल-व्याकुल चिर - प्रतीक्षारत 
सुखी धरती को हर बार सरसाते हो 
मेरे घर आँगन में , 
सदा के लिए क्यों नहीं बस जाते हो ?


"मेरे घन !"

आशा थी कि इस बार बसेगा 
सावन और उगेंगी नन्हीं -नन्हीं कोपलें 
नाचेंगे मयूर ,थिरकेंगे मेरे पावँ 
तन पर हरियाली धारण कर 
बादलों को बरसने का आमन्त्रण 
भीगे तन-मन पर होगी सिहरन 
बरसो भी मेरे घन !
अब बरस भी जाओ 
छ्टपटाती है सुनी कोख 
धारण करने को कोमल कोंपल 
क्यों लेते हो प्रतिशोध 
इस कोमल काया से 
इस धरा का सारा रस 
निचोड़ कर क्यों ले जाना चाहते हो 
क्यों बनाना चाहते हो मुझे 
एक अभिशप्त बाँझ 
डाल तो दो एक बूँद 
जीवन के शाश्वत प्रेम का.. 




A Poem Dedicated to Friendship Day


मेरी सबसे अच्छी दोस्त 
नहीं समझती मेरे शब्दों को 
समझती है केवल मेरे भाव 

वह नहीं जानना चाहती 
मेरे तर्क,मेरे विचार, मेरी शिक्षा 

जानती है तो मेरे संस्कार 
जिसकी वह मुरीद है 

उसका होना मुझे 
एक मज़बूत एहसास देता है 

प्रेमचंद , शेक्सपियर , टैगोर 
उसकी पूँजी के अनमोल रत्न नहीं हैं 

वह पहचानती है ! केवल 
सीता , राधा और पार्वती को 

उसके सामने मेरे शब्दजाल 
बेमानी लगते हैं ,

वह याद करती है तो बस ,
बचपन की लुक्का - छिपी , आँख -मिचौली 

मुझे अफ़सोस है ,
मैं उसके लिए कुछ कर न सकी 
समझा  न सकी 
किताबों की भाषा को 

क्योंकि...
मेरी सबसे अच्छी दोस्त 
निरक्षर है 
नहीं बुझती मेरी भाषा को 



"हमारे कृषक हमारे अन्नदाता"
Dedicated to Farmers 

मुफलिसी की जंग के 
योद्धा है वो 
लहू से किस्मत सींचने वाले 
पुरोधा हैं वो 

अपनी थाली की रोटी 
दूसरे को देते रहे जो 
फिर भी अभिशप्त 
तिल तिल मरने को वो.. 














 

Saturday, September 24, 2016

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : Narayan Acharya a Painter with Humanistic Vision

From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha : 
Narayan Acharya a Painter with Humanistic Vision



For Narayan Acharya " Creation is acquired and not learned. I acquired this from my mother who unfortunately left me when I was 7 years old. I remember it very clearly the pictures she used to draw on floors as Rangoli and the images of lord Ganesha. She never learned the art of creating pictures rather always use to say it is the Almighty, Nirakar who has given the power of forming different Akars (Shapes).

 He goes on to say" I use readymade colours, self prepared colours and as far the rechnique is concerned it is different all the times and may be termed as innovative technique but strongly feel that it is the supreme power who guides me in making such creations. I adore, enjoy and respect every piece of art made by an artist as a gift of God extended to them including me."



An exhibition of Paintings, Drawings & Graphics of  Narayan Acharya was inaugurated by Shri Atul Marwah, Director M.E.C Art Gallery New Delhi on Friday 23rd September 2016 at 5.30 pm in All India Fine Arts & Crafts Society at its Gallery 1 Rafi Marg, New Delhi. This exhibition will continue upto 29th September daily from 11am to 7 pm.


(All the images are subject to IPR)











Shri Atul Marwah Addressing the Audience While Inaugurating the Exhibition
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



Shri Narayan Acharya in Black Specs
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha)

















Now let us have a look at some of the exceptional and unique art pieces of Shri Narayan Acharya.





Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha





Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha






Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha


Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha




Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha




Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha




Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha




Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha




Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha


Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha












Shri Narayan Acharya with Shri Atul Marwah and Members of His Family
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



Born in 1925 at Bikaner, in a Puskarna Brahmin family of a limited means. National Diploma in Commercial Art from Delhi Polytechnic, First class first. Worked as a modeler Interpreter at the Air Head Quarters, New Delhi and retired in 1983 after a service of 32 year,

Shri Narayan Acharya has received a number of Awards and Honours and participated in many Art Exhibitions    and Workshops. His collections can be seen in National Gallery of Modern Art, New Delhi, Sahitya Kala Parishad New Delhi, M.E.C Art Gallery New Delhi, Modern Art Gallery Jaipur, Jawahar Kala Kendra Jaipur.

















Sunday, September 18, 2016

"Tattoo for Mother - Father : 'I Love You Mom Dad' "


"Tattoo for Mother - Father :  'I Love You Mom Dad' " 


Today I  went to Dr Lal Path Lab  on Aurobindo Road in Safdarjung Development Area  of South Delhi to give my blood sample. It was too crowded in the morning around 9.00 AM. But everything was moving systematically. Every one was waiting in queue for his or her turn. There was nothing unusual.





Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha





 But when I reached to cash counter for payment suddenly my eyes stuck at one elbow of a man. There was nothing unusual about the elbow or about the man even. He was having a tattoo on his elbow. That was also not unusual as many youths are getting tattoos made on different part of the body. It has become a crazy fashion. 




Elbow of Vijay with Tattoo " I Love You Mom Dad
Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha



But there was definitely something unusual. The man was having tattoo which reads " I Love My Mom-Dad."

It was really unusual in this metropolitan societies where relation has lost its meaning, its feeling, its definition. Daily we see the news of aged mother and father being  ignored, ill-treated, misbehaved and humiliated even by daughters also. In this kind of a situation, grim & pathetic situation, this appears to be a green patch in the island of desert. So it drew my attention and I took the image of this special elbow of Vijay who happens to be caring for his mother-father. 

See the negativity prevailing in the atmosphere as  I heard a female voice telling that he must be unmarried.

Anyway I walked out of the lab smilingly  keeping the image and the feeling behind the image in my mind. 



Saturday, September 17, 2016

Lord Ganesh Idol Immersion Procession Near Doordarshan Delhi India



Video Uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

This video clip "From the Eyes of Dr Ajay Kumar Ojha " captures the procession  of Lord Ganesh Idol Immersion on Copernicus Marg near Doordarshan Bhawan and Sri Ram Bharatiya Kala Kendra in Mandi House of New Delhi India. This procession has come out of Maharashtra Bhawan. Watch the colour, watch the dance , watch the energy, watch the music and watch the enthusiasm.

Surprising but Spectacular : Qutab Minar Wrapped in Tiranga Lighting



Video Uploaded by Dr Ajay Kumar Ojha

One day from the roof of my Apartment I could see light falling on Qutab Minar Delhi India and creating a spectacular sight in the night. Qutab Minar seems to be wrapped in three colours of Tiranga and presenting a captivating view in a star studded night in the backdrop of  sound of movement of aeroplanes. I could not resist the temptation of recording the same and later bringing on this channel for public view. Qutub Minar is the tallest brick made minaret in the world and Qutab Minar Complex  in Mehrauli South Delhi has been included in the list of UNESCO World Heritage Site and one of the most sought after tourist destination in Delhi.

Another Goldy Devendra Jhajharia "The Paralympian" : From Remote Village to Rio Paralympics

Another Goldy Devendra Jhajharia "The Paralympian" :
 From Remote Village to Rio Paralympics


Here is a man who lost his left hand at the age of eight, because he touched a live wire while climbing a tree.

Here is a  man who comes from a remote village of Rajasthan which cries for even basic facilities.






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Courtesy:qz.com








Here is a man who transformed his disability into ability.

Here is a man who did not lose heart and pursued his passion of Javelin Throw, initially throwing self made bamboo spear.






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Courtesy:timesofindia.indiatimes.com





Here is a man who got gold in Javelin Throw with a distance of 62.15 mtrs in Athens Paralympics 2004.

Here is a man who  again received Gold in Javelin Throw with a distance of  63.97 mtrs in Rio Paralympics 2016 breaking his own record of Athens Paralympics 2004.




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Courtesy: bbc.com







And thus here is a man, who becomes the first Indian to get two gold in Olympics.


This special man with special achievement is Devendra Jhajharia