Saturday, April 19, 2025
Shri Nand Mahal | Nandgaon| Barsana | Mathura | Uttar Pradesh| Nand Baba| Yashoda | Shri Krishna
Wednesday, April 16, 2025
Shri Nand Baba | Shri Krishna | First House of Shri Nand Baba | Nandgaon | Mathura | Uttar Pradesh
Monday, April 14, 2025
Goa of Chhattisgarh / Water Sports / Gangrel Dam / Mahanadi / Dhamtari /Raipur /Tourist Destination
Sunday, April 13, 2025
8 K.R. Alumni Meet | New Moti Bagh Club | New Delhi | K.R. School Bettiah | West Champaran | Bihar
Saturday, April 12, 2025
Mahanadi | Boating Adventure | Gangrel Dam | Dhamtari| Chhattisgarh| Origin of Mahanadi
Mahanadi River | Gangrel | Chhattisgarh | Charming Tourist Place | Bhilai Steel Plant | Dhamtari
Thursday, April 10, 2025
DD National | Chetan Vyas | Acharya Rabindra Nath Ojha | Dr Ajay Kumar Ojha| Copernicus Marg | Delhi
Gangrel Dam | Ravishankar Sagar Dam| Mahanadi | Dhamtari | Chhattisgarh | Bhilai Steel Plant|Raipur
Monday, April 7, 2025
रामनवमी की शुभकामनाएं
Homage to Veteran Actor & Film Producer- Director | Manoj Kumar| Dada Saheb Falke Awardee
Tuesday, April 1, 2025
Yadi Hum Nange Rahate...| Acharya Rabindra Nath Ojha|Dr Ajay Kumar Ojha| Anuradha Prakashan
बिहार विभूति आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के ललित निबंधों का एक और संग्रह आप तक पहुँच रहा है।अपने ललित निबंधों के बारे में चर्चा करते हुए अपनी पुस्तक सत्यम्- शिवम् में वे कहते हैं -
“ रचना-क्रम में, सृजन-अवधि में मेरी दृष्टि बड़ी व्यापक रही है, मैंने हर घटना, स्थिति, वस्तु, व्यक्ति, मनःस्थिति, भावस्थिति को बड़े व्यापक परिपेक्ष्य में देखने की कोशिश की है - कहीं कहीं तो मेरी दृष्टि असीम-अनन्त पर जा टिकी है। इसलिए केवल एक ही निबंध में आप बहुत कुछ या सारा कुछ पा सकते हैं। और मैं विधा, वस्तु, भाषा-शैली, दर्शन-दृष्टि, अनुभव-अनुभूति सभी दृष्टियों से एक खास तरह की मौलिकता का दावा कर सकता हूँ। मैंने दूसरों से कम ही कुछ लिया है या लेने की कोशिश की है - अपने को ही भरपूर समझ और उसे प्रकाशित करने की भरपूर कोशिश की है।”
अपने ललित निबंधों के बारे में आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के उपरोक्त विचार उचित एवं सटीक प्रतीत होते हैं। उनकी भाषा-शैली में मौलिकता है, आविष्कारशीलता है, नवीनता है, विलक्षणता है - और साहित्यकारों से पृथक, और रचनाकारों से नितांत भिन्न।
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की अनमोल साहित्यिक कृतियाँ काल के गाल में समां जातीं, नष्ट-विनष्ट हो जातीं, अप्रकाशित रह जातीं अगर मेरी दृष्टि उन पर नहीं पड़ती, अगर मैंने उनको इधर-उधर से खोज कर नहीं निकाला रहता, अगर उनको सुरक्षित एवं संरक्षित नहीं रखता, अगर धुंधले होते हुए हस्तलिपि को सम्यक-समुचित सुधार के साथ पुनर्स्थापित नहीं करता, अगर उनको स्वयं टंकित नहीं करता, और संकलित कर अपने खर्चे से पुस्तक के रूप में एक एक कर प्रकाशित नहीं करता। अत्यंत दुरूह, दुःसाध्य, दुष्कर कार्य है ये। पर माता-पिता के आशीर्वाद से तथा ईश्वर की कृपा से उम्र के इस पड़ाव पर न जाने कहाँ से इतनी ऊर्जा उत्पन्न हो गयी है कि मैं इस असंभव यज्ञ को किए जा रहा हूँ - साहित्य को समृद्ध किए जा रहा हूँ, नागरी लिपि का प्रचार-प्रसार किए जा रहा हूँ और भारतीय संस्कार एवं संस्कृति को भी सम्पन्न किए जा रहा हूँ। और करते रहूँगा तब तक जब तक कि ऊपर वाले का हाथ मुझ पर है - अभी बहुत कुछ करना है, बहुत कुछ प्रकाशित करना है और आपके पास पहुँचाना है।
अब इस पुस्तक के बारे में आपको कुछ बता देना चाहते हैं। इसमें दस ललित निबंध शामिल किये गए हैं जिसमें से पहला निबंध है “यदि हम नंगे रहते” और इसी से पुस्तक का नामकरण हुआ है। इस निबंध के माध्यम से ओझा जी कहते हैं -
“वास्तव में वस्त्रत्याग मानव की सबसे बड़ी साधना है और इसकी सिद्धि तमाम दिव्य अलौकिक-आध्यात्मिक शक्तियों-सिद्धियों की कुंजी। वस्त्र त्याग से स्वर्गारोहण या स्वर्ग-प्राप्ति सहज संभव हो सकेगा। मनुष्य धरती पर ही स्वर्ग स्थापित कर सकेगा।
और सबसे बड़ी बात तो Income Tax और Sales Tax से जान बचेगी - नंगे आदमी से कैसा Sales Tax या Income Tax ?”
दूसरा निबंध है “दास्तान-ए-दातुन” यानी दातुन की कहानी। बहुत रोचक है। कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ -
“दातुन की आवश्यकता को मैं समझता हूँ, उसके महत्व को मैं आंकता हूँ उसका सही सही मूल्यांकन मैं करता हूँ - और चीजों को जुटाऊँ या न जुटाऊँ, कल के लिए भोजन सामग्री का प्रबंध करूँ या न करूँ - यानी कल के लिए या कल के बाद कल के लिए और किसी भी चीज का इंतजाम करूँ या न करूँ - कल या कल के बाद कल के लिए जब तक दातुन का इंतजाम नहीं करता तबतक अमनचैन मिलता ही नहीं, पल पल विकल-चल-चंचल बना रहता हूँ।”
फिर एक निबंध है “ मैं रेडियो नहीं सुनता ”। अरे भाई ऐसा क्या हो गया कि इतना बड़ा ललित निबंधकार रेडियो नहीं सुनना चाहता है जबकि उस जमाने में लोग रेडियो के दीवाने हुआ करते थे। आज जैसे लोग मोबाइल के बिना नहीं रह सकते वैसे ही उस कालखंड में लोग रेडियो के बिना पागल हो जाते। विवाह में जिस वर को रेडियो मिलता वह अपने को बड़ा भाग्यशाली समझता और पूरे गाँव-जवार में इसकी चर्चा होती। रेडियो स्टेटस सिंबल था। फिर रचनाकार रेडियो सुनना क्यों नहीं चाहता ? कारण जानने के लिए इस निबंध की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर ही देता हूँ -
“तो जब से अन्तर का ज्ञान-विज्ञान सुनने लगा हूँ, जब से अन्तर का सुर स्वर संगीत सुनने लगा हूँ तब से मेरा रेडियो मेरे लिए सारी प्राणवत्ता और अर्थवत्ता खो चुका है - अब रेडियो का संगीत मुझे फीका ही नहीं अनावश्यक लगता है - अनावश्यक ही नहीं - एकदम बेकार, व्यर्थ। इसलिए मैं कह रहा हूँ कि अब मैं रेडियो नहीं सुनता। क्यों सुनूँ ? क्या जरुरत है उसकी ? उससे तो लाख गुना अच्छा है सुनना निर्झर संगीत- सरिता संगीत, सागर संगीत, पवन संगीत, मेघ-संगीत, गगन संगीत, सुधाकर संगीत, तारक संगीत, प्रकृति संगीत, पुरुष संगीत, विश्व संगीत , विराट संगीत।”
तो इस तरह से इस संग्रह में कुल दस ललित निबंध है और सभी एक से बढ़कर एक। सबकी अपनी खुशबू, सबका अपना सुगंध, सबका अपना फ्लेवर। और इन सबसे बढ़कर आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की भाषा, उनकी शैली, शब्दों का चयन, लेखन में गजब का प्रवाह और गजब का बहाव। विवश कर देता है पाठक को डुबकी लगाने के लिए - जी हां अद्भुत साहित्य के सुधासागर में।
तो अब मुझे दीजिए आज्ञा और आप आनंद लीजिये इस साहित्यामृत का। मैं फिर और शीघ्र ही उपस्थित होऊंगा आपके समक्ष - एक नयी रोचक पुस्तक के साथ। एक बात और। अनजाने में हुए कतिपय त्रुटियों के लिए मुझे क्षमा करेंगे।
सधन्यवाद।
डॉ अजय कुमार ओझा
पूर्व संवाददाता, यूनाइटेड न्यूजपेपर्स, दिल्ली
पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी (दूरदर्शन)
भारतीय प्रसारण सेवा
एडवोकेट, भारत का सर्वोच्च न्यायालय
ई-मेल : ajayojha60@gmail.com
संपर्क : 9968270323