Thursday, December 5, 2019

"मौसम है रंगीन सुहाना" - प्रो (डॉ ) रवीन्द्र नाथ ओझा

"मौसम है रंगीन सुहाना"  - प्रो (डॉ ) रवीन्द्र नाथ ओझा 



(Images are subject to IPR)


Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha

मौसम  है रंगीन  सुहाना 
                         पुलकित मन है पुलकित गात 
आज प्रकृति संवरी कुछ ऐसी 
                           सृष्टि  बनी  मधुऋतु  की   रात 


सपने  सारे  उमड़  पड़े हैं ,
                 इच्छाएं सब जाग पड़ी हैं ,
भाव उमड़ते उर -अंतर में 
                 कविता -सरिता फूट पड़ी है। 

फूट  चले  हैं रस  के निर्झर
             हृदय - सरोवर फूट चला है
दिग्दिगंत आनन्द आपूरित 
              भवबंधन सब टूट चला है। 

सुख का मेला सज़ा हुआ है ,
                लहरायित है हिय का सागर 
आज कल्पना होरी गाती ,
              भरी जगत री रीती गागर। 


Image (C) Dr Ajay Kumar Ojha




        प्रकृति  - सुन्दरी रूप अलौकिक ,
               लालस     ललक  पड़ी   है 
जिधर दृष्टि जाती है मेरी 
                 सुन्दरता बस रची खड़ी है। 

माया मनहर रूप दिखाती 
               रूप  दीवाना     होता    हूँ 
रूपदृश्य के पार ज्योति का 
                 परवाना         होता      हूँ। 

प्रकृति सुहानी लगती है 
               रूप लुभाना लगता है 
रूपदृश्य के परे है जो भी 
                और सुहाना लगता है।  

जिसको देखा वह है सुन्दर 
                      जो अनदेखा वह अति सुन्दर 
दृश्य जगत के पार है देखो ,
                   सुन्दरतम का बहा समंदर। 



28 फरवरी 2010 , ताल -मेल 






No comments:

Post a Comment