शंकर महतो - थारू आदिवासी
पर महा -आत्मा , महा-व्यक्तित्व
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शंकर महतो व प्रो(डॉ ) रवीन्द्र नाथ ओझा
[ फोटो डॉ अजय कुमार (ओझा)]
आज अचानक नवेन्द्र का फ़ोन आया। पता चला कि शंकर महतो नहीं रहे। नवंबर 2012 में उनका निधन हो गया। ऐसा लगा जैसे मैंने कोई अपना खो दिया। हाँ बिलकुल अपना। नवेन्द्र शंकर महतो का बेटा है।
शंकर महतो को मैं 1988 से जानता हूँ जब मैं थरुहट पहली बार गया था। अपने रिसर्च के सिलसिले में। उन्होंने ही मुझे अपने गाँव बखरी बाज़ार(पश्चिम चम्पारण, बिहार) में रहने की इजाज़त दी गांववालों के विरोध करने पर भी। अपनी झोपड़ी में रहने दिया परिवारवालों के नाखुश होने पर भी। मैं महीनों उनकी झोपड़ी में रहा।
अगर उनका प्यार और आशीर्वाद मुझे नहीं मिलता तो मैं अपना डोक्टोरेट नहीं कर पाता। वो एक महान व्यक्ति थे उनमें। मानवता कूट कूट कर भरी थी। इसीलिए वो महान आत्मा भी थे। ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे पर उनका विचार, उनका व्यवहार , उनका संस्कार आजकल के तथाकथित पढ़े लिखे लोगों से अप्रत्याशित रूप से अदभुत था। इसी से कहा जाता है कि पढ़ने लिखने से आदमी महान इंसान नहीं होता, होता है तो अपने महान कर्मों से।
आज के तथाकथित पढ़े लिखे लोग कुसंस्कारों से ग्रस्त हो गए हैं , जोड़ तोड़ में लग गए हैं , हर तरह का कुकर्म कर उसे सही ठहराने में लगे हुए हैं। क्या यही विकास का पैमाना है ?
शंकर महतो जी का व्यक्तित्व बहुत विशाल था और उनका कृतित्व भी। थारू जनजाति के कल्याण और विकास हेतु उनके अथक प्रयास सदैव याद किये जायेंगे। निरंतर संघर्ष के उपरान्त, देश की आज़ादी के करीब 55 वर्षों के पश्चात चम्पारण के थारू जनजाति को 2003 में अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा मिला - इस संघर्ष में शंकर महतो जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही ।
शंकर महतो जी की महान आत्मा और महा व्यक्तित्व को शत शत नमन।
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2 7 नवंबर 2011 को शंकर महतो के साथ डॉ अजय कुमार ( ओझा ) |
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